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Read this article in Hindi to learn about the five main universities that leads to development of geographical thoughts in east India.
पूर्वी भारत का भूगोल के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है । सम्भवत: मद्रास (चेन्नई) के बाद कोलकाता भूगोल एवं मानचित्रण का उच्च स्तर का अध्ययन, अध्यापन केन्द्र बना व काफी समय तक एस॰पी॰ चटर्जी के नेतृत्व में सिरमौर बना रहा । इसके अलावा शिलाँग, रांची, पटना गोहाटी, गया, खंड़गपुर, मुधेर, दरभंगा में भूगोल विषय ने विशेष प्रगति की है ।
जिनमें से कुछ केन्द्रों का विवरण इस प्रकार है:
1. कलकत्ता विश्वविद्यालय (Kolkata University):
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इस विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की स्नातकोत्तर स्तर पर स्थापना 1941 में हुई जिसकी अध्यक्षता एस॰पी॰ चटर्जी ने की । वह भूर्गभ विज्ञान के विशेषज्ञ होते हुए भूगोल के विद्वान व विशेषज्ञ माने जाते हैं । उन्होंने फ्रांस के डी॰मारटोनी के निर्देशन में मेघालय के प्रादेशिक भूगोल पर डी॰लिट की उपाधि के लिए कार्य किया था ।
उन्होंने लन्दन विश्वविद्यालय से भूगोल शिक्षण का डिप्लोमा ग्राफ किया । वहीं से ब्रिटिश व फ्रांसीसी शिक्षा पद्धति का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत करने पर शोध उपाधि भी प्रान्त की । 1940 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस में भूगोल एवं भूगर्भ विज्ञान को विशिष्ट स्थान हिलाया, और वैज्ञानिकों को राष्ट्रीय नियोजन में भूगोल की भूमिका के महत्व को स्वीकार कराया ।
चटर्जी ने कलकत्ता ज्योग्राफिकल सोसायटी आफ इण्डिया की स्थापना कराई व एक भौगोलिक पत्रिका Geographical Review of India का प्रकाशन प्रारम्भ कराया जिसका प्रकाशन 1936 से निरन्तर त्रैमासिक स्तर पर हो रहा है । इस पत्रिका ने भूगोल के विकास में विशेष भूमिका निभाई है ।
इसमें प्रकाशित लेख देश के विभिन्न भागों के भूगोल के साथ-साथ विषय में होने प्रकाशित पुस्तकों आदि के बारे में होते है । भूगोल में मानचित्रों हुए उन्होंने 1956 में राष्ट्रीय मानचित्र संगठन (National Atlas Organisation) की स्थापना कराई, जिसको आज NATMO (National Atlas and Thematic Mapping Organization) नाम से जाना जाता है ।
चटर्जी ने अपने निर्देशन में भारत का राष्ट्रीय एटलस तैयार कराया, और शीघ्र `ही इसको अंग्रेजी भाषा में तैयार कराया । उन्होंने भारत की भौतिक पृष्ठभूमि, जनसंख्या, परिवहन, पर्यटन, प्रशासनिक व भूमि उपयोग पर उपयोगी मानचित्र तैयार कराए ।
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1970 में Irrigation Atlas of India प्रकाशित कराई । उनकी यह उपलब्धियाँ भारतीय भूगोल के लिए वरदान साबित हुईं । वह अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल संघ के राष्ट्रीय एटलस आयोग के सदस्य तथा बाद में अध्यक्ष बने । 1968 में दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस (IGU) का आयोजन उनकी अध्यक्षता में हुआ ।
उन्होंने (Towards Global Peace and Harmony Approachment between Developing and Developed Countries) विषय पर अपना अध्यक्षीय लेख प्रस्तुत किया । उनके भूगोल विषय में योगदान को देखते हुए जापान, चीन, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों की भूगोल संस्थाओं ने उनको सम्मानित किया ।
भारत सरकार ने उन्हें 1985 में पदमभूषण की उपाधि से अलंकृत किया । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भूगोल गोष्ठियों में सदैव उनके विचारों को विशेष महत्व दिया गया । उन्होंने भूगोल के विषय क्षेत्र की व्यापकता को सिद्ध करते हुए बताया कि ”भूगोल एक क्षेत्रीय विज्ञान है, जिसमें भौतिक वातावरण व सांस्कृतिक भूदृश्यों का अध्ययन किया जाता हैं” ।
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उनकी प्रमुख रचनाएँ उपरोक्त वर्णित के अलावा इस प्रकार हैं:
Poland and its Frontier, Land use Survey of 24 Parganas, Turkey and her Problems, Bengal in Maps, Progress of Geography in India, Gazetteer of India (1965), History of Geography in Indian Universities, Planning Atlas of Damodar Valley Region, Geography and Culture.
