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Read this article in Hindi to learn about the four main important institutions for granting geographical education in India. The institutions are:- 1. भारतीय राष्ट्रीय भौगोलिक संघ (National Association Geographers of India) 2. भारतीय भूगोलवेत्ताओं का संस्थान, पुणे (Institute of Indian Geographers) and a Few Others.
हमारे देश में भूगोल परिषदों की स्थापना निम्न प्रमुख उद्देश्यों को ध्यान में रखकर की गया है:
(i) भूगोलविदों को एक मंच पर एकत्रित करना,
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(ii) परिषद के तत्वाधान में गोष्ठियों का आयोजन करना,
(iii) शोध लेखों को नियमित रूप से शोध पत्रिका में प्रकाशित करना,
(iv) देश व विदेश में भूगोल में होने वाले परिवर्तनों व प्रमुख घटनाओं, नवीन पुस्तकों के बारे में जानकारी प्रदान करना
(v) युवा भूगोलविदों को श्रेष्ठ शोध लेखों के लिए प्रोत्साहित करना,
(vi) भूगोल की नई-नई शाखाओं के विकास पर ध्यान देना, आदि । इन संस्थाओं की सबसे बड़ी उपलब्धि भूगोल पत्रिकाओं का नियमित प्रकाशन है ।
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भूगोल में भौगोलिक संस्थाओं के स्थापन की शुरूआत 1926 से मानी जाती है । इस समय मद्रास में इण्डियन ज्योग्राफिकल सोसाइटी की स्थापना की गई थी । इसके बाद अलीगढ़ में अलीगढ़ ज्योग्राफिकल सोसाइटी की स्थापना की गई । इसी प्रकार 1935 में क्लेकाता मै ज्योग्राफिकल सोसाइटी आफ इण्डिया की स्थापना की गयी थी ।
स्वतन्त्रता से पूर्व स्थापित यह सभी परिषदें आज भी भूगोल पत्रिकाओं के प्रकाशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । स्वतन्त्रता के बाद से देश के अनेक प्रमुख नगरों व महानगरों में अनेक भौगोलिक परिषदों की स्थापना की जा चुकी है । इनमें से कुछ परिषदे विशेष रूप से कोलकाता, इलाहाबाद, अलीगढ़, वाराणसी चेन्नई, सिंकदराबाद अलीगढ, गोरखपुर, खड़गपुर, पटना, पूणे नगरों में स्थापित शोध पत्रिकाओं के प्रकाशन में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं ।
देश में राष्ट्रीय स्तर पर दो संगठनों का विशेष महत्व है, जिसमें प्रथम, भारतीय भूगोलवेत्ताओं की राष्ट्रीय परिषद (NAGI) व पूणे में स्थापित इंस्टीटयूट आफ इण्डियन ज्योग्राफर्स राज शामिल हैं । इनके अलावा राज्य स्तर पर भौगोलिक संगठनों ने विशेष प्रगति की है, उनमें राजस्थान राज्य का विशेष महत्व है ।
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इसके अलावा पश्चिम बंगाल, चंडीगढ़, मेघालय ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है । उत्तरप्रदेश की विशालता ने अनेक भौगोलिक परिषदों को जन्म दिया है । यहाँ पर अलीगढ, वाराणसी गोरखपुर, इलाहाबाद शोध अध्ययन के गढ़ कहे जा सकते है । कानपुर, मेरठ, आगरा ने भी इस दिशा में अपने कदम बढ़ाए है ।
उपरोक्त संस्थानों व परिषदों में से कुछ का विवरण इस प्रकार है:
1. भारतीय राष्ट्रीय भौगोलिक संघ (National Association Geographers of India):
यह भारतीय भूगोलवेत्ताओं की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है । भारतीय भूगोलवेत्ताओं को राष्ट्रीय मंच प्रदान करने हेतु 1979 में इस संघ का गठन किया गया । जिसका श्रेय देश के जिन शीर्ष भूगोलवेताओं को जाता है, उनमें मुनिस रजा, जी॰एस॰ गोसाल, एम॰ शफी सी॰डी॰ देशपाण्डे, आर॰पी॰ मिश्रा, एन॰बी॰के॰ रेड्डी, वी॰ अरूणाचलम, एजाजउद्दीन अहमद शामिल है ।
