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Read this article in Hindi to learn about the top ten French scholars and their contribution to geography.
यूरोप के बाद भूगोल का विकास फ्रांस में हम्बोल्ट के प्रयासों से आरम्भ हुआ । यद्यपि जर्मनी का विद्वान था, लेकिन जब वह मध्य अमरीका की यात्रा से लौटा तो वह लगभग पेरिस में रहा । इस अवधि में उसने फ्रांस में भूगोल के विकास की नींव रखी । उसके जर्मनी लौटने के बाद फ्रांस में अनेक विद्वानों पर उसकी विचारधारा का प्रभाव पड़ा और उन्होंने विकास की ओर कदम बढ़ाया ।
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यद्यपि 18वीं शताब्दी में यहां पर कुछ विद्वानों ने प्राकृतिक तत्वों, प्रादेशिक भूगोल पर कार्य किये थे, लेकिन 1850 के दशक से सारवोन विश्वविद्यालय (पेरिस) में इस दिशा में अनेक विद्वानों ने महत्वपूर्ण कार्य भूगोल के लिए किए । यह विचार वर्तमान भूगोल की विचारधारा के आधार बने ।
उन्होंने प्रादेशिक भूगोल, भौतिक भूगोल, मानव भूगोल, के विकास में विशेष योगदान किया है । फ्रांस में जिन विद्वानों ने वर्तमान भूगोल की नींव रखी, उनमें फ्रेडरिक लीप्ले, गालो, रेकलेस, ब्लाश, ब्रून्स, डिमाजिंया, डी मारतोनी, ब्लैन्चार्ड, बौलिंग, सीगफ्रीड, चोर्ले, सोरे, डिफोंटे, डिकिन्सन के नाम उल्लेखनीय है ।
इन विद्वानों ने भूगोल को एक स्वतन्त्र विषय के रूप में विकसित होने में मदद की । इनमें से ब्लाश व ब्रून्स के विचार विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं जिनका वर्णन अलग-अलग अध्यायों में किया । अन्य विद्वानों के प्रमुख विचारों को यहाँ पर प्रस्तुत किया गया है ।
1. फ्रेडरिक लीप्ले (Fredrick Leplay):
लीप्ले प्रमुख समाजशास्त्री था । उसने मानव समाज एवं उसके आवास क्षेत्र पर अपने प्रकट किए इन विचारों का भूगोल के विकास पर काफी प्रभाव पड़ा ।
2. एलिसी रेकलस (Elisee Reclus):
रेकलस जर्मन विद्वान कार्ल रिटर का शिष्य था । उसने मानव और वातावरण के बीच सम्बन्धों को जर्मनी की तुलना में अलग ढंग से रखा । उसने बताया कि मानव वातावरण को परिवर्तित करने की क्षमता रखता है । वह अपनी क्रियाशीलता व विचारीय शक्ति से वातावरण पर नियंत्रण कर सकता है ।
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उसके इन विचारों को फ्रांस में सम्मान मिला, और ब्लाश ने इस विचारधारा को अपनाते हुए आगे विकसित किया । 1866-67 में उसने भौतिक भूगोल पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक ला-टैरे (La-Terre) रखा । उसने रिटर की अर्द्धकुण्डे पुस्तक का अनुसरण करते हुए विश्व का नूतन भूगोल, 19 खण्डों में लिखा, इसका नाम (Nourelle Geographical Universelle) रखा । इसका अंग्रेजी संस्करण 1882-95 के मध्य Earth and Its Inhabitants (पृथ्वी और उसके निवासी) के नाम से प्रकाशित हुआ ।
ओपनिवेशिक भूगोल का आरम्भ:
1870 में फ्रांस जर्मनी के बीच युद्ध हुआ, और उसमें फ्रांस को पराजय मिली । फ्रांस को पराजय से जो हानि हुई, उसकी क्षतिपूर्ति उसने साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद द्वारा पूरी करने की कोशिश की । उसने अफ्रीका एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने उपनिवेश स्थापित किये ।