इनके अलावा उन्होंने भू-आकृति विज्ञान, बाढ़ एवं जल विज्ञान, जनसंख्या, भूगोल का शिक्षण, भूगोल एवं राष्ट्रीय नियोजन पर भी अनेक लेख प्रकाशित कराए । चटर्जी के पद चिन्हों पर चलते हुए के॰पी॰ बागची ने इस विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग को और प्रगति की ओर बढ़ाया ।
उनकी पृष्ठभूमि भूगर्भ शास्त्रीय होते हुए भी भूगोल की ओर उन्मुख थी । उन्होंने अमेरिका में हिम सर्वेक्षण महासागर, मृदा विज्ञान, जल विज्ञान पर अनेक अध्ययन प्रस्तुत किए । उनका व्यक्तित्व गांधी दर्शन से प्रभावित था ।
उन्होंने कोलकाता के Geographical Institute की पत्रिका भूविधा का सम्पादन 1935 में किया । 1942 में The Flood Problem 1944 में The Ganga Delta पर लेखों का प्रकाशन कराया । इनके अलावा उड़ीसा व बिहार की नदियों के विकास की परियोजनाओं पर लेखों को तैयार किया ।
कोलकाता की भौगोलिक संस्था व पत्रिका Geographical Review of India को नया आयाम देने में उनका सहयोग सराहनीय है । 1968 में IGU के अधिवेशन में Hydel and Thermal Power and It’s Geographical Applications Countries नामक प्रकाशित पुस्तक का सम्पादन किया । इनके अलावा उन्होंने उत्कृष्ट शोध कार्यों का सफल निर्देशन किया ल अनेक शोध संस्थाओं Regional Science Association, Institute of Landscape, Ecology and Ekistics से अपने आपको जोड़े रखा ।
विरेश्वर बनर्जी ने बागची के काम को आगे बढ़ाते हुए जनसंख्या व कृषि भूगोल पर महत्वपूर्ण कार्य किए । 1954 में जी॰टी॰ ट्रिवार्था के निर्देशन में Agriculture of West Bengal- A Geographical Analysis विषय पर शोध कार्य पूरा किया । 1962 में डी॰लिट की उपाधि के लिए उन्हें अनुदान मिला, व इस उपाधि को सम्मान के साथ प्राप्त किया । अनेक सफल शोध निर्देशनों के साथ उन्होंने विदेशी भूगोलवेत्ताओं के साथ कार्य किया ।
1989 में विपणन भूगोल (Marketing Geography) पर जापान के भूगोलवेत्ताओं के साथ मिलकर कार्य किया, जो Transformation in Rural Settlements of South Asia नामक परियोजना से सम्बन्धित था । उन्होंने सामाजिक एवं सांस्कृतिक भूगोल पर भी कार्य किया ।
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इस विश्वविद्यालय के अन्य प्रमुख भूगोलवेत्ताओं में एन॰आर॰ कार, मीरा गुहा व ए॰बी॰ चटर्जी के नाम भी उल्लेखनीय है । एन॰आर॰ कार ने जर्मनी के गोटिंगन विश्वविद्यालय Pleistocene Morphology of Eastern Himalayas से शोध उपाधि प्राप्त की । मीरा गुहा व ए॰बी॰ चटर्जी ने भी लंदन से शोध उपाधि प्राप्त की । एन॰आर॰ कार ने नगरीय भूगोल पर उत्कृष्ट कार्य किए । उन्होंने Centre for Study of Man and Environment के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया ।
2. उत्कल विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर (Utkal University, Bhubaneswar) :