इस संघ का प्रमुख उद्देश्य देश के विभिन्न भागों में प्रतिवर्ष एक अधिवेशन का आयोजन करना है । देश की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह अधिवेशन क्रमवार उत्तर व दक्षिण भारत में आयोजित किये जाते हैं । इसमें देश के विभिन्न भागों से आए भूगोलवेत्ता अपने-अपने शोध लेख प्रस्तुत करते हैं, प्रत्येक अधिवेशन को कई तकनीकी मन्त्रों में बाँटा जाता है, और उसी कम से शोध प्रपत्रों को प्रस्तुत किया जाता है ।
इन तकनीकी सत्रों को नवम्बर 2007 में उदयपुर में आयोजित होने वाले अधिवेशन की प्रस्तुत योजना द्वारा समझा जा सकता है:
i. भारतीय भूगोल : आविर्भाव परिदृश्य,
ii. भूगोल एक व्यवसायिक विषयक के रूप में (नियोजन, स्वास्थ्य, मानचित्रण एवं जी॰आई॰एस॰)
iii. भौगोलिक अध्ययन में सुदूरसंवेदन एवं जी॰आई॰एस॰ की भूमिका,
iv. भौतिक भूगोल एवं जलवायक परिवर्तन,
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v. पर्यावरण परिवर्तन एवं जैव विविधता,
vi. स्थानिक अर्थव्यवस्था की गतिशीलता,
vii. जनमानस, संसाधन एवं विकास,
viii. नगरीय समाज, अर्थव्यवस्था एवं भूगोल,
ix. भारत भूमण्डल के नवीन परिप्रेक्ष्य में,
x. भारत ग्रामीण से नगरीय विकास की ओर,
xi. भूराजनीति एवं विवादास्पद मुद्दों का अध्ययन,
xii. भूगोल में सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयाम,
xiii. भौगोलिक शिक्षण ।
नागी का प्रथम अधिवेशन गुरूदेव सिंह गोसाल की अध्यक्षता में 1979 में चंडीगढ़ में सम्पन्न हुआ । देश के एक हजार से भा अधिक भूगोलवेत्ता इसके आजीवन सदस्य वन चुके है । विभिन्न स्थानों पर होने वाले अधिवेशनों में प्रतिवर्ष 300 से 500 प्रतिनिधि इसमें भाग लेते हैं ।
इसका एक स्थानीय संयोजक होता है । इसकी कार्यकारिणी में अध्यक्ष, पूर्व अध्यक्ष, चयनित अध्यक्ष, प्रत्येक क्षेत्र से अलग-अलग पाँच उपाध्यक्ष, महासचिव, सह-सचिव, सम्पादक व सह-सम्पादक शामिल होते हैं । प्रत्येक क्षेत्र से चार-चार सदस्यों को इसमें नामित किया जाता है । इसका प्रधान कार्यालय स्थायी रूप से दिल्ली के भूगोल विभाग में स्थापित कर दिया गया है ।
इसके स्थायी महासचिव राम बाबू सिंह हैं । दिल्ली विश्वविद्यालय के बालेश्वर ठाकुर का भी इसमें विशेष सहयोग रहता है । इसके अब तक 28 अधिवेशन हो चुके हैं । 29वीं अधिवेशन 2007 के नवम्बर माह में उदयपुर में आर॰एस॰ व्यास की अध्यक्षता व साधना कोठारी के संयोजन में होने जा रहा है ।
अब तक जिन नगरों में इसका आयोजन किया जा सका है, उनमें तिरूपति, नई दिल्ली, मुम्बई, अलीगढ़, खड़गपुर, वाराणसी, श्रीनगर, पुणे, मैसूर, दिल्ली, राजकोट, जयपुर, पटना, भुवनेश्वर, गाजियाबाद, हैदराबाद, तिरूवनन्तपुरम, गोरखपुर, नागपुर, धारवाड़, सागर, रोहतक, प्रमुख रूप से शामिल है । यह संस्था द्वि-वार्षिक (छमाही) ‘Annals of NAGI’ भूगोल पत्रिका का नियमित रूप से प्रकाशन कर रही है ।
2. भारतीय भूगोलवेत्ताओं का संस्थान, पुणे (Institute of Indian Geographers):
इस संगठन की स्थापना नागी के भौगोलिक संघ के अनुरूप ते विश्वविद्यालय के भूगोलवेत्ताओं के नेतृत्व में 1979 में की गई । इसके गठन में दक्षिणी व पश्चिमी भारत के भूगोलवेत्ताओं का विशेष योगदान है । यह विशेष रूप से के॰आर॰ दीक्षित एस॰एस॰ गुप्ते, पी॰आर॰ करमारकर, एस॰बी॰ सावन्त के प्रयासों का परिणाम हैं ।
