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Read this article in Hindi to learn about the five main universities that provides development of geographical thoughts in south and south-west India . The universities are:- 1. बडौदरा विश्वविद्यालय (Vadodara University) 2. ओस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद (Osmania University, Hyderabad) and a Few Others.
दक्षिण भारत के जो राज्य विशेष रूप से भूगोल के स्नातकोत्तर व शोध कार्यों के लिए पहचाने जाते हैं, उनमें कर्नाटक, आध्रप्रदेश, गुजरात, तमिलनाडू व उडीसा विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।
इनमें कुछ विश्वविद्यालयों का विवरण इस प्रकार है:
1. