ADVERTISEMENTS:
Read this article in Hindi to learn about the eleven main universities for development of geography in north India.
1. दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University):
यहां का भूगोल दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के एक अंग के रूप में कार्य करता है, जिसकी स्थापना 1959 में की गई थी । एस॰एम॰ भाटिया के नेतृत्व में इस स्नातकोत्तर विभाग की नींव रखी गई, जिन्होंने सयुंक्त राज्य के कन्सास विश्वविद्यालय से पी॰एच॰डी॰ की उपाधि प्राप्त की थी ।
इसी विभाग को वी॰एल॰एस॰ प्रकाशा राव, कुरियन, आर॰पी॰ मिश्रा, एम॰ रामचन्द्रन जैसे विद्वानों का नेतृत्व मिला है, तथा बालेश्वर ठाकुर, नूर मोहम्मद, आर॰बी॰ सिंह का कुशल एवं विद्वतापूर्ण निर्देशन प्राप्त हुआ है, जिनके शोध प्रपत्र, शोध रचनाएँ एवं पुस्तकों का लेखन एवं सम्पादन उल्लेखनीय है । प्रकाशा राव, जिनके बारे में पिछले मृत्युओं में बताया गया है, ने कलकत्ता का प्रादेशिक नियोजन, भारत में शोध कार्यों में प्रगति विषयों पर पुस्तकों की रचना की ।
ADVERTISEMENTS:
उनके बाद रामचन्द्रन व एस॰जी॰ बर्मन ने भूगोल विभाग को सँवारते हुए शोध कार्यो को आगे बढ़ाया । इन्होंने क्लार्क विश्वविद्यालय से अपनी शोध उपाधि प्राप्त की । बालेश्वर ठाकुर ने पटना विश्वविद्यालय के एल॰एन॰ राम के सम्मान में तथा अमेरिका कार्यरत अशोक दत्ता के सम्मान में महत्वपूर्ण शोध लेखों के संकलन से सम्बन्धित दो उपयोगी पुस्तकों का सम्पादन किया है ।
जिनका प्रकाशन Concept Publishing Co. ने किया है, जो भारत में भूगोल के उच्चतर विकास का प्रतीक है । उनका NAGI में योगदान महासचिव व अध्यक्ष के रूप में काफी प्रभावी रहा है, वह नगरीय भूगोल व भौगोलिक चिन्तन के विशेषज्ञ हैं ।
उन्होंने मई 2007 में अमेरिका में अशोक दत्ता के सम्मान में शोध पुस्तक का विमोचन कराया है । यहाँ पर सी॰पी॰ सिंह राजनीतिक भूगोल, आर॰बी॰ सिंह पर्यावरण एवं सुदूर संवेदन तथा नूर मोहम्मद कृषि भूगोल में विशिष्ठता रखते है । एस॰के॰ पाल को भू-आकृति विज्ञान के लिए जाना जाता है ।
यह विश्वस्तर का महत्वपूर्ण विभाग NAGI की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र हैं, जहाँ से प्रतिवर्ष छमाही स्तर पर ‘Annals’ भूगोल पत्रिका का प्रकाशन एवं सम्पादन किया जाता है । यहाँ राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल संघ (IGU) का इक्कीसवाँ अधिवेशन इसी विश्वविद्यालय में आयोजित किया गया था ।
2. जामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (Jamai University, New Delhi):
यह भूगोल का अपेक्षाकृत नया केन्द्र है । यह स्नातकोत्तर, व शोध स्तर का भूगोल शिक्षण केन्द्र है। काजी साहब की अध्यक्षता में इस विभाग की स्थापना हुई थी । माजिद हुसैन ने इस विभाग को सँवारा वह कृषि, जनसंख्या, मानव, भौगोलिक चिन्तन, नगरीय भूगोल के विशेषज्ञ है, तथा उनकी अनेक रचनाएं प्रकाशित हुई हैं ।
ADVERTISEMENTS:
3. जवाहर-लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (Jawaharlal Nehru University, New Delhi):
इस विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की स्थापना 1969 में एक बहु-विषयक के रूप में हुई ओर विभाग का नाम Centre for the Studies of Regional Development रखा गया, जिसमें, भूगोल के साथ-साथ अर्थशास्त्र, गणित, जनसंख्या विशेषज्ञों को शामिल किया गया । मुनीस रजा को इस विभाग का नेतृत्व करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, उन्होंने इस विभाग को शीघ्र ही भूगोल में उत्कृष्ट शोध कार्यों का केन्द्र बना दिया, माना जाता है ।
उन्होंने भारतीय सामाजिक वैज्ञानिक शोध परिषद (ICSSR) के अध्यक्ष, दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति पद को सुशोभित किया । वह NIEPA के भी निर्देशक रहे । उन्होंने पर्यावरण, संसाधन भूगोल, प्रादेशिक नियोजन, ऐतिहासिक भूगोल व नगरीय भूगोल के विकास पर अधिक ध्यान दिया । उन्होंने लगभग 46 पुस्तकों का लेखन, सह लेखन एवं सम्पादन किया ।
सामाजिक वैज्ञानिक परिषद से प्रकाशित भूगोल में शोध सर्वेक्षण पर प्रकाशित अंकों का नियमित रूप से सम्पादन किया । 1972 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्थापित भूगोल के इस विभाग का नेतृत्व अजाजुद्दीन अहमद ने सम्हाला । उन्होंने Human Geography of Indian Desert पर अपना शोध कार्य किया था ।
ADVERTISEMENTS:
उनकी रूचि सामाजिक भूगोल के विकास में रही । 1999 में उनकी पुस्तक Social Geography of India प्रकाशित हुई । उन्होंने अलीगढ़ की भूगोल पत्रिका The Geographer, नागी की शोध पत्रिका Annals का सम्पादन किया व ICSSR द्वारा प्रकाशित Journal of Abstracts and Review का सम्पादन किया । नागी की भौगोलिक गतिविधियों को विकसित करने में उनका विशेष योगदान है ।
विभाग की अन्य महान विभूतियों में अमिताभ कुन्दु, महेन्द्र प्रेमी, असलम महमूद, सुदेश नांगिया, हरजीत, सरस्वती राजू शामिल हैं । इन्होंने, अधिवास भूगोल, सांख्यकीय भूगोल, संसाधन भूगोल महिला भूगोल, जनसंख्या भूगोल, प्रादेशिक भूगोल को विकसित करने में विशेष योगदान दिया है ।
4. पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ (Punjab University, Chandigarh):
यद्यपि पंजाब विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की स्थापना 1944 में लाहौर में हो गई थी, लेकिन देश विभाजन के पश्चात यह विश्वविद्यालय स्थानान्तरित होकर गवर्नमेंट कॉलिज, लुधियाना में स्थापित हुआ । जहां ए॰एन॰ कपूर ने इसकी अध्यक्षता की थी । 1960 में पंजाब सरकार ने इसका नवीन परिसर चंडीगढ़ में स्थापित किया ।
यह उत्तर भारत में भूगोल का प्रमुख शोध केन्द्र व उच्च अध्ययन का केन्द्र माना जाता है, जिसका नेतृत्व ओ॰पी॰ भारद्वाज, पी॰के॰ सरकार, गुरूदेव सिंह गोसाल, ए॰बी॰ मुखर्जी, गोपालकृष्णन, आर॰सी॰ चान्दना, स्वर्णजीत मेहता व के॰डी॰ शर्मा सूर्यकान्त ने किया है । गुरुदेव सिंह गोसाल जिन्होंने 1956 में अमेरिका के जी॰टी॰ ट्रिवार्था के निर्देशन में ‘A Geographical Analysis of India’s Population’ पर अपना शोध कार्य पूरा किया था ।