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इन उपनिवेशों के भूगोल जानने की जिज्ञासा फ्रांस की जनता में उत्पन्न हुई । इसी के परिणामस्वरूप पेरिस के सारवोन विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग में 1892 में ओपनिवेशिक भूगोल के प्रोफेसर पद का सृजन कर दिया गया । इस विभाग को फ्रांसीसी उपनिवेशों का भूगोल लिखने का दायित्व सौंपा गया ।
बाद में फ्रांस के सभी भूगोल विभागों में भूगोल की अन्य शाखाओं वे साथ ओपनिवेशिक भूगोल का अध्ययन किया जाने लगा । 1902 में ओपनिवेशिक भूगोल का अध्यापन पेरिस, नैन्सी, लियोन्स, मोर्सेलीस, बोर्डियों, अल्जीयर्स, लिले, काएन, टुलाऊज विश्वविद्यालयों में प्रारम्भ हो गया था ।
1923 में सारवोन में राबीक्यूसेन (Robequsain) ने ओपनिवेशिक भूगोल के प्रोफेसर पद को सुशोभित किया । 1946 में ओपनिवेशिक भूगोल विभाग स्ट्रासवर्ग, प्राविन्स, बोर्डियों में स्थापित किए गए । यहां पर फ्रांस के उष्ण कटिबन्धीय भूभागों में स्थापित उपनिवेशों पर पियरे गोरो (Pierre Gourae) ने 1959 में उष्ण कटिबंधीय संसार (The Tropical World) पर पुस्तक की रचना की ।
इससे फ्रांस में उष्ण कटिबन्धीय देशों के भूगोल के अध्ययन के प्रति आकर्षण बढ़ा । डिमांजियाँ ने 1923 में ब्रिटिश साम्राज्य पर, हार्डी ने 1933 में औपनिवेशिक भूगोल पर पुस्तकों की रचना की । इसी समय ग्रेण्डि डायर (Grandie Dyre) द्वारा फ्रांसीसी उपनिवेशों की मानचित्रावली (Atlas) तैयार कराई गई । इसमें मानचित्रों के साथ-साथ उपनिवेशों का संक्षिप्त वर्णन भी दिया गया ।
3. पॉल वाइडल डी ला ब्लाश (Paul Vidal De La Blache):
रेकलेस व लीप्ले के बाद फ्रांस में भूगोल को आधुनिक रूप देने का श्रेय ब्लाश को जाता है । वह फ्रांसीसी भौगोलिक विचारधारा का आधार बने । फ्रांस के सभी विश्वविद्यालयों में उसी ने भूगोल विभाग की स्थापना की, और उसने अपने शिष्यों को इनमें नियुक्त कराया ।
4. जीन्स बून्स (Jeans Bruhnes):
वह बनाश का प्रमुख शिष्य व फ्रांस का अग्रणी भूगोलवेत्ता था, उसने प्राकृतिक वातावरण पर मानव के प्रभाव की विचारधारा को विकसित किया था । भौगोलिक तथ्यों पर उसके विचार आज भी अतुलनीय है ।
5. एल. गालोइस (L. Gallois):
ब्लाश के बाद गालोइस ने सारवीन विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर का पद सम्हाला था । 1890 में उसने अपना शोध ग्रंथ ‘Les Geographes All Mandes De La Renaissance’ पर प्रकाशित कराया । यह भूगोल पर नवजागरण से सम्बन्धित विषय था ।
1908 में प्रादेशिक भूगोल पर ‘Regions Naturalles at Norms De Pays’ नामक ग्रन्थ प्रकाशित कराया । उसने सार बेसिन, मध्य यूनान, सालेविका तथा स्वेज आदि क्षेत्रों का भौगोलिक अध्ययन किया । भौगोलिक पत्रिका ‘Geographie Universelle’ का सम्पादन किया ।
6. अल्बर्ट डिमांजियाँ (Albert Damangeon):
डिमांजियाँ ब्लाश का शिष्य व मानव भूगोल का प्रणेता था । उसका जन्म फ्रांस के बास्जेज में हुआ था । 1895 में उसने भूगोल एवं इतिहास में स्नातक की उपाधि प्राप्त की । पिकार्डी विद्यालय में काम करते हुए उसने पिकार्डी (Picardy) का प्रादेशिक अध्ययन प्रकाशित कराया ।
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1911 में उसकी नियुक्ति पेरिस के सारवोन विश्वविद्यालय में भूगोल के अध्यापक पद पर हुई । यहां रहकर उसने मानव भूगोल पर प्रमुख रूप से कार्य किया । वह Annals De Geographic पत्रिका का सम्पादक रहा, और इसमें अनेक शोध ग्रंथ प्रकाशित कराए । उसकी अनेक रचनाओं का प्रकाशन फ्रांस के साथ-साथ जर्मनी, बेल्जियम, ब्रिटेन, स्पेन एवं जापान देशों में वहां की भाषाओं में हुआ ।