यद्यपि इसकी स्थापना 1943 में कटक के रावेनशाँ कालेज के रूप में हो गई थी, लेकिन 1962 में भुवनेश्वर में स्थापित नये भवन में यह विश्वविद्यालय स्थानान्तरित कर दिया गया । 1970 में यहाँ भूगोल का स्नातकोत्तर विभाग स्थापित किया गया, जिसकी अध्यक्षता का श्रेय विचित्रानन्द सिन्हा को मिला ।
वर्तमान में यह उड़ीसा राज्य का एक मात्र विकसित भौगोलिक शोध केन्द्र है । उनका शोध कार्य Geo-Economic Planning of Orissa पर है । एक भूगोलवेत्ता के नाते उन्होंने दामोदर घाटी परियोजना में मानचित्रांकन का कार्य किया । प्रोफेसर सिन्हा ने शोध कार्यों को बढावा देते हुए लगभग ढाई दर्जन शोधार्थियों को शोध करवाया ।
सत्रह पुस्तकों का प्रकाशन कराया । अनेक भौगोलिक संघो को संगठित किया । साथ-साथ विश्वविद्यालय में सुयोग्य शिक्षकों की नियुक्ति कराकर उनको भी उत्कृष्ट भौगोलिक शोध कार्यों के लिए प्रोत्साहित किया । इनमें डी॰के॰ सिन्हा, एस॰एन॰ त्रिपाठी, एस॰के॰ मोंहती, वी॰एल॰ सिंह, जा॰के॰ पंडा, पी॰के॰ कारा शामिल है ।
बी॰एन॰ सिन्हा ने अधिवास भूगोल में ग्रामीण अधिवास व नगरीय अधिवास का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया । मैसूर के तीन गांवों को चुनकर ग्रामीण अधिवास भूगोल की रचना की । नगरीय अधिवास में कटक नगर का भूगोल, भारत में नगरीय पर्यावरण, भुवनेश्वर का गहन नगरीय अध्ययन, का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत किया । प्रादेशिक भूगोल पर उनका कार्य उल्लेखनीय है ।
India- A Regional Studies में महानदी डेल्टा का प्रादेशिक भूगोल तथा India- A Regional Geography में उत्कल तटीय मैदानी भाग पर अध्यायों का लेखन किया । आर्थिक भूगोल के शीर्षक में Industrial Geography in India, परिवहन भूगोल में Traffic Pattern of Sirsi, मानचित्रांकन विषय में Adivasi Atlas of Orissa, भौतिक भूगोल के विषय में Physical Basis of Geography, Physical Geography पुस्तकों का प्रकाशन कराया ।
इनसे सम्बन्धित शोध कार्यों को निर्देशित किया । राजनीतिक भूगोल, व्यवहारिक भूगोल, पर्यावरण भूगोल, जनसंख्या भूगोल, मृदा भूगोल, भूमि उपयोग एवं जलवायु भूगोल पर भी कार्य किए हैं । पूणे से प्रकाशित शोध ग्रंथ, Transactions में भौगोलिक शोधों को संकलित किया ।
1986 में Trends in Geographical Research in India ग्रन्थ में, जिसका प्रकाशन Indian Council of Geographers (IIG) ने कराया, भारत के शोध ग्रन्थों व शोध लेखों का संकलन किया । वह एक लम्बे समय तक शोध पत्रिका के सम्पादक रहे हैं । उन्होंने अनेक भौगोलिक संस्थाओं Deccan Geographical Society, Eastern Geographical Society की अध्यक्षता भी की है ।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में भूगोल के परामर्शदाता के रूप में रहे हैं । उन्होंने भारतीय विज्ञान कांग्रेस के भूगोल एवं भूगर्भशास्त्र अनुभाग का नेतृत्व भी किया है । वह भुवनेश्वर की National Institute of Theoretical and Applied Research संस्था के भी अध्यक्ष रहे हैं ।