गोसाल के अध्यक्ष पद पर आमीन होने के बाद इस विभाग ने विशेष तरक्की की, और यह जनसंख्या भूगोल के अध्ययन केन्द्र के रूप में देश में पहचान बनाने लगा, जो आज भी जारी है । यहाँ जनसंख्या के विभिन्न पक्षों का गहन अध्ययन होने से देश के भूगोलवेत्ताओं की रूचि जनसंख्या भूगोल में बड़ी ।
यही एक विभाग है, जहाँ पिछले बीस वर्षों से एक शोध पत्रिका नियमित रूप से त्रैमासिक स्तर पर ‘Population Geographers’ के नाम से प्रकाशित की जा रही है, जिसमें जनसंख्या भूगोल के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित शोध लेखों को प्रकाशित किया जाता है ।
यह गोसाल व उनके साथियों के प्रयासों का प्रतिफल है । गोसाल ने NAGI के संस्थापक अध्यक्ष होने के नाते नागी का प्रथम वार्षिक अधिवेशन 1979 में चण्डीगढ़ में आयोजित किया था । यह विभाग जनसंख्या के साथ-साथ नगरीय भूगोल, कृषि एवं भूमि उपयोग, सांस्कृतिक भूगोल के अध्ययन के लिए भी पहचान रखता है ।
ए॰बी॰ मुखर्जी ने अमेरिका के लुसियाना स्टेट के प्रोफेसर एफ॰बी॰ निफेन के निर्देशन में Cultural Geography of the Hindu Jaths of Western Uttar Pradesh पर अपना शोध कार्य 1960 में पूरा किया था । 1966 में भूगोल विभाग में आने के बाद इन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए 1981 में इस विभाग का अध्यक्ष पद सम्हाला । उन्होंने अनेक शोध पत्रों के लेखन व प्रकाशन के साथ कई राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल सम्मेलनों में भाग लिया है । इनके बाद गोपाल कृष्णन जो बहुमुखी प्रतिमा के धनी हैं, ने विभाग का पद भार सम्हाला ।
उन्होंने लगभग 100 से ऊपर शोध पत्रों 9 पुस्तकों व 3 मोनोग्रामों का प्रकाशन कराया है । शोध क्षेत्रों व एम॰फिल॰ के छात्रों का कुशल निर्देशन किया है । वह जनसंख्या, विकास नियोजन व नगरीय भूगोल के विशेषज्ञ माने जाते हैं। उन्होंने नई दिल्ली के National Institute of Urban Affairs में प्रोफेसर पद पर कार्य किया है ।
ADVERTISEMENTS:
उनको विदेशों में उच्च शिक्षा सम्मान मिला है । राज्य सरकार की विभिन्न परियोजनाओं में सलाहकार के रूप में कार्य किया है । हरियाणा में कुरूक्षेत्र, रोहतक विश्वविद्यालय स्तर के भूगोल शिक्षा के केन्द्र हैं । यहाँ पर जसवीर सिंह, नीना सिंह, का विशेष योगदान है ।
5. काश्मीर विश्वविद्यालय, श्रीनगर (Kashmir University, Srinagar):
यहाँ के भूगोल विभाग के संस्थापक माजिद हुसैन हैं, जिनके निर्देशन में यहाँ के भूगोल विभाग का नाम भूगोल एंव प्रादेशिक विकास (Department of Geography and Regional Planning) रखा गया । उन्होंने इस विभाग को स्नातकोत्तर व शोध शिक्षा के केन्द्र के रूप में स्थापित किया । माजिद हुसैन के जामिया मिलिया, दिल्ली में चले जाने के बाद रईस अख्तर इसके अध्यक्ष बने, जिनका कृषि भूगोल में विशेषीकरण है ।
राजस्थान में भूगोल का विकास:
राजस्थान में पिछले तीन दशकों में भूगोल विषय का तीव्रता से विकास हुआ है । स्नातकोत्तर व शोध स्तर पर इसका विकास प्रमुख रूप से उदयपुर, जयपुर, जोधपुर में हुआ है। बाद में बीकानेर, अजमेर, कोटा, पाली, भरतपुर, भीलवाड़ा, डौसा, चुरू, श्रीगंगानगर, डूंगरपुर, सवाई माधोपुर, नागौर, हनुमानगढ़ में भी यह विषय स्नातकोत्तर व स्नातक स्तर पर पढ़ाया जा रहा है ।
राजस्थान के भूगोलविदों ने Rajasthan Geographical Association की स्थापना करके इस विषय के अध्ययन अध्यापन को प्रोत्साहित किया है । यह परिषद प्रतिवर्ष राज्य के किसी न किसी भूगोल विभाग में संगोष्ठी का आयोजन करती है, जिसमें राज्य के सभी महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों के भूगोलवेत्ता अपने शोध पत्रों की प्रस्तुति करते हैं ।
यह परिषद प्रतिवर्ष शोध पत्रिका Annals of the Rajasthan Geographical Association के नाम से शोध पुस्तिका प्रकाशित करती है । वर्तमान में इसका मुख्यालय भीलवाड़ा के गवर्नमेंट कालेज को बना दिया गया है । इस राज्य में भूगोल को विकसित करने का श्रेय अमरेन्द्र नाथ महाचार्य (उदयपुर), इन्द्रपाल (जयपुर) बी॰सी॰ मिश्रा व ए॰आर॰ तिवारी (जोधपुर), महेश नारायण निगम (अजमेर) को है ।
इस प्रदेश के अधिकांश महाविद्यालय राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से सम्बद्ध है । वर्तमान में जोधपुर, उदयपुर, अजमेर, बीकानेर के विश्वविद्यालयों में भूगोल के स्नातकोत्तर व शोध विभाग है । राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में इन्द्रपाल के 1987 में आगमन ने इसे नया रूप दिया ।
इन्द्रपाल का शोध विषय Industrial Planning in U.P. था, इसलिए उनकी रूचि औद्योगिक भूगोल में थी । उन्होंने देश व विदेश में होने वाली भूगोल संगोष्ठियों में सदैव सक्रिय रूप से भाग लिया । वह NAGI के संस्थापक सदस्यों में से थे । 1992 में इसका अधिवेशन जयपुर में आयोजित करवाया । उन्होंने National Cartographic Association व Institute of Energy and Environment Studies में भी सक्रिय रूप से भाग लिया ।
वह UGC व ICSSR द्वारा गठित कई समितियों के सदस्य भी रहे। उन्होंने Asian Environmental Council का भी गठन किया था । उन्होंने लगभग पचास शोध पत्रों, दस पुस्तकों का प्रकाशन व अनेक शोधार्थियों को पीएच॰डी॰ की उपाधि हेतु निर्देशन दिया । उनके पश्चात आर॰बी॰सिंह, एच॰एस॰ शर्मा, लक्ष्मी शुक्ला ने इस विभाग का नेतृत्व किया है ।
जोधपुर में भूगोल विभाग की स्थापना बी॰सी॰ मिश्रा के नेतृत्व में 1963 में हुई । मिश्रा के सागर जाने के बाद ए॰के॰ तिवारी ने इस विभाग को विकसित किया, जिन्होंने 1964 में Land Utilisation in Jaunsar – Bawar पर अपना शोध कार्य किया था । इनकी रूचि भूमि उपयोग एवं अधिवास भूगोल के अध्ययन में रही ।