के॰आर॰ दीक्षित इस संस्था के संस्थापक अध्यक्ष हैं । इसका प्रथम अधिवेशन 1980 में पुणे में हुआ था । प्रतिवर्ष यह संस्था देश के प्रख्यात भूगोल विभाग में भौगोलिक सम्मेलन का आयोजन करती है । अब तक इसके 26 अधिवेशन हो चुके है । यह भूगोल विषय की किसी न किसी एक प्रकरण (Theme) को आधार मानकर अन्य शाखाओं पर भूगोलविदों के शोध लेख आमंत्रित करता है ।
यह संस्थान Transactions of Indian Geographers नामक पत्रिका का नियमित प्रकाशन करता है, जो वर्ष में दो बार जनवरी व जुलाई में प्रकाशित होती है । यह संस्थान सुदूर संवेदन, प्रादेशिक नियोजन एवं विकास, नगरीय विकास एवं नियोजन, जैसे विषयों को विशेष महत्व दे रहा हैं । यह संस्थान अन्तर्विषयक विचारधारा (Interdisciplinary) के रूप में भूगोल का विकास करने में संलग्न है ।
पुणे विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की स्थापना 1954 में वी॰एस॰ गणानाथन की अध्यक्षता में की गई । उन्होंने विशेष रूप से नगरीय भूगोल, मानव भूगोल, परिवहन भूगोल, पर्यटन भूगोल, आर्थिक भूगोल, भौतिक भूगोल, औद्योगिक भूगोल, एवं भौगोलिक चिन्तन के अध्ययनों पर जोर दिया ।
इस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के॰आर॰ दीक्षित का शोधकार्य ‘Bombay : A Study in Urban Geography’ उल्लेखनीय है । दीक्षित के बाद एस॰सी॰ गुप्ते ने अध्यक्ष पद संभाला, उनके निर्देशन में प्रादेशिक भूगोल, धरातलाकृत्तिक अध्ययन, व नगरीय भूगोल पर कार्य किए गए है ।
वह पुणे विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे हैं । वह NAGI व IIG के संस्थापक सदस्य होने के साथ UGC में भूगोल की पाठ्यक्रम समिति के चैयरमेन भी हैं । इस विश्वविधालय से प्रकाशित शोध पत्रिका ‘Transaction of Indian Geographers’ एक गुणवत्ता लेखों वाली अर्द्धवार्षिक पत्रिका है । इस विभाग के विकास में वी॰एस॰ दात्ये व जयमाला दीदी का भी योगदान है । उपरोक्त विषयों के साथ-साथ ऐतिहासिक भूगोल, कृषि भूगोल एवं भूमि उपयोग जलवायु भूगोल पर भी यहाँ शोध कार्य किए गए है ।
3. राष्ट्रीय मानचित्रावली विषयक मानचित्र संगठन (National Atlas Thematic Mapping Organization):
इस संगठन की स्थापना 1956 में शिव प्रसाद चटर्जी की अध्यक्षता में हुई । इस संस्था का उद्देश्य भारत एवं समीपवर्ती क्षेत्र के विविध प्रकार के मानचित्रों, वृहद व लघु क्षेत्रों के मानचित्रों का प्रकाशन करना है, ताकि देश के भूगोलविद भूगोल के विद्याथिर्यों चाहें वह किसी कक्षा में भूगोल पढ़ते हैं, भौगोलिक अध्ययन एवं शोध में उसका लाभ उठा सकें ।
यह संस्था निरन्तर विभिन्न प्रकार के मानाचित्रों का प्रकाशन करने के साथ उनको उचित मूल्य पर सर्वसाधारण को सुलभ करा रही है । हाल ही में इसके द्वारा प्रकाशित National School Atlas of India इसके उदाहरण हैं । इस संस्थान का नेतृत्व चटर्जी, जो भूगर्भवेत्ता के रूप में विख्यात थे, ने लगभग 14 पुस्तकों की रचना की ।
उन्होंने मेघालय पठार, चौबीस परगना, भारत के पवित्र स्थल, बंगाल मानचित्रों में, भारत का बदलता मानचित्र, भारत में भूगोल का विकास एवं प्रगति, दामोदर घाटी प्रदेश की नियोजन मानचित्रावली, भूगोल एवं संस्कृति, भूगोल का शिक्षण, भू-आकृति विज्ञान आदि विषयों पर अपने लेखन से प्रभावित किया ।