वास्तव में उत्कल विश्वविद्यालय ने भूगोल के स्नातकोत्तर व शोध कार्यों में विशेष योगदान दिया है । वास्तव में उत्कल विश्वविद्यालय ने भूगोल के स्नातकोत्तर व शोध कार्यों में विशेष योगदान दिया है ।
3. रांची विश्वविद्यालय (झारखण्ड) [Ranchi University, (Jharkhand)]:
इस विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की स्थापना 1954 में राम प्रवेश सिंहकी अध्यक्षता में हुई थी । कुछ समय बाद सिंह के शोध कार्य हेतु लन्दन चले जाने पर इनायत अहमद ने इस विभाग का पद भार सम्हाला । इनके निर्देशन में यह विभाग भू-आकृति विज्ञान व भौतिक भूगोल का उच्च स्तर का शोध केन्द्र बन गया ।
नगरीय भूगोल व मृदा विज्ञान पर भी यहाँ अध्ययनों को बढ़ावा मिला इनायत अहमद ने 1946 में लंदन में ओ॰एच॰के॰ स्पेट के निर्देशन में अपना शोध कार्य Social and Geographical Aspects: India विषय पर पूरा किया । ग्रामीण अधिवासों के प्रकार पर उनके कार्यों को सराहा गया । उनका यह लेख Rural Settlements Types in U.P. (1952) अमेरिका की Annals पत्रिका में प्रकाशित हुआ ।
1965 में Bihar : Physical, Economic and Regional Geography तथा 1982 में Physical Geography with Special reference to India रचनाएँ प्रकाशित हुईं । इनके प्रयास से एक शोध पत्रिका का प्रकाशन Geographical Outlook नाम से प्रारम्भ हुआ, जिसमें सामाजिक भूगोल, अधिवास भूगोल, प्रादेशिक नियोजन, प्रादेशिक भूगोल से सम्बन्धित उत्कृष्ट लेखों का प्रकाशन देखने में आया ।
1978 में इस विभाग का कार्यभार पी॰ पाण्डेय ने सम्हाला । उन्होंने लन्दन के Emrys Jones के निर्देशन में अपना शोध कार्य Impact of Industrialization on Urban Growth : A Case Study of Chhota Nagpur विषय पर पूरा किया । औद्योगिक, नगरीय व प्रादेशिक भूगोल में उनकी विशेष रूचि रही । उन्होंने एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया और उसमें प्रस्तुत लेखों का प्रकाशन Modern Trends in Geography नामक पुस्तक में कराया । वर्तमान में यह विभाग उच्च स्तर के भौगोलिक अध्ययन में संलग्न है।
4. पटना विश्वविद्यालय, पटना (Patna University, Patna):
इस विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर स्तर पर भूगोल विभाग की स्थापना 1949 में एस॰सी॰ चटर्जी की अध्यक्षता में हुई । वह एक भूगर्भ शास्त्री थे, फिर भी भूगोल विषय के स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर शिक्षण के विकास में उन्होंने पटना के कालेज में विशेष योगदान दिया । पटना में भौतिक भूगोल व भू-आकृति विज्ञान का विकास उन्हीं की देन है ।