इनके शोध पत्रों का प्रकाशन The Deccan Geographer, Indian Geographical Journal में प्रमुख रूप से हुआ । उदयपुर का सुखाड़िया विश्वविद्यालय ए॰एन॰ भट्टाचार्य की देन है, जिनका शोध कार्य Types of Rural Habitations in the Upper Ganga Plain पर था । इनके बाद दिनेश भारद्वाज, एन॰एल॰ गुप्ता, सुनीता कोठारी, ने इस विभाग का विकास किया । उदयपुर में पी॰आर॰ व्यास का योगदान भी भूगोल में महत्व रखता है ।
यहां कृषि, भूमि उपयोग, विपणन भूगोल, नगरीय भूगोल, शैक्षणिक भूगोल, स्वास्थ्य भूगोल पर शोध कार्य हुए हैं । एल॰एन॰ वर्मा व आर॰एन॰ लोढ़ा ने भी व नगरीय अधिवास पर अध्ययन किए हैं । पर्यावरण को भी अध्ययन का विषय चुना गया है । बीकानेर में अली अहमद ने भूगोल विभाग को शोध स्तर पर विकसित किया है।
उत्तरप्रदेश एवं उत्तराखण्ड में भूगोल का विकास:
यह राज्य भूगोल के विकास में अग्रणी है । यहाँ आगरा विश्वविद्यालय ने भूगोल में प्रारम्भ में शोध उपाधि प्रदान करने में अपना विशेष स्थान बनाया । इसके साथ अलीगढ़ व बनारस विश्वविद्यालयों ने इसका उच्च स्तर पर विकास किया है, यह दोनों केन्द्रीय विश्वविद्यालय है ।
यदि बनारस को नगरीय अध्ययनों का पर्यायवाची कहें, तो अलीगढ़ को ग्रामीण अध्ययनों का पर्यायवाची कहा जाता है । इलाहाबाद, गोरखपुर, विश्वविद्यालय भी इसके प्रभावी अध्ययन केन्द्र है । इलाहाबाद, गोरखपुर, विश्वविद्यालय भी इसके प्रभावी अध्ययन केन्द्र हैं ।
यहाँ पर अनेक नगरों में भूगोल की शिक्षा स्नातकोत्तर व शोध स्तर पर (विशेष रूप से पी॰जी॰ कालेजों में) प्रदान की जा रही है । इनमें आगरा, कानपुर, मुरादाबाद पुराने केन्द्र है । इन नगरों के कालेजों में भूगोल का अध्यापन 1950 से पूर्व हो गया था ।
आगरा का सेण्ट जान्स कालेज देश का पहला कालेज था, जहां 1947 में भूगोल में एम॰ए॰ की पढ़ाई शुरू हुई थी । 1950 के बाद राज्य के जिन नगरों में भूगोल के स्नातकोत्तर विभाग स्थापित हुए । उनमें ज्ञानपुर, कानपुर, मेरठ, मथुरा, अलीगढ़, बिजनौर, हापुड़, बड़ौत, रामपुर, खुर्जा, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, अमरोहा, चाँदपुर, उन्नाव, शिकोहाबाद, भौगांव, फर्रूखाबाद, मैनपुरी आदि शामिल हैं ।
इनके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के अनेक नगरों जैसे सुलतानपुर, फैजाबाद, जौनपुर, बस्ती, देवरिया, पाडूरीना, कुशीनगर, बलिया, झांसी, ओम, बांदा, हरदोई, जौनपुर, भी उल्लेखनीय हैं । उत्तराखण्ड में गढ़वाल (श्रीनगर) व कुमायुँ (नैनीताल) विश्वविद्यालयों में भूगोल के स्नातकोत्तर विभाग है । इनके अलावा टिहरी, देहरादून, पीढ़ी, गोपेश्वर, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, रूद्रपुर, ऋषिकेश, भी स्नातकोत्तर शिक्षा के केन्द्र हैं । यहाँ पर अलीगढ़, आगरा, मेरठ, वाराणसी, इलाहाबाद व गोरखपुर विश्वविद्यालयों में भूगोल के अध्ययन का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है ।
6. इलाहाबाद विश्वविद्यालय (Allahabad University):
यहाँ स्नातकोत्तर भूगोल विभाग की स्थापना 1946 में रामनाथ दुबे की अध्यक्षता में हुई । उन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय से गंगा-यमुना दोआब से सम्बन्धित अध्ययन पर डी॰लिट॰ की उपाधि प्राप्त की थी । वह सम्भववाद की विचारधारा के समर्थक थे । उन्होंने प्रादेशिक, आर्थिक एंव मानव भूगोल का विकास किया ।
उन्होंने Allahabad Geographical Society का गठन किया जिसका प्रमुख उद्देश्य National Geographer नामक शोध पत्रिका का प्रकाशन करना रहा है । इस पत्रिका ने भौगोलिक शोधों को प्रोत्साहित किया है । प्रोफेसर दुबे के बाद मौहम्मद नासिर खान ने इस विभाग का कार्यभार सम्हाला । उनकी रूचि मानचित्रण, जनसंख्या भूगोल, आर्थिक भूगोल में थी ।
राम लखन द्विवेदी ने इलाहाबाद के नगरीय अध्ययन पर शोध कार्य किया । वह नगरीय भूगोल राजनीतिक भूगोल, मानव भूगोल के विशेषज्ञ हैं । उन्होंने इन विषयों पर पुस्तकों का प्रकाशन भी कराया है । राम नाथ तिवारी ने औद्योगिक भूगोल को विकसित करने के साथ-साथ भू-आकृत्ति विज्ञान, के अध्ययन पर अपना ध्यान केन्द्रित किया तथा लगभग दर्जन भर शोध छात्रों को इससे सम्बन्धित विषयों पर निर्देशन दिया ।
उन्होंने भू-आकृत्ति विज्ञान का प्रयाग सम्प्रदाय विकसित किया तथा भौगोलिक अध्ययन के लिए क्षेत्रीय सर्वेक्षण पर जोर दिया । डी॰एस॰ लाल को उनकी पुस्तक जलवायु विज्ञान एवं समुद्र विज्ञान के लिए पहचाना जाता है । इस पुस्तक की लोकप्रियता ने उनके भौतिक भूगोल के लेखन के लिए प्रेरित किया है । सविन्द सिंह भू-आकृति विज्ञान एवं पर्यावरण पुस्तकों के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में पहचान रखते हैं ।
उन्होंने भू-आकृति विज्ञान को नया रूप प्रदान किया तथा इसको व्यवहारिक रूप देने के लिए इससे सम्बन्धित शोध कार्यों को बढ़ावा देते हुए 18 शोध प्रबंधों का निर्देशन किया है । उनकी कुल आठ रचनाएँ हैं । इन दोनों विषयों पर हिन्दी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पुस्तकों की रचना की है ।
वह आज देश के भू-आकृति विज्ञान के विशेषज्ञ माने जाते हैं, जिन्होंने डस विषय को स्वयं क्षेत्रीय अनुभव के आधार पर विकसित किया है । राम नगीना सिंह नगरीय भूगोल के विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने एक लम्बे समय तक गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर में सेवा की है । उन्होंने भौगोलिक शब्दकोष की रचना की है । एच॰एन॰ मिश्रा को भी नगरीय भूगोल के विशेषज्ञ के रूप में पहचाना जाता है । वह भूगोल की संगोष्ठियों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले विद्वान हैं ।