उनका योगदान भूगोल व इस संस्था के लिए अविस्मरणीय है । इनके बाद इस संस्थान की बागडोर एस॰पी॰ दास गुप्ता ने सम्हाली । उन्होंने भूगोल पत्रिका का सम्पादन किया तथा भूगोल के विभिन्न पक्षों पर अनेक लेख व शोध पत्र प्रकाशित कराए उनका सम्बन्ध Geographical Society of India, कोलकात्ता तथा Centre for Study of Man and Environment से भी रहा । दास गुप्ता के पश्चात जी॰ के॰ दत्ता ने इस संस्था के निदेशक पद को संभाला । उन्होंने Topographical Maps : Their Contents and Uses; The Story of the Maps; Planning Atlas of U.P. की रचना की ।
उनके बाद बी॰के॰ राय ने इस पद को सुशोभित किया । उन्होंने वाराणसी में आर॰एल॰ सिंह के निर्देशन में Land Utilization in Ghaghara Doab विषय पर शोध कार्य किया । भारत सरकार के जनगणना विभाग में मानचित्र इकाई के अध्यक्ष पद पर काम किया ।
इन्हीं के प्रयत्नों का परिणाम है कि आज भारत का जनगणना विभाग अपने आंकडों को मानचित्रों व उपयुक्त चित्रों के साथ प्रस्तुत करता है । इनके बाद पृथ्वीश नाग ने इस पद को कुशलता के साथ संभाला है तथा उपरोक्त वर्णित मानचित्रावलियों के प्रकाशन के साथ-साथ कई गोष्ठियों का आयोजन कराया है ।
इनमें भूमि उपयोग जनसंख्या का मानचित्रण, सुदूर संवेदन व भौगोलिक सूचना पद्धति (GIS) विषय विशेष रूप से शामिल है । प्रो॰ नाग ऐसे पहले भूगोलविद हैं, जो भारतीय सर्वेक्षण विभाग, देहरादून के महासर्वेक्षक व निदेशक रहे हैं ।
4. भारतीय राष्ट्रीय भौगोलिक परिषद, वाराणसी (National Geographical Society of India):
इस परिषद की स्थापना बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व भूगोल अध्यक्ष एच॰एल॰ छिब्बर (H.L. Chhibber) 1946 में की थी । वह भूगर्भशास्त्र के विद्वान थे । उन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय से डी॰लिट॰ उपाधि प्राप्त की थी । उन्होंने भूगोल एवं भूगर्भ दोनों को जोड़ते हुए भौतिक भूगोल एवं भू-आकृति विज्ञान पर उल्लेखनीय कार्य किया ।
उन्होंने National Geographical Journal of India नामक भूगोल पत्रिका की शुरूआत एक बुलेटिन के रूप में की, जिसमें समय-समय पर शोध लेखों का प्रकाशन किया गया । इस भौगोलिक पत्रिका का नियमित प्रकाशन 1955 से प्रारम्भ हुआ, जब प्रोफेसर आर॰एल॰ सिंह-जिन्होंने लन्दन विश्वविद्यालय के प्रो॰ डडले स्टाम्प के निर्देशन में शोध कार्य किया था, ने इस विभाग की बागडोर संभाली ।
उन्होंने 1955 से 1977 तक भूगोल विभाग की अध्यक्षता व निर्देशन का कार्य किया । देश में भूगोल के उन्नयन व विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय है । उन्होंने शोध निर्देशन द्वारा भूगोल के विकास में अमूल्य योगदान दिया । उन्होंने शोध लेख व पुस्तकों का प्रकाशन National Geographical Society of India, संस्था के मातहत कराया । इस संस्था द्वारा यद्यपि अनेक शोध
ग्रन्थों व पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है, लेकिन उनमें से आर॰एल॰ सिंह द्वारा रचित एवं सम्पादित महत्वपूर्ण पुस्तकें इस प्रकार हैं:
Banaras- A Study in Urban Geography, India A Regional Geography, Rural Settlement in Monsoon Asia, Urban Geography in Developing Countries, Readings in Rural Settlement Geography, Role of Geography as Integrating Science, Small Towns in India, Geographic Dimension in Rural Settlements.