एस॰ए॰ माजिद ने यहाँ अलीगढ़ से आकर भूगोल को आगे बढ़ाया उन्होंने लंदन में प्रोफेसर ओ॰एच॰के॰ स्पेट व डडले स्टाम्प के निर्देशन में ‘Industrial Geography of Bihar’ पर अपना शोधकार्य 1948 में पूरा किया था । अमेरिका के आरकोन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर अशोक दत्ता उन्हों की देन हैं, जिन्होंने माजिद के निर्देशन में Jamshedpur : A Study in Urban Geography विषय पर अपना शोध कार्य किया ।
1951 में पी॰ दयाल ने इस विभाग का अध्यक्ष पद सम्हाला । उन्होंने 1947 में डडले स्टाम्प व ओएच० स्पेट के निर्देशन में लन्दन स्कूल आफ इकोनोमिक्स से ‘Agricultural Geography of Bihar’ विषय पर अपना शोध कार्य किया ।
पी॰ दयाल के नेतृत्व में इस विश्वविद्यालय में अध्यापन व शोध का बहुमुखी विकास हुआ । यहाँ पर कृषि भूगोल के साथ-साथ प्रादेशिक असमानता, ग्रामीण अधिवास, औद्योगिक भूगोल व भू-आकृति विज्ञान पर भौगोलिक कार्यों को बढ़ावा मिला । उनके निर्देशन में अनेक शोध पत्र एवं शोध विभाग में समय-समय पर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया ।
प्रारम्भ में यहाँ से दो भौगोलिक पत्रिकाओं का प्रकाशन होने लगा था, जिनका नाम Indian Geographical Studies व Geographical Bulletin of India थे, लेकिन बाद में 1986 में इन पत्रिकाओं को Geographical Perspective के नाम से प्रकाशित किया जाने लगा है ।
बिहार में राज्य स्तर पर एक भौगोलिक संगठन का गठन किया गया जिसका नाम ‘Bihar Association of Geographers’ रखा गया, जो नियमित रूप से वार्षिक संगोष्ठी का आयोजन करता रहता है । पटना विश्वविद्यालय में भूगोल का विकास करने में एल॰ऐन॰राम, एस॰एन॰ प्रसाद, बी॰एन॰पी॰ सिन्हा, कैलाश महता, राजेश्वर गोन्तिया, का भी योगदान उल्लेखनीय है ।
5. गौहाटी विश्वविद्यालय, गौहाटी (Guwahati University, Guwahati):
पूर्वोत्तर भारत में भूगोल का स्नातकोत्तर अध्ययन 1958 से प्रारम्भ माना जाता है, जब इस विभाग की स्थापना एच॰पी॰ दास की अध्यक्षता में की गई । उन्होंने इस विश्वविद्यालय में भूगोल को बढ़ावा देने के साथ-साथ असम व समीपवर्ती राज्यों के महाविद्यालयों व विद्यालयों में भूगोल विषय की स्थापना में अपना अमूल्य योगदान किया ।
एस॰पी॰ दास ने लन्दन विश्वविद्यालय में डडले स्टाम्प के निर्देशन में अपना शोध कार्य 1952 में का किया था, जिसका शीर्षक Forest Resources of Assam था । उनकी विशेष रूचि प्रादेशिक भूगोल, भूमि उपयोग, जैव भूगोल, एवं वन पारिस्थितिकी में थी । उन्होंने जनपदीय स्तर पर भूमि उपयोग का सर्वेक्षण कार्य कराया ।
उनके द्वारा प्रकाशित रचनाओं में Problems of Forestry in Assam, Land use of Assam, Geography of Assam विशेष उल्लेखनीय हैं । उन्होंने अनेक शोध लेखों का प्रकाशन कराया है । वह NAGI के संस्थापक सदस्यों के रूप में भी पहचाने जाते हैं ।
1980 में उन्होंने समस्या का भौगोलिक सिंहावलोकन प्रस्तुत किया था । इस विश्वविद्यालय में जिन ने भूगोल के विकास में योगदान दिया, उनमें एम॰ ताहिर, ए॰के॰ वोरा, डी॰सी॰ गोस्वामी, ए॰के॰ भगवती, एम॰बी॰ ठाकुर, एम॰एम॰ दास, के नाम उल्लेखनीय हैं ।