इस विश्वविद्यालय के लेखराज सिंह भी एक माने भूगोतवेत्ता हैं, जिनकी प्रयोगात्मक भूगोल आज भी सरल एवं सुबोध भाषा में रचित पाठ्य पुस्तक मानी जाती है । इन्होंने 1956 में उत्तरप्रदेश के तराई प्रदेश के मानव भूगोल पर अपना शोध कार्य पूरा किया । गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में प्रोफेसर पद पर कार्य करते हुए Planning Atlas of U.P का प्रकाशन कराया, जो अत्यन्त उपयोगी है । उन्होंने लगभग 80 शोध पत्रों का प्रकाशन कराया है व 15 पुस्तकों की रचना की है ।
7. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University):
यहाँ पर स्नातकोत्तर भूगोल विभाग की स्थापना देश में सर्वप्रथम 1931 में की गई थी । इबार्दुर रहमान इसके संस्थापक अध्यक्ष बने और भूगोल की विषय सामग्री को संकलित किया । समय के साथ-साथ यह विभाग एस॰एम॰ ताहिर रिजवी, एस॰एम॰ अली, मोहम्मद शफी, एम॰ अन्नस, आभा लक्षमी सिंह, अली मोहम्मद के नेतृत्व में काम करता रहा है ।
प्रथम चारों विद्वानों ने विदेश में जाकर अपना शोध कार्य किया । इनमें ताहिर रिजवी, संसाधन भूगोल, एस॰एम॰ अली, मानचित्र विज्ञान, मोहम्मद शफी कृषि भूमि उपयोग, अनस ऐतिहासिक एवं राजनीतिक भूगोल के विशेषज्ञ बने ।
ताहिर रिजवी प्रथम भारतीय भूगोलवेत्ता के रूप में 1941 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के भूमि एवं भूगोल खण्ड के अध्यक्ष चुने गऐ थे । उनका अध्यक्षीय भाषण Conservation of India’s Natural Resources पर था । इसमें उन्होंने भूगोल के व्यवहारिक (Applied) पक्ष का समर्थन किया, उनके श्रेष्ठ अध्यापन ने ऐसे महान भूगोलविदों को जन्म दिया, जिन्होंने देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में भूगोल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।
मोहम्मद शफी ने इस विभाग का पद भार 1948 में ही सम्हाल लिया था । विभाग से अनेक ख्याति प्राप्त भूगोलविदों एस॰एम॰ अली, काजी सईदउद्दीन अहमद, नफीस अहमद, के अन्यत्र महत्वपूर्ण पदों पर चले जाने के बाद वह वरिष्ठतम भूगोलविद् के रूप में स्थापित हो गए ।
1956 में उन्होंने लन्दन विश्वविद्यालय के डडले स्टाम्प के निर्देशन में अपना शोध कार्य पूरा किया । उनका शोध विषय ‘Land Utilization in Eastern Uttar Pradesh’ पर था, जिसकी प्रशंसा स्वयं स्टाम्प ने ब्रिटेन से प्रकाशित होने वाली भूगोल पत्रिका ‘Geographical Review’ के शोध लेख Measurement of Land में उनके विचारों को उद्घृत करते हुए की ।
1962 में उन्होंने भूगोल विभाग के अध्यक्ष पद का कार्यभार सम्हाला । उन्होंने भारत के विभिन्न भागों के कृषि एवं ग्रामीण भूमि उपयोग पर अध्ययनों को बढ़ावा दिया । विशेष रूप से उत्तर भारत को अपना अध्ययन क्षेत्र चुना और जनपद स्तर पर भूमि उपयोग सर्वेक्षण, शस्य विंविधता, शस्य गहनता, शस्य संयुक्त प्रदेश, कृषि उत्पादन एंव पोषकता, कृषि उत्पादन-उपयोग, पौष्ठिकता एवं कृषि रोग, कृषि उत्पादन क्षमता व संभाविता, बंजर भूमि एवं शुष्क कृषि पर कार्यों को बढ़ावा दिया ।
उन्होंने अनेक अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय संगोष्ठियों में सक्रिय रूप से भाग लिया है व शोध पत्रों की प्रभावी प्रस्तुति द्वारा भारतीय भूगोल को उच्च सम्मान दिलाया है । उनके प्रकाशित शोध पत्रों की संख्या पचास से भी ऊपर है । उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि यह विश्वविद्यालय Geographer नाम शोध पत्रिका का नियमित रूप से प्रकाशन कर रहा है ।
1968 में नई दिल्ली में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस में सक्रिय भाग लेते हुए इसके तत्वाधान में अलीगढ में भूमि उपयोग सम्बन्धी संगोष्ठी का आयोजन किया । 1983 में नागी का पाँचवा सम्मेलन अलीगढ़ में आयोजित कराया । 1993 में नागी के अलीगढ़ अधिवेशन में उन्होंने इसकी अध्यक्षता की । उन्हें अनेक भारतीय व विदेशी संस्थाओं द्वारा पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है ।
ब्रिटेन की Royal Geographical Society ने उन्हें मानक सदस्य बनाया । यूरोप के विभिन्न देशों, रूस व पूर्वी अफ्रीका ने उन्हें विशेष सम्मान दिया है । भारत की विभिन्न भौगोलिक व सम्बद्ध संस्थाओं, जिनमें उनकी भागीदारी प्रभावी सदस्य के रूप में रही है, उनमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, इण्डियन नेशनल साइंस एकेडमी, शोध एवं प्रशिक्षण की राष्ट्रीय परिषद (NCERT), विज्ञान एवं तकनीकी विभाग (Department of Science and Technology) शामिल है । 2001 में उन्हें पद्मश्री का गौरवपूर्ण सम्मान दिया गया ।
उन्होंने स्वयं अलीगढ़ भूगोल परिषद के तत्वाधान में जिन ग्रन्थों का प्रकाशन कराया, उनमें कुछ इस प्रकार हैं:
Land Utilization in Eastern Uttar Pradesh (1960), Arab Geography in the 9th and 10th Century (1965), Geography of Transhumance (1965), Studies in Applied and Regional Geography (1977), Proceedings of the Symposium on Land use in Developing Countries (1972) प्रमुख हैं । 2000 में South Asia, 2002 में Central Asia व हाल ही में प्रकाशित Agricultural Geography– Concepts, Principles and Processes रचनाएँ प्रमुख हैं ।
मौहम्मद अनस ने कैनबरा विश्वविद्यालय के ओ॰एच॰के॰ स्पेट के निर्देशन में पापुआ- न्यूगिनी के भूगोल पर शोध कार्य किया व उससे सम्बन्धित लेखों का प्रकाशन करवाया । एस॰एम॰ रफीउल्लाह ने नगरों के कार्यात्मक वर्गीकरण व गणीतीय भूगोल पर अपनी ख्याति प्राप्त की । यह विभाग देश में ग्रामीण भूमि उपयोग एवं कृषि उत्पाद भूगोल के रूप में विशेष पहचान रखता है ।
8. गोरखपुर विश्वविद्यालय (Gorakhpur University):
इस विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की स्थापना 1958 में स्नातक स्तर पर व 1959 में स्नातकोत्तर स्तर पर हुई थी, जिसके संस्थापक अध्यक्ष महात्मा सिंह थे, जिन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से पीएच॰डी॰ की उपाधि प्राप्त की थी । उनका शोध विषय पूर्वी उत्तर प्रदेश के भूमि उपयोग पर था । गंगा-घाघरा दोआब उनके अध्ययन का खास क्षेत्र था ।