वाराणसी की यह संस्था अपनी भूगोल पत्रिका का प्रकाशन त्रैमासिक स्तर पर करती हैं । इस पत्रिका में नगरीय भूगोल, ग्रामीण अधिवास, प्रादेशिक भूगोल, स्थलाकृतिक अध्ययन नियोजन भूगोल, व्यवहारिक भूगोल, ऐतिहासिक भूगोल, भूमि उपयोग एवं कृषि, सांख्यकीय विधियाँ, सामाजिक एवं सांस्कृतिक भूगोल, संसाधन भूगोल, तथा अन्य सभी विषयों से सम्बन्धित शोध पत्रों का प्रकाशन होता रहता है । यह पूरे विश्व की एक प्रतिष्ठित पत्रिका है ।
इस परिषद के तत्वाधान में 1971 में वाराणसी में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था, जिसमें उपरोक्त वर्णित पुस्तकों में विशेष रूप से India – A Regional Geography, Morphology of Indian Cities पुस्तकों का विमोचन किया गया । इससे पहले इस संस्था ने 1968 में Urban Geography in Developing Countries विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया, तथा IGU जिसका अधिवेशन नई दिल्ली में हुआ, उसमें सक्रिय योगदान दिया ।
इसके अलावा नगरीय भूगोल पर एक गोष्ठी का आयोजन 1990 में किया था । यह संस्था निरन्तर किसी न किसी एक प्रकरण (Theme) को आधार मानकर गोष्ठियों का आयोजन करती रहती है । इस संस्था को प्रसिद्धि दिलाने में प्रोफेसर आर॰एल॰ सिंह के साथ-साथ उनके सुयोग्य छात्र व वरिष्ठ भूगोलविदों का भी विशेष योगदान है ।
उनके छात्रों की एक लम्बी सूची है, लेकिन उनमें ए॰एस॰ जौहरी, एस॰एल॰ कायस्थ, काशी नाथ सिंह, के॰के॰ दुबे, संत बहादुर सिंहके नाम उल्लेखनीय हैं । इनके अलावा ए॰ रमेश, पी॰ तिवारी (चेन्नई), डी॰के॰ सिंह (भुवनेश्वर) के नाम भी महत्वपूर्ण हैं । इन सबके शोध कार्यों व शोध लेखों ने भूगोल को एक नई दिशा देने में प्रमुख भूमिका निभाई है ।
4. बम्बई ज्योग्राफिकल एसोसिऐशन (Bombay Geographical Association Bombay):
सम्भवत: यह भारत की सबसे पुरानी भौगोलिक संस्था है । 1832 में यहाँ पर लन्दन की रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी की शाखा के रूप में इसे स्थापित किया गया है । 1832 से 1837 तक यह अनेक व्यवधानों के बीच लन्दन रॉयल सोसायटी की शाखा कार्यालय के रूप में रही, व निरन्तर भौगोलिक पत्रिका का वार्षिक अँक प्रकाशित करती रही ।
1873 में इसको कलकत्ता की एशियाटिक सोसायटी से सम्बद्ध कर दिया गया । 1935 में इसको वर्तमान नाम सी॰बी॰ जोशी व बी॰डी॰ घाटे के प्रयासों से मिला । स्वतन्त्रता के पश्चात यह सोसायटी नियमित रूप से वार्षिक स्तर पर Bombay Geographical Magazine का प्रकाशन कर रही है ।
बम्बई में भूगोल विभाग की स्नातकोत्तर स्तर पर स्थापना 1957 में बम्बई विश्वविद्यालय से सम्बद्ध पार्ले कालेज में की गई । इसके अध्यक्ष सी॰बी॰ जोशी बने । उन्होंने ऐतिहासिक भूगोल भूमि उपयोग एवं अधिवास भूगोल के अध्ययन पर ध्यान दिया । बम्बई विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की स्थापना 1969 में सी॰डी॰ देशपाण्डे की अध्यक्षता में हुई ।