6. मगध विश्वविद्यालय, बोधगया (Magadha University, Bodh Gaya):
1962 में बिहार में बोधगया में मगध विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ भूगोल विभाग स्नातकोत्तर स्तर पर प्रारम्भ हुआ, जिसकी अध्यक्षता का श्रेय आर॰सी॰ धुस्या को वर्तमान में अमेरिका में भूगोल के प्रोफेसर पद पर कार्य कर रहे है । वह सांस्कृतिक विशेषज्ञ हैं 1968 में राम प्रवेश सिंह ने इस विश्वविद्यालय में भूगोल का तेजी से विकास किया और उत्कृष्ट शोध कार्यों को बढ़ावा दिया । उन्होंने भी अपना शोध कार्य लन्दन के डडले स्टाम्प के निर्देशन में पूरा किया ।
उनके शोध का विषय ‘Geographical Evolution of the High Lands of Chhota Nagpur and Its Adjoining Districts in Bihar’ था । इस प्रकार उन्होंने भू-आकृति विज्ञान का विकास किया । उन्होंने भूगोल के अध्ययन के लिए क्षेत्रीय अर्थात स्वयं सर्वेक्षण की तकनीकी को अपनाने पर ज़ोर दिया । यही कारण था कि उन्होंने छोटा नागपुर पठार को स्वयं आंखों से देखा व लिखा ।
छोटा नागपुर पठार पर अपरदन शक्तियों का प्रभाव, जल-प्रभाव प्रणाली, भू-आकृतियां, नदियों का बदलता क्रम, स्थल रूप एवं नगर आदि विषयों का गहराई से अध्ययन किया । उन्होंने प्रायद्वीपीय भारत की स्थलाकृतियाँ, संरचनात्मक विकास, अपरदन चक्र हिमानीकृत स्थल रूप, आग्नेय घटनाओं से सम्बद्ध आकृतियाँ, भू-आकृतियों का विकास आदि का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया ।
राम प्रवेश सिंह ने करीब 90 शोध पत्रों का प्रकाशन कराया व राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में उन्हें प्रस्तुत किया । भारतीय भूगोलवेत्ता के नाते यूनेस्को में भारत का प्रतिनिधित्व किया । वह Indian Council of Geographers के अध्यक्ष व 1968 में IGU के भू-आकृति खण्ड के सचिव रहे ।
उनकी प्रकाशित प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं- Geomorphological Evolution of Chota Nagpur High Lands, India; Monographs of Bihar, मानव भूगोल, मानव उदभव एवं प्रजातीय अध्ययन A Survey of Research in Physical Geography ।
उन्होंने व्यवहारिक भूआकृत्ति विज्ञान व आकृति विज्ञान की अवधारणा पर अनेक लेख प्रस्तुत किए । भूआकृत्ति विज्ञान के अलावा कृषि भूगोल, भूमि उपयोग, प्रादेशिक भूगोल, आर्थिक भूगोल, व्यापारिक भूगोल, औद्योगिक भूगोल, बाढ़ का भूगोल के क्षेत्रों में उनका उत्कृष्ट योगदान है । इस महाविद्यालय में भूगोल के विकास को बनाए रखने में एम॰ पाठक, राम नरेश शर्मा, का विशेष योगदान है ।
प्रोफेसर शर्मा ने नगरीय भूगोल को अपना अध्ययन क्षेत्र बनाया । मैनेजर प्रसाद भूमि उपयोग के विशेषज्ञ हैं । राणा प्रताप ने औद्योगिक भूगोल पर शोध कार्य को बढ़ावा दिया है । इस विश्वविद्यालय का नागी भूगोल संस्था के विकास में विशेष योगदान रहता है ।