1963 में इस विभाग की अध्यक्षता सुबोध चन्द्र बोस ने की, जिन्होंने इससे पूर्व नेशनल एटलस संस्थान (NATMO), व कर्नाटक विश्वविद्यालय में कार्य किया था । उनकी विशेषज्ञता हिमानी भू-आकृत्ति विज्ञान में थी । उन्होंने गंगोत्री, यमुनोत्री व समीपवर्ती हिमनदियों का क्षेत्रीय सर्वेक्षण किया था ।
पश्चिमी एवं मध्य हिमालय, काश्मीर घाटी, उत्तराखण्ड की दुर्गम घाटियाँ, हिमालय की झीलें, सिंघ-गंगा जल विभाजक प्रदेश को अपना अध्ययन क्षेत्र चुना । सुन्दरवन, दण्डकारण्य व विशाखापटनम बंदरगाह का भी अध्ययन किया । उन्होंने अपनी पहचान विशिष्ट भू-वैज्ञानिक के रूप में कराई थी ।
1965 में बोस की सेवानिवृत्ति के पश्चात उजागर सिंह को इस विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग की अध्यक्षता का अवसर मिला । वह नगरीय भूगोल के विशेषज्ञ थे । उन्होंने डडले स्टाम्प के निर्देशन में ‘Allahabad : A Study in Urban Geography’ विषय पर 1956 में शोध उपाधि प्राप्त की थी । उन्होंने भूगोल के अध्ययन एंव अध्यापन को एक नया आयाम दिया ।
विषय के पाठयक्रमों का विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अनुरूप नवीनीकरण किया तथा नगरीय भूगोल, ग्रामीण अधिवास भूगोल, राजनीतिक भूगोल का स्नातकोत्तर स्तर पर अध्यापन शुरू कराया । राष्ट्रीय संगोष्ठियों, ग्रीष्मकालीन शिक्षण शिविर व कार्यशालाओं का आयोजन समय-समय पर किया ।
1968 में नई दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस के अधिवेशन में नगरीय भूगोल संगोष्ठी का निर्देशन किया । 1972 में 22वीं भूगोल कांग्रेस के मांट्रियल अधिवेशन में भाग लिया । उनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं- भारत का आर्थिक एवं प्रादेशिक भूगोल, नगरीय भूगोल, भौगोलिक विचारधाराएँ । उन्होंने केवल नगरों के बदलते भूमि उपयोग, व्यवहारिक भूगोल, पर भी लेखन कार्य किया ।
ताप्ती नदी के मार्ग परिवर्तन एवं उसका अधिवास पर प्रभाव परियोजना पर भी कार्य किया । 1979 में जगदीश सिंह ने भूगोल विभाग के अध्यक्ष पद का भार सम्हाला, और भौगोलिक शोध को नया आयाम दिया । उन्होंने अपना शोध कार्य Transport Geography of South Bihar विषय पर आर॰एल॰ सिंह के निर्देशन में पूरा किया ।
भूगोल की नई शाखाओं नियोजन भूगोल, राजनीतिक, औद्योगिक, व्यवहारिक, विपणन, परिवहन, ग्रामीण विकास, जनसंख्या, पर्यटन को विकसित किया । उन्होंने प्रति वर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के अवसर पर भौगोलिक सम्मेलन के आयोजन की परम्परा को विकसित किया । उन्होंने ग्रामीण विकास संस्थान की स्थापना की ।
2002 में नागी द्वारा आयोजित भारतीय भूगोल कांग्रेस के दरभंगा अधिवेशन की अध्यक्षता की । 1997 में वी॰के॰ श्रीवास्तव ने इस विभाग का पदभार सम्हालने के पश्चात विपणन भूगोल के विकास पर प्रमुख रूप से ध्यान दिया । वह IGU में विपणन भूगोल आयोग के सभापति रहे तथा विभिन्न देशों में आयोग द्वारा आयोजित संगोष्ठियों का संचालन किया ।
1998 में नागी के वार्षिक अधिवेशन का आयोजन किया । उन्होंने (Association of Marketing Geographers) संस्था की स्थापना पत्रिका (Market Studies) प्रकाशन के उद्देश्य से की । उन्हें UCG ने सागर विश्वविद्यालय में बिजिटिंग प्रोफेसर नियूक्त किया है । उनके बाद हीरालाल ने भौगोलिक सम्मेलनों व गोष्ठियों का आयोजन करने में सक्रिय भूमिका निभाई ।
नगरीय व जनसंख्या भूगोल उनके प्रमुख विषय हैं । उन्होंने जनसंख्या भूगोल, प्रयोगात्मक एवं सांख्यकीय भूगोल पर पुस्तकों की रचना की है। इनके साथ यहां पर बी०पी० राव ने नगरीय भूगोल एवं पारिस्थितिकी, हरिहर गिरि ने भूमि उपयोग, जगत नारायण पाण्डे ने कृषि एवं संसाधन भूगोल के॰आर॰ दीक्षित ने भौगोलिक चिन्तन पर उल्लेखनीय कार्य किया है ।
एस॰सी॰ बोस के समय यहाँ Association of North Indian Geographers नाम से भूगोलवेत्ताओं के एक संघ की स्थापना की गई थी, जिसने 1965 में ‘Oriental Geographer’ नामक भौगोलिक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया । 1968 में उजागर सिंह ने इस संघ का नाम उत्तर भारत भूगोल परिषद रख दिया व पत्रिका का नाम उत्तर भारत भूगोल पत्रिका कर दिया । इस पत्रिका द्वारा श्रेष्ठ शोध पत्रों का प्रकाशन नियमित रूप से होता रहा है ।
9. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University):
इस विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर भूगोल विभाग की स्थापना 1946 में एच॰एल॰ छिब्बर की अध्यक्षता में हुई । वह मूलत: भूगर्भशास्त्री थे । इसी कारण उनकी रूचि भौतिक भूगोल में थी । उन्होंने पेरिस विश्वविद्यालय से डी॰लिट की उपाधि प्राप्त की थी । 1936 में उनकी नियुक्ति रंगून विश्वविद्यालय में भूगोल एवं भूगर्भशास्त्र के अध्यक्ष पद पर हुई थी । इस अवसर का लाभ उन्होंने बर्मा का अध्ययन करने पर लगाया ।
उन्होंने बर्मा की भौगार्मिक संरचना, खनिज संसाधन, भौतिक दशा पर पुस्तकों की रचना की । इसके साथ-साथ भारत के भौतिक आधार व आर्थिक भूगोल पर भी पुस्तकों की रचना अंग्रेजी भाषा में की । 1955 में उनके असामयिक निधन के पश्चात राम लोचन सिंह ने इस विभाग का नेतृत्व सम्हाला, और 1977 तक विभाग का कुशलता के साथ नेतृत्व किया व विभाग को भूगोल का वाराणसी सम्प्रदाय (Varanasi School of Geography) के रूप में स्थापित किया ।
उन्होंने लन्दन विश्वविद्यालय से डडले स्टाम्प के निर्देशन में ‘Banaras- A Study in Urban Geography’ विषय पर शोध कार्य किया था । उन्होंने अनेक शोध पत्रों, पुस्तकों का लेखन, भौगोलिक संगोष्ठियों का आयोजन, कुशल शोध निर्देशन द्वारा भूगोल में जो योगदान दिया, उसके कारण उन्हें भारतीय नगरीय भूगोल का पिता ‘Father of Indian Urban Geography’ माना जाता है ।
उन्होंने भूगोल की लगभग सभी शाखाओं को विकसित किया । वह ऐसे भूगोलविद रहे, जिन्हें भूगोल की सभी शाखाओं का समुचित ज्ञान था । उनके निर्देशन में जिन पत्रों ने शोध कार्य पूरा किया, वह सभी देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में भूगोल विभाग के अध्यक्ष पद पर आसीन रहे हैं ।