रचनाएँ:
1. पिकार्डी का प्रादेशिक भूगोल – 1905
2. यूरोप का ह्रास – 1920
3. ओपनिवेशिक भूगोल – 1923
4. मानव भूगोल की समस्याएँ – 1942
5. विश्व भूगोल – 1947-48 – फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन व यूरोप के देशों का आर्थिक भूगोल
6. ग्रामीण बस्तियों पर अनेक शोध लेख
7. फ्रांस की मानचित्रावली
भौगोलिक देन:
डिमांजियाँ ने भौतिक भूगोल, आर्थिक एवं मानव भूगोल, प्रादेशिक भूगोल, ग्रामीण बस्तियाँ, परिवहन भूगोल पर अपने विचार प्रकट किए थे ।
(i) भौतिक भूगोल:
पिकार्डी व लिमोसियन पर लिखे शोध लेखों में अपरदन चक्र द्वारा भू-आकृतियों के विकास का विवरण था । उसके विचार डेविस से भिन्न थे । उसने भौतिक परिवेश में विकसित अपरदन चक्र का विचार सामने रखा । उसका चिन्तन अधिक व्यवहारिक था ।
(ii) मानव भूगोल:
1942 में उसने मानव भूगोल की समस्याएं (Problems De Geographic Humane) पुस्तक की रचना की । यह पुस्तक मानव भूगोल पर अनेक लेखों का संग्रह थी । मानव भूगोल को परिभाषित करते हुए बताया कि ‘मानव भूगोल मानव समूहों का उनसे भौगोलिक वातावरण के सम्बन्धों का अध्ययन करने वाला विषय है ।’ उसने मानव पर प्रकृति के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया, बल्कि मानव को वातावरण में परिवर्तन करने वाला प्रमुख कारक माना ।
मानव अपने कार्यों से भूदृश्यों का परिमार्जन करता है । एक उदाहरण द्वारा उसने बताया कि उपजाऊ भूमि पर ही कृषि उत्पादन अधिक मात्रा में हो, बल्कि मानव ने सिंचाई सुविधाओं के विचार द्वारा कम उपजाऊ भूमि से उत्कृष्ट उत्पादन प्राप्त कर लिया है । संचार साधनों का विकास पाताल-तोड़ कुओं का निर्माण, कृषि पौधों की नई-नई प्रजातियों का विकास मानव की वातावरण पर विजय के उदाहरण हैं ।
उसने मानव भूगोल में चार तथ्यों को शामिल किया, जो इस प्रकार हैं:
1. मानव जीवन पर प्राकृतिक वातावरण के प्रभाव का अध्ययन ।
2. मानव समुदाय पर सांस्कृतिक वातावरण के प्रभाव का अध्ययन ।
3 पृथ्वी तल पर प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप मानव समूहों के वितरण का अध्ययन ।
4. मानव द्वारा पृथ्वी तल पर स्थापित अनेक सांस्कृतिक भूदृश्य जैसे बस्ती, सड़के, गृह खेत आदि ।
(iii) ग्रामीण बस्ती भूगोल:
उसने अपनी पुस्तक Geographic Universelle में फ्रांस की छोटी ग्रामीण बस्तियों का वर्गीकरण व उनका मानचित्रण किया । उसने बताया कि ग्रामीण बस्तियों के बसाव पर कृषि कार्यों का प्रभाव पड़ता है । ग्रामीण पुरवों, कृषि प्रजातियों पर भी अपने विचार प्रस्तुत किए । बस्तियों के विकास में ऐतिहासिक कारकों का विश्लेषण किया । उसने ग्रामीण बस्तियों पर अनेक लेख ‘Annals’ पत्रिका में प्रकाशित कराए । ग्रामीण अधिवास पर शोध कमीशन की स्थापना, अन्तर्राष्ट्रीय भौगोलिक संघ में उसी के प्रयासों का परिणाम था ।
(iv) जनसंख्या भूगोल:
डिमाजियाँ ने सुदूर पूर्व देशों में जनसंख्या समूहन, नीग्रो समुदाय के लोगों का श्वेत समुदाय से सम्बन्ध पर अपने विचार प्रस्तुत किए ।
(v) नगरीय भूगोल:
नगरों के अध्ययन में भी उसकी रूचि थी । उसने पेरिस नगर का अध्ययन प्रस्तुत किया । तथा बड़े-बड़े नगरों के विकास पर भी विचार प्रस्तुत किए ।
