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Read this article to learn about how is survey done by using maps in Hindi language.
मानचित्र प्रक्षेप:
पृथ्वी त्रियायामी (गोलाकार) है परंतु उसका अथवा उसके किसी हिस्से का आरेखन करते समय उसे द्विआयामी रूप में रूपांतरित करना पड़ता है । मानचित्र तैयार करते समय यही रूपांतरण प्रमुख बाधा बन जाता है परंतु मानचित्र प्रक्षेप द्वारा इस बाधा को दूर किया जा सकता है ।
इसके लिए पृथ्वी के भूगोलक पर वृत्तजाल का उपयोग करके यह वृत्तजाल सबसे पहले कागज पर बनाया जाता है । समतल कागज पर उचित रूप में वृत्तजाल बनाने पद्धति को मानचित्र प्रक्षेप कहते हैं । विभिन्न प्रक्षेपों के वृत्तजाल गणितीय अथवा आलेख पद्धति से बनाए जाते हैं ।
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किस प्रकार का प्रक्षेप बनाना है, यह प्रदेश के आकार और मानचित्र के उद्देश्य के आधार पर निश्चित किया जाता है । मानचित्र में प्रदेश का आकार, क्षेत्रफल, दिशा और दूरियों को अचुकता से दर्शना आवश्यक होता है परंतु एक ही प्रक्षेप में इन सभी बातों को साध्य करना कठिन होता है । अत: कुछ प्रक्षेपों में दिशा और दूरी को प्राथमिकता दी जाती है ।
आकृति २.१ के अनुसार पृथ्वी के भूगोलक पर कागज़ को विभिन्न आकारों में रखा गया है अर्थात पृथ्वी के भूगोलक पर कागज समतल, शंकु और बेलन के आकार में रखा जाता है । इसके अनुकार प्रक्षेपों के तीन प्रकार: ‘ख’ मध्य, शंक्वाकर और बेलनाकार होते हैं ।
सपाट कागज को पृथ्वी के भूगोलिक पर ध्रुव के पास विषुवत वृत्त पर अथवा इन दोनों कं बीच अन्यत्र रखकर प्रकाश की सहायता से कागज़ पर भूगोलक के वृत्तजाल की प्रतिमा प्राप्त की जाती है तथा उसकी सहायता से मानचित्र प्रक्षेप बनाए जाते हैं । आकृति २.२ देखो ।
सममूल्य रेखा:
मानचित्र पर समान मूल्यवाले बिंदुओं को जोड़नेवाली रेखा सममूल्य रेखा कहलाती है । किसी भौगोलिक घटक का अध्ययन करते समय उस घटक के मूल्यों का विचार करके ऐसी रेखाएं मानचित्र पर खींची जाती है ।
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प्राकृतिक घटकों के मानचित्र तैयार करते समय सममूल्य रेखाओं का उपयोग होता है । इन रेखाओं से तापमन, वर्षा, वायुदाव, क्षारता आदि घटकों का वितरण ज्ञात होता है । इन रेखाओं को क्रमश: समताप रेखा, समवर्षा रेखा, समदाव रेखा और समक्षार रेखा कहते हैं ।
सममूल्य रेखाएँ पास-पास हों तो घटकों में होनेवाले परिवर्तन तीव्र गति का होता है । उदा… भूमि की ढलान मंद या तीव्र होती है । आकृति २.३की सहायता से ढलान में पाया जाने वाला अंतर और सममूल्य रेखाओं के बीच की दूरी इनमें जो सहसंबंध है उसे समझो ।
समोच्च रेखा:
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मानचित्र पर देखाए गए समान ऊंचाईवाले बिन्दुओं को जोड़नेवाली रेखा को समोच्च रेखा कहते हैं ।
इन रेखाओं की सहायता से प्रदेश के भूरूपों को स्पष्ट किया जाता है । इससे भूमि की ढलान का अनुमान किया जाता है । समोच्च रेखाओं की सहायता से ढलान के निम्न प्रकार मालूम होते हैं । इसे निम्न विवरण और आकृतियों की सहायता से समझो । सम, मंद और तीव्र ढलान के लिए आकृति २.३ देखो ।
(i) सम ढलान:
मानचित्र पर समान दूरी की समोच्च रेखाएँ सम ढलान दर्शाती हैं ।
(ii) मंद ढलान:
मानचित्र पर समोच्च रेखाएँ दूर-दूर होने पर भूमि की ढलान मंद होती है ।
(iii) तीव्र ढलान:
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मानचित्र पर समोच्च रेखाएँ पास-पास होने पर भूमि की ढलान तीव्र होती है ।
(iv) अंतर्वक्र और बहिर्वक्र ढलान:
अधिक ऊँचाई के मूल्य की समोच्च रेखाएँ एक-दूसरे के पास और कम ऊँचाई के मूल्यवाली समोच्च रेखाओं के एक-दूसरे से दूर जाने पर भूमि की ढलान अंतर्वक्र होती है । इसके विपरीत अधिक मूल्यों की समोच्च रेखाएँ एक-दूसरे से दूर हैं और कम मूल्यवाली समोच्च रेखाएँ एक-दूसरे के पास हो तो भूमि की ढलान बहिर्वक्र होती है ।
मानचित्र के ढाँचे में विवरण अंकित करना:
हम सांख्यिकीय जानकारी के आधार पर एक और मानमित्र तैयार करेंगे ।
अहमदनगर जिले की सन २००१ की जनसंख्या का तहसीलवार घनत्व साथवाली तालिका में दिया गया है । इसी जानकारी के आधार पर तुम्हें क्षेत्र घनत्व संबंधी मानचित्र तैयार करना है ।
मानचित्र बनाने की पद्धति:
सांख्यिकीय जानकारी के आधार पर अहमदनगर जिले की तहसीलों की जनसंख्या का घनत्व ध्यान में लो । उनमें से सबसे कम और सबसे अधिक घनत्व खोजो । घनत्व के अंतर के आधार पर जनसंख्या के तीन वर्ग करो ।
(i) २०० से कम
(ii) २०० से ४००
(iii) ४०० से अधिक ।
सांख्यिकीय जानकारी के आधार पर विभिन्न तहसीलों की जनसंख्या का घनत्व जाँचो । हमने जो तीन वर्ग बनाए हैं; उनमें कौन-कौन-सी तहसीलें आती हैं, इसे खोजो । नीचे दी गई चार छटाओं में से तीन का उपयोग मानचित्र में करना है । आकृति २.५ में से जिले का मानचित्र अलगा कागज पर बनाओ और अधिक घनत्व से कम घनत्व की ओर घनी से हल्की छटाओं को चुनो ।
चुनी हुई छटाओं का उपयोग करके मानचित्र में विभिन्न तहसीलों को उचित रंग दो और मानचित्र पूरा करो । सूची तैयार करके मानचित्र में दिखाओ । इस तरह क्षेत्र घनत्व संबंधी मानचित्र तैयार किया जाता है ।