इन्होंने NAGI व IIG भौगोलिक संस्थाओं की स्थापना की । इनकी रूचि प्रारम्भ में प्रादेशिक भूगोल व संसाधन भूगोल को विकसित करने की रही । उनका उद्देश्य दक्षिण भारत के साथ-साथ देश के अन्य भागों में भूगोल का प्रचार एवं विकास करना रहा । वह भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली (ICSSR) के राष्ट्रीय सदस्य भी रहे ।
NAGI की भूगोल पत्रिका Annals में मुख्य सम्पादक के रूप में भी कार्य किया है महाराष्ट्र का भूगोल उनकी प्रमुख पाठ्य पुस्तक है, इसके अलावा उनकी अन्य कृतियाँ Regional Geography of Western India, Techniques of Regional Geography, India Reorganized: A Geographical Evaluation, India– A Regional Interpretation, Geography in the Service of Poor People हैं ।
देशपाण्डे की सेवानिवृत्ति के बाद बी॰एस॰ अरूणाचलम के नेतृत्व में भूगोल विभाग का अध्यापन प्रारम्भ हुआ । वह मानचित्रकला (Cartography) के पारखी माने जाते हैं । मानचित्रों का संग्रह, अध्ययन एवं विशलेषण उनकी विशेष रूचि है । उन्हों के प्रयासों से बम्बई विश्वविद्यालय का भूगोल विभाग अनेक दुर्लभ मानचित्रों, मानचित्रावलियों, पुरातन साहित्यों, अभिलेखागारों तथा प्राचीन पुस्तकों का संग्रह माना जाता है । उनके अधिकाँश शोध पत्र मानचित्रकला से सम्बन्धित हैं ।
मानचित्रों के निर्माण में उनकी सोच गत्यात्मक रही है । मानचित्र निर्माण प्रक्रिया पर भी उनके विचार महत्वपूर्ण हैं । उन्होंने प्राचीन भारत के साथ आधुनिक भारत के विभिन्न मानचित्रों का निर्माण भी किया है। मानचित्र निर्माण की नवीन तकनीकें, वायु फोटो चित्रों का विश्लेषण, दूरसंवेदन चित्रों द्वारा मानचित्रों का निर्माण व आंकलन, भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) का प्रयोग उनके शोधों के प्रमुख विषय हैं ।
उन्होंने आंकिक भूभागीय मॉडल (Digital Terrain Models), मानचित्र निर्माण में कम्प्यूटर के प्रयोग को भी महत्व दिया है । उनके द्वारा बनाए गए मानचित्र नौसैनिक परिवहन, मत्स्य क्षेत्रों के निर्धारण में उपयोगी रहे है । देश के विभिन्न द्वीपों के मानचित्र तैयार करने में भी उनका योगदान सराहनीय है । मानचित्र कला में उनकी श्रेष्ठता बेजोड़ है । यही कारण है कि भारतीय राष्ट्रीय मानचित्रकला परिषद (Indian National Cartographic Association) के गठन में उनकी भूमिका संस्थापक के रूप में रही है ।
वह NAGI के भी संस्थापक सदस्य हैं । वह हिन्द महासागर के अध्ययन मण्डल, एवं समुद्रपारीय ऐतिहासिक परिषद के भी सक्रिय सदस्य है । वह भारतीय भूगोल के मानचित्रकला के जनक माने जाते हैं व उसके पर्यायवाची हैं । उन्होंने मुम्बई में, Maritime Museum की स्थापना की है । इसके साथ-साथ Native India Cartographic Tradition नाम की संस्था में अपने द्वारा रचित सभी मानचित्रों का संकलन प्रस्तुत किया है ।
1993 में अरूणाचलम की सेवानिवृत्ति के बाद बी॰एम॰ फड़के ने इस विभाग का पदभार सम्हाला । बाद में एस॰ बनर्जी गुहा ने 2002 तक इस विभाग की अध्यक्षता की, उनके बाद फिर से बी॰एस॰ फडके ने इस कार्य भार को सम्हाला है । इस विश्वविद्यालय की के॰ सीता का योगदान भी उल्लेखनीय है, जो NAGI के क्रियाकलापों में सक्रिय रहती है ।