(vi) अध्ययन विधि:
डिमांजियाँ ने आगमनात्मक विधि, ऐतिहासिक विकास जैसे विचारों को अपनाया ।
7. डी. फोन्टेनस (De Fontaines):
उसके विचार मानव भूगोल पर महत्वपूर्ण थे । मानव भूगोल किसी क्षेत्र के निवासियों का अपने वातावरण से संघर्ष का वर्णन करता है, तथा वह इन संघर्षो के परिणामों का भी विशलेषण करता है । मानव प्राकृतिक संकटों से संधर्ष करता हुआ आगे बढ़ता है । इनका वर्णन मानव भूगोल करता है, तथा वह मानव बस्तियों, परिवहन व उपनिवेशवाद का भौगोलिक अध्ययन करता है ।
8. डी. मारटोनी (De Martonne):
ईमेनुएल डी मारटोनी का जन्म 1873 में फ्रांस के ब्रिटनी स्थान पर हुआ था । 1899 में उसने इकोले नारमोन से स्नातक की उपाधि प्राप्त की । 1902 में डी. लिट व 1907 में डी.एससी. की उपाधि प्राप्त की । रेनेस व लियोन विश्वविद्यालयों में पढ़ने के बाद 1909 में उनकी नियुक्ति सारवोन विश्वविद्यालय में भूगोल के प्राध्यापक पद पर हुई, जहाँ उन्होंने 1944 तक निरन्तर कार्य किया । उसकी रूचि भौतिक भूगोल में थी । वह सारवोन की भौगोलिक संस्था का निर्देशक भी रहा ।
प्रमुख रचनाएँ:
i. भौतिक भूगोल की पाठ्य पुस्तक (Traite De Geographie Physique) 1909, 1925 व 1927 में भी इसके अंक प्रकाशित हुए ।
ii. ब्रिटनी प्रायद्वीप की तटीय भू-आकृति (Coastal Morphology of Brittany)
iii. कारपेथियन का भौतिक भूगोल (Physical Geography of Carpathians)
iv. वेलाचिया का प्रादेशिक भूगोल (Regional Geography of Wallachia) – 1902,
v. फ्रांस का भौतिक भूगोल (दो खण्ड) (Le Geographic Physique De La France) – 1942,
vi. फ्रांस की मानचित्रावली (Atlas De France) – 1943
vii. मध्य यूरोप का भूगोल (Europe Central) – 1931
भौगोलिक देन:
मारटोनी ने क्रास में भौतिक भूगोल को नया स्वरूप दिया । इस कारण यहां भौतिक भूगोल व मानव भूगोल में संतुलन स्थापित होने में मदद मिली । उसने काश की मानव भूगोल के सिद्धान्त पुस्तक का सम्पादन व प्रकाशन भी किया । विश्व भूगोल पुस्तक के लेखन कार्य द्वारा उसने प्रादेशिक भूगोल में भी विशेष योगदान किया । उसने Annals De Geographie नामक भूगोल पत्रिका का सम्पादन करते हुए अनेक उपयोगी शोध पत्रों का प्रकाशन कराया ।
1931 में पेरिस में अन्तर्राष्ट्रीय भौगोलिक कांग्रेस के आयोजन में सहयोग दिया । वह कई बार अमेरिका गया । वहाँ वह डेविस विद्वान के सम्पर्क में आया । 1912 में डेविस द्वारा आयोजित अन्तर्महाद्वीपीय पर्यटन सम्मेलन में शामिल हुआ । 1949 में यूनेस्को द्वारा न्यूयार्क में आयोजित ‘संसाधन संरक्षण एवं उपयोग’ सम्मेलन की अध्यक्षता की ।
9. राऊल ब्लैन्चार्ड (Roul Blanchard):
फ्रांस ब्लैचांर्ड को नगरीय भूगोल का जनक माना जाता है। उनसे पहले नगरीय भूगोल पर सर्वप्रथम डिमांजिया ने 1900 में पेरिस का नगरीय अध्ययन प्रकाशित कराया था । गालो ने पेरिस का नगरीय भूगोल लिखा था । 1913 मे लिवेन विले (Levain Ville) ने रूआं (Rouen) नगर का तथा 1923 में काएन (Coen) नगर का भूगोल लिखा ।
नचाई, ग्रेनोविल (Grenovle) में भूगोल का प्रोफेसर था । 1911 में उसने सर्वप्रथम ग्रेनोविल नगर पर नगरीय भूगोल पुस्तक की रचना की । इसमें नगर की बसाव स्थिति, बसाव स्थान, ऐतिहासिक विकास तथा वर्तमान प्रारूप का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया ।