आर॰एल॰ सिंह के नेतृत्व में अनेक राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया गया । 1966-67 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस के भूगर्भशास्त्र एवं भूगोल सेक्शन में Morphometric Analysis of Terrain नाम लेख प्रस्तुत किया । 1968 में नई दिल्ली के अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस (IGU) में संगठन सचिव के रूप में कार्य किया ।
उनके प्रयासों से IGU के अधीन मानसून एशिया में ग्रामीण अधिवास (Rural Settlements in Monsoon Asia) आयोग का गठन हुआ । 1972 में मांट्रियल में तथा 1976 में मास्को में विकासशील देशों में ग्रामीण अधिवासों का बदलता प्रारूप पर एक अध्ययन दल का गठन किया गया, व उनमें भाग लिया ।
1971 व 1975 में बनारस विश्वविद्यालय तथा 1971 में टोकियो व 1974 में न्यूजीलैण्ड में अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठयों के आयोजन के साथ सक्रिय रूप से भाग लिया । 1971 में प्रकाशित India : A Regional Geography भारतीय भूगोल के लिए उनकी अमूल्य देन है ।
इससे पूर्व उन्होंने 1968 में India : A Regional Studies का प्रकाशन कराया था । भारत के भूगोलविदों को देश का भूगोल का ज्ञान प्रथम बार भारतीय विद्वानों द्वारा रचित पुस्तक द्वारा प्राप्त हुआ यह पुस्तक भारत के प्रत्येक प्रदेश का सूक्ष्मतम विशलेषण प्रस्तुत करती है, व शोध के लिए आधार प्रदान करती है । यह पुस्तक इतनी वृहद है कि समय के अनुसार इसका परिवर्तन व संशोधन संभव नहीं हो पाया है, सम्भवत: उनके स्वस्थ जीवनकाल में ऐसा हो सकता था ।
एस॰एल॰ कायस्थ भी ऐसा नाम है, जो भूगोल के अनेक पक्षों के गहन ज्ञाता माने जाते है । उन्होंने अपने शोध पत्रों, व्याख्यानों, भ्रमणों, लेखों एवं पुस्तकों के माध्यम से भूगोल को उच्च श्रेणी का साहित्य प्रदान करने में मदद की है । 1948 में उन्होंने इस विश्वविद्यालय में कदम रखा था ।
वह यहां के प्रथम पीएच॰डी॰ हैं, जिन्होंने आर॰एल॰ सिंह के निर्देशन में ‘Himalayas Beas Basin : A Study in Habitat, Economy and Society’ विषय पर 1958 में शोध कार्य पूरा किया था । उनका शोध कार्य 1964 में प्रकाशित हो गया था ।
उन्होंने स्वयं 20 शोध छात्रों को सफलता पूर्वक निर्देशित किया तथा शोध के विषय नगरीय भूगोल, जनसंख्या भूगोल, ग्रामीण अधिवास, पर्यटन, भूमि उपयोग, औद्योगिक, जल संसाधन, पर्यावरण प्रदूषण, मानव अनुकूलन, समन्वित ग्रामीण विकास, मानव अनुकूलन से सम्बन्धित रहे ।
उन्होंने भारतीय विज्ञान कांग्रेस, अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस, नागी के भूगोल अधिवेशन सभी गोष्ठियों में सक्रिय भाग लिया व अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए । वाराणसी की National Geographical Society के गठन व उसके प्रकाशित होने वाली शोध पत्रिका NGJI में विशेष योगदान है ।
वह International Geographical Commission on Environment Problems के सदस्य भी रहे हैं । उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर जनसंख्या व पर्यावरण पर विशेष कार्य किए हैं । नागी की 16वीं कांग्रेस के अवसर पर भुवनेश्वर में उन्होंने Environment Development and Quality of Life विषय पर अपना ख्याति प्राप्त अध्यक्षीय भाषण प्रस्तुत किया था ।
एस॰एस॰ जौहरी नगरीय भूगोल के ज्ञाता के रूप में जाने जाते हैं । 1961 में उन्होंने लन्दन विश्वविद्यालय से इमरी जोन्स के निर्देशन में The Growth and Development of Towns in Sutlej-Yamuna Divide विषय पर शोध उपाधि प्राप्त की । उन्होंने अपने निर्देशन में नगरीय भूगोल से सम्बन्धित विषयों पर शोध कार्य कराए हैं । उनके अनेक शोध लेखों का प्रकाशन बनारस की भूगोल पत्रिका में हुआ है ।
उनके शोध सतलज-यमुना विभाजक क्षेत्र से सम्बन्धित रहे हैं । नगरीय भूगोल के साथ-साथ आर्थिक भूगोल, प्रादेशिक भूगोल, मानव भूगोल, औद्योगिक भूगोल, परिवहन भूगोल, प्रादेशिक नियोजन, राजनीतिक भूगोल, भूमि उपयोग एवं जनसंख्या भूगोल विषयों में कार्य किया है ।
नगरीकरण, नगरों का प्रादुर्भाव एवं विकास, 20वीं शताब्दी में नगरों का विकास उनके अध्ययन के विषय व अध्ययन क्षेत्र सतलज-यमुना विभाजक रहा है । काशी नाथ सिंह अपनी कुशाग्र बुद्धि व तेजस्विता के लिए भूगोल जगत में विशेष स्थान रखते है ।
उन्होंने अपना शोध कार्य आर॰एल॰ सिंह के निर्देशन में Rural Markets and Urban Centers in Eastern U.P. विषय पर 1963 में पूरा किया । उनके शोध कार्यों से प्रभावित होकर वह विभिन्न शैक्षणिक कार्यों हेतु 1964 से 1966 तक अमेरिका में रहे हैं । उसके बाद बीच में अन्य स्थानों पर अध्यापन करने के बाद 1978 से बराबर अपने मूल विभाग में आ गए ।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उन्हें सेवा निवृत्ति के बाद पाँच वर्षों तक पुन: काम करने का अवसर प्रदान किया । वर्तमान में वह इथोपिया के आदिस आवाबा में स्थित Colleges of Social Sciences में कार्यरत हैं । बनारस विश्वविद्यालय में आयोजित भूगोल संगोष्ठियों के कुशल संचालन व लेख प्रस्तुति के साथ उनका योगदान उल्लेखनीय है ।
उनके अनेक शोध पत्र बनारस की भूगोल पत्रिका के साथ-साथ Annals of the Association of American Geographers तथा British Geographers जैसी प्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं । उन्होंने लगभग बीस विद्यार्थियों को शोध निर्देशन दिया है, तथा आर्थिक, अधिवास, विपणन, समन्वित ग्रामीण विकास, पर्यावरण, जनसंख्या, आदिवासी भूगोल पर शोध कार्य कराए है ।
लगभग 23 देशों का दौरा शैक्षिक उद्देश्य से किया है उनकी तीन पुस्तकें Dynamics of Economic Geographers, World Economy at the Cross Road आर्थिक भूगोल, जगदीश सिंह के साथ सहलेखक के रूप में प्रकाशित हुई है ।
इस विश्वविद्यालय के नवल किशोर प्रसाद सिन्हा ने कनाडा के मेकगिल विश्वविद्यालय से 1966 में Geomorphic Evolution of the Northern Rupussani Basin, Guyana विषय पर अपना शोध कार्य पूरा किया । यह अध्ययन वायु फोटो चित्रों पर आधारित है । यह उष्ण आर्द्र प्रदेशीय भू-आकृत्ति विज्ञान (Wet Tropical Geomorphology) आधारित अध्ययन है ।
इस शोध कार्य को अमेरिका के नौसैनिक शोध संस्थान व नासा द्वारा काफी प्रशंसा मिली । उन्होंने बनारस के भूगोल विभाग में व्यवहारिक एवं सैद्धान्तिक भू-आकृति विज्ञान, जल संसाधन व विकास नियोजन जैसे विषयों पर शोध कार्यों को बढ़ावा दिया । नदी-बेसिन, जल प्रवाह, संसाधन एंव उनका प्रबन्धन वायु फोटो चित्र विश्लेषण, धरातलीय मूल्यांकन जैसे विषयों का गहन अध्ययन किया ।
उन्होंने यू॰पी॰ हिमालय व दून घाटी का भू-आकृतिक अध्ययन किया । विदेशी दोरों में उनकी दक्षिणी मध्य अमेरिका के देशों के लिए यात्राएँ उल्लेखनीय हैं । एक अन्य भूगोलविद आर॰एन॰ माथुर ने जल विज्ञान व जल संसाधन विषयों को अपना अध्ययन क्षेत्र चुना । उनका शोध कार्य Ground Water Hydrology of Meerut District, U.P पर है, जो 1960 में पूरा किया ।
उन्होंने इन विषयों के साथ-साथ भूमि उपयोग एवं कृषि भूगोल पर शोध कार्यों को बढ़ावा दिया । भूगोल में जलविज्ञान (Hydrology) को पाठ्यक्रम में स्थान दिलवाया । हरिहर सिंह को नगरीय भूगोल का विशेषज्ञ माना जाता है, उन्होंने उजागर सिंह के निर्देशन में Kanpur : A Study in Urban Geography विषय में अपना शोध कार्य 1965 में पूरा किया व इसका प्रकाशन 1972 में कराया ।
विजय राम सिंह का शोध कार्य ‘Land Utilization in the Neighborhood of Mirzapur’ विषय पर था, जो उन्होंने 1962 में आर॰एल॰ सिंह के निर्देशन में पूरा किया । कृषि भूगोल व भूमि उपयोग उनके अध्ययन के क्षेत्र रहे । उन्होंने चुनार के भूमि उपयोग व भारत की कृषि-स्थान विज्ञान (Typology) पर भी कार्य किया ।
औंकार सिंह को पर्यावरण का विशेषज्ञ माना जाता है । इससे सम्बन्धित उनकी शोध पुस्तकें व अनेक शोध लेख प्रकाशित हुए हैं । विभाग में Environment, Energy and Technology : Regional and Global Perspective संगोष्ठी का आयोजन 1977 में किया ।
प्राथमिक रूप से वह नगरीय भूगोल के विशेषज्ञ है, और अपना शोध कार्य Towns in U.P., 1969 में आर॰एल॰ सिंह के निर्देशन में पूरा किया था । उनके साथ-साथ विभाग में राना पी॰बी॰ सिंह, वी॰कुमरा, संत बहादुर सिंह, बेचन दुबे के योगदान भूगोल जगत में उल्लेखनीय हैं ।
10. आगरा विश्वविद्यालय (Agra University):
इस विश्वविद्यालय में भूगोल विषय का विकास सम्बद्ध महाविद्यालयों में हुआ है । 1947 में यहाँ के सैण्ट जाण्स कालेज में भूगोल के स्नातकोत्तर विभाग की स्थापना जे॰एन॰ घोष के नेतृत्व में हुई थी । देश का यह छठा भूगोल विभाग था । इस महाविद्यालय ने निरन्तर भूगोल के क्षेत्र में अपनी सर्वभौमिकता बनाए रखी ।
ए॰आर॰ तिवारी जिन्होंने लन्दन विश्वविद्यालय से ए॰ई॰ स्मेल्स के निर्देशन में आगरा के नगरीय भूगोल पर शोध कार्य किया था, इस विभाग को सुयोग्य नेतृत्व प्रदान किया व अन्य महाविद्यालयों में भी भूगोल को प्रोत्साहित किया, जो वर्तमान में अन्य विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध हो गए है ।
1950 के बाद इस विश्वविद्यालय के आधीन अनेक महाविद्यालयों में स्नातकोतर स्तर पर भूगोल विभागों की स्थापना बड़ी तीव्रता के साथ हुई । इनमें बी॰आर॰ कॉलेज आगरा, डी॰ए॰वी॰ कानपुर, बी॰एम॰एस॰डी॰ कानपुर, के॰जी॰के॰ मुरादाबाद में सबसे पहले भूगोल विभाग स्थापित हुए ।
इनके बाद डी॰एस॰बी॰ नैनीताल, के॰एन॰ गर्वमेण्ट, ज्ञानपुर, बारहसैनी कालेज अलीगढ़, धर्मसमाज कालेज अलीगढ़, किशोरी रमन मथुरा, वर्ममान बिजनौर, मेरठ कालिज मेरठ, एस॰एस॰बी॰ हापुड, डी॰जे॰ बडौत, डी॰ए॰वी॰ देहरादून में स्नातकोत्तर भूगोल विभाग स्थापित हुए ।
इनके बाद शिकोहाबाद, भीगांव, मैनपुरी, मुजफरनगर सहारनपुर, एटा, ग्वालियर, हाथरस, गाजियाबाद, कासगंज, रामपुर, अल्मोडा, जौनपुर, खुर्जा पिथौरागढ़ में भूगोल विभाग स्थापित होते गए । वर्तमान में इनमें से अनेक महाविद्यालय अन्य विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध हो गए हैं । वर्तमान में आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध महाविद्यालयों में शोध कार्य काफी उच्च सार पर हो रहा है ।
1970 तक लगभग 45 शोधार्थियों ने अपना शोध कार्य पूरा कर लिया था । इनमें एस॰डी॰ कौशिक, सीताराम बागला, ए॰एन॰ भट्टाचार्य, महात्मा सिंह, एस॰एस॰ श्रीवास्तव, इन्द्रपाल, मधुसूदन सिंह, अमर सिंह, डी॰पी॰ सक्सैना, ए॰एन॰ कपूर, एच॰एम॰ गुप्ता, नित्यानन्द, के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।
यह शोध कार्य नगरीय भूगोल, ग्रामीण अधिवास भूगोल, पर्यावरण एवं ग्रामीण अधिवास, भूमि उपयोग विषयों पर प्रमुख रूप से किए गए । आर॰बी॰एस॰ कालेज आगरा के भूगोल विभाग ने एक भौगोलिक शोध पत्रिका ‘Geographical Viewpoint’ का प्रकाशन 1976 से प्रारम्भ किया । इसके प्रकाशन का श्रेय मधुसूदन सिंह व बी॰एल॰ शर्मा को जाता हैं । हाथरस के पी॰सी॰ बागला कालिज ने के॰सी॰ गुप्ता के निर्देशन में नागी के चेप्टर के रूप में संगोष्ठी का आयोजन किया ।
इसी प्रकार आर॰बी॰एस॰ कालिज आगरा में मधूसूदन सिंहके निर्देशन में एक संगोष्ठी आयोजन किया गया । अलीगढ़ के डी॰एस॰ कालेज में अमर सिंह ने भूगोल संगोष्ठी का आयोजन किया । इन संगोष्ठियों में उत्तर प्रदेश विशेष रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कालिजों के भूगोलविदों ने शोध पत्रों की प्रभावी प्रस्तुति की, जिनका प्रकाशन भी शोध पत्रिकाओं में किया गया । इस विश्वविद्यालय के विभिन्न कालेजों में अनेक शोधार्थी अपने-अपने शोध कार्यों में संलग्न ।
11. मेरठ विश्वविद्यालय (Meerut Universities):
इस विश्वविद्यालय के सात सम्बद्ध कालिजों में भूगोल विभाग स्नातकोत्तर स्तर पर स्थापित हैं । इनमें डी॰जे॰ कालिज बड़ौत, एस॰एस॰वी॰ कालेज हापुड़ व मेरठ कालिज, मेरठ 1960 से पूर्व स्थापित हो चुके थें, इसके पश्चात एन॰आर॰ई॰सी॰ खुर्जा, जे॰वी॰ जैन कालेज सहारनपुर, एस॰डी॰ कालेज मुजफ्फरनगर, व एम॰एम॰ कालेज गाजियाबाद में भूगोल के स्नातकोत्तर विभागों की स्थापना हुई है ।
हाल ही में आर॰जी॰ कालेज, मेरठ व मेरठ विश्वविद्यालय में भी भूगोल विभाग की स्थापना स्नातकोत्तर स्तर पर स्ववित्त पोषित योजना के अन्तर्गत की गई है । एस॰डी॰ कालेज हापुड का भूगोल विभाग एस॰डी॰ कौशिक की देन है, जिन्होंने 1956 में Environment and Human Progress अपना शोध कार्य पूरा किया था ।
इसी प्रकार मेरठ का भूगोल विभाग एन॰पी॰ सक्सैना, डी॰जे॰ कालेज बड़ौत, आर॰सी॰ पाण्डे की देन हैं । मुजफ्फनगर में सोवरन सिंह, सहारनपुर में गोपाल चन्द, खुर्जा में बी॰बी॰ गुप्ता व गाजियाबाद में बी॰बी॰ सिंह को इन विभागों को विकसित करने का श्रेय जाता है । इन विभागों में अनेक शोध छात्रों ने विभिन्न विषयों पर पीएच०डी० की उपाधि हेतु उत्तम शोध कार्य किए हैं ।
इनका विषय विशेष रूप से नगरीय एवं ग्रामीण अधिवास, कृषि भूमि उपयोग, पर्यावरण, राजनीतिक भूगोल, संसाधन भूगोल, समन्वित विकास, औद्योगिक भूगोल रहा है । वर्तमान में नई-नई विधाओं पर आधारित शोध कार्य पूरा किया व 20 से अधिक छात्रों को शोध कार्य पूरा कराया है । गाजियाबाद में टी॰पी॰ सिंह, एच॰पी॰ सिंह, दीनानाथ सिंह, शोध कार्य की प्रगति बनाए हुए हैं ।
खुर्जा में सी॰एन॰ द्विवेदी का शोध निर्देशन में अमूल्य योगदान है । वर्तमान में अजय छोंकर के निर्देशन में शोध निर्देशन जारी है । उनका विशेषीकरण कृषि भूगोल एवं बाढ़ प्रबन्धन में हैं । मेरठ कालिज में अलका गौतम को एक श्रेष्ठ व सुयोग्य लेखक के रूप में पहचाना जाता है । जिन्होंने भारत, भौतिक, संसाधन भूगोल विषयों पर पुस्तकों की रचना की है । कंचन सिंह के निर्देशन में दस से अधिक शोध छात्रों ने अपना शोध कार्य भूगोल की नई विधाओं पर सफलता पूर्वक सम्पन्न किया है ।
मेरठ विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के संचालन में उनका योगदान उल्लेखनीय है । हापुड़ के भूगोल विभाग में आर॰सी॰ त्यागी ने भी शोध कार्यों को बढ़ावा दिया । जे॰पी॰ शर्मा को उनकी प्रयोगात्मक भूगोल पुस्तक के लिए पहचाना जाता है । एन॰पी॰ सिंह, रमाशंकर सिंह, भी शोध निर्देशन में संलग्न हैं ।
मुजफ्फनगर का भूगोल विभाग भी अपनी गुणवत्ता के लिए पहचान रखता है । यहाँ पर एन॰पो॰ गोयल, डी॰एस॰ रावत, एस॰सी॰ कुलश्रेष्ठ के निर्देशन में शोध कार्य कराए गए हैं । एन॰पी॰ गोयल का कार्य क्षेत्र जनसंख्या भूगोल, डी॰एस॰ रावत का औद्योगिक भूगोल, एस॰सी॰ कुलश्रेष्ठ का सुदूर संवेदन तकनीक, अधिवास भूगोल में योगदान उल्लेखनीय है ।
सहारनपुर के भूगोल विभाग ने शोध कार्यों में अपना विशेष स्थान बनाया हुआ है । वर्तमान में यहाँ लगभग 40 शोधार्थी अपना शोध कार्य सफलता पूर्वक पूरा कर चुके हैं । नगरीय व ग्रामीण अधिवास, ग्रामीण समन्वित विकास, जनसंख्या, विषणन, सुदूर सवेदन, प्रादेशिक नियोजन, भूमि उपयोग, विशेष रूप से अध्ययन के क्षेत्र रहे है ।
गोपालचन्द्र ने घाड़ प्रदेश की ग्रामीण बस्तियों पर शोध अध्ययन एन॰पी॰ सक्सैना के निर्देशन में किया है । एस॰सी॰ बंसल ने सहारनपुर नगर प्रदेश पर अपना शोध कार्य नित्यानन्द के निर्देशन में किया है, तथा अब तक उनके निर्देशन में 24 शोधार्थी पीएच॰डी॰ की उपाधि प्राप्त कर चुके है ।
वह नगरीय भूगोल, भारत का भूगोल, ग्रामीण बस्ती भूगोल, पर्यटन भूगोल, मानव भूगोल विषयों पर पुस्तकों के रचियता है । वह भूगोल में शोध निर्देशन में सक्रिय है । इस विभाग में पी॰के शर्मा, ज्योति सिंह, भी शोध कार्यों व उनके निर्देशन में संलग्न हैं । आर॰जी॰ कालेज की दीप शिखा के निर्देशन में अपराध भूगोल, सुदूर संवदेन जैसे विषयों पर शोध कार्य चल रहा है ।
मेरठ विश्वविद्यालय को तीन बार ऐसे कुलपतियों को देखने को अवसर मिला है, जो भूगोल विषय से रहे हे । आर॰एल॰ सिंह, सी॰बी॰ तिवारी व आर॰पी॰ सिंह ने इस विश्वविद्यालय के कुलपति पद को सुशोभित किया है । आर॰एल॰ सिंह ने अपने कार्यकाल में विश्वविद्यालय के प्राँगण में एक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कराया व मेरठ विश्वविद्यालय भूगोल परिषद (MUGA) को स्थापना की ।
जिसका उद्देश्य वार्षिक स्तर पर शोध पत्रिका का प्रकाशन करना रखा गया, तथा इसके प्रमुख सम्पादक बी॰बी॰ सिंह ने कई वर्षों तक इस पत्रिका का प्रकाशन कराया । आर॰पी॰ सिंह के कार्यकाल में विश्वविद्यालय के प्राँगण में स्नातकोत्तर स्तर पर भूगोल विभाग की स्थापना की गई, जिसके पाठ्यक्रम को तैयार करने में एस॰सी॰ बंसल ने अपना योगदान दिया, इसके साथ-साथ सुदूर संवदेन का डिप्लोमा अध्ययन हेतु विभाग की स्थापना भी यहाँ की गई ।
मेरठ कालिज अपनी शोध पत्रिका के लिए विशेष पहचान रखता है, जो गत 25 वर्षों से नियमित रूप से वार्षिक स्तर पर प्रकाशित हो रही है व श्रेष्ठ भौगोलिक शोध पत्रों के लिए अपनी पहचान रखती है । एन॰पी॰ सक्सैना व वी॰एस॰ चौहान इसके प्रेरणा सत्रों रहे हैं, तथा वर्तमान में अलका गौतम, बिमलेश, परमजीत, हारून सज्जाद, एम॰पी॰सिंह, अनिता मलिक, इसको नया रूप देने में सलंग्न हैं ।
एम॰एम॰एच॰ कालेज गाजियाबाद को नागी का वार्षिक अधिवेशन आयोजित करने का सुनहरी अवसर मिल चुका है, जिसका श्रेय टी॰पी॰ सिंह, जो जलवायु व पर्यावरण भूगोल के विशेषज्ञ माने जाते है, को जाता हैं । सहारनपुर भूगोल विभाग शोध पत्रिका के प्रकाशन में संलग्न है तथा पर्यावरण पर पी॰के॰ शर्मा के निर्देशन में संगोष्ठी आयोजित कर चुका है ।
इससे पूर्व इस विभाग को, एस॰सी॰ बंसल के निर्देशन में सुदूर संवेदन तकनीक पर देहरादून के सुदूर संवेदन विभाग के सहयोग से संगोष्ठी आयोजित करने का अवसर मिल चुका है । इनके अलावा उपरोक्त वर्णित विभागों में कार्यरत भूगोलविद भूगोल के विकास में सक्रिय है, जिन सभी का उल्लेख करना यहाँ सम्भव नहीं है ।