उसने ग्रेनोविल में नगरीय भूगोलवेत्ताओं की एक संस्था (School of Urban Geography) संगठित की, जिसका उद्देश्य विभिन्न नगरों के अध्ययन पर जोर देना था । स्वयं ब्लैन्चार्ड ने लिले, नान्सी, लियोन्स मार्सेलीज, नाइस तथा वोर्डियोक्स नगरों पर अपने लेख प्रस्तुत किए ।
1922 में नगरीय भूगोल का विधि तंत्र (Methodology of Urban Geography) पर शोध लेख प्रकाशित कराया । ब्लैन्चार्ड ने नगरीय भूगोल के साथ-साथ ग्रामीण मकानों के प्रकारों का भी अध्ययन किया । फ्रांसीसी आल्पस के भौतिक भूगोल पर जो पुस्तक लिखी, उससे उसे देश के बाहर काफी प्रसिद्धि मिली ।
उसके द्वारा रचित अन्य ग्रन्थ इस प्रकार हैं:
i. पश्चिमी एशिया की पुस्तक (Asia Occidental)- इसका प्रकाशन फ्रांस की प्रसिद्ध ग्रन्थ माला विश्व भूगोल (Geographie Universelle) में हुआ था ।
ii. उत्तरी अमेरिका की पुस्तक् (L’ Amerique de Nord)- 1933 में प्रकाशित हुई ।
iii. पूर्वी कनाडा की पुस्तक (L’ Est du Canada Francis Quebee)- 1935 में दो खण्डों में प्रकाशित हुई ।
नगरीय भूगोल पर जीन गौटमेन (Jean Gottman) के विचार भी महत्वपूर्ण है । 1961 में उसने महानगरीय प्रदेशों के अध्ययन पर एक ग्रन्थ (Megalopolis : The Urbanized Northeastern Seaboard of the United States) प्रकाशित कराया । इसमें उसने महानगरों के ऐतिहासिक, भौतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पक्षों का विशलेषण प्रस्तुत किया । 1962 में उसने यूरोप महाद्वीप के महानगरों का अध्ययन प्रकाशित कराया ।
10. आन्द्रे सीगफ्रीड (Andre Siegfried):
वह राजनीतिक भूगोल का जाता था । सीगफ्रीड ने ‘कालिज डी फ्रांस’ में राजनीतिक एवं आर्थिक भूगोल के प्राध्यापक पद पर कार्य किया । उसकी उपलब्धियों से प्रभावित होकर 1945 में फ्रांसीसी अकादमी ने उन्हें अपना सदस्य बना लिया । उसने फ्रांस की चुनाव प्रणाली व राजनीतिक दलों की कार्य प्रणाली पर भौगोलिक कारकों के प्रभाव का विशलेषण किया ।
इनका प्रकाशन फ्रांस का राजनीतिक भूगोल (Tableau Politique de la France) नामक पुस्तक में हुआ । उसके विचार राजनीतिक भूगोल के विकास में महत्वपूर्ण सिद्ध हुए । सीगफ्रीड ने जिन अन्य भूभागों के राजनीतिक भूगोल पर अपनी पुस्तकों की रचना की, उनमें इंगलैण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका, लैटिन अमेरिका, कनाडा, न्यूजीलैण्ड, स्वेज नहर, पनामा नहर, और भूमध्य सागर शामिल है ।
यह पुस्तकें फ्रांसीसी भाषा में लिखी गई थी । इनका अनुवाद अन्य भाषाओं में होने से विदेशों में इन पुस्तकों की मांग बढ़ गई, और सीगफ्रीड के विचारों को प्रसिद्धि मिली । उसने आर्थिक भूगोल पर भी अपने विचार व्यक्त किए ।
फ्रांस में जीन अन्सेल (Jean Ancel) को भी राजनीतिक भूगोलवेत्ता के रूप में पहचाना जाता है । उसने यूरोप का राजनीतिक भूगोल (Geographique de Politique Europeane) ग्रन्थ का प्रकाशन तीन खण्डों में कराया । इसके अलावा उसने वलकान का जनसंख्या भूगोल, भू-राजनीतिक तथा सीमान्त क्षेत्रों का भूगोल पुस्तकों का प्रकाशन कराया । मध्य यूरोप व मेसीडोनिया पर भी उसने अपने विचार रखे थे, जिनका नाजी भू-राजनीतिज्ञों ने विरोध किया था । द्वितीय विश्व युद्ध में एक सैनिक कैम्प पर बमवारी के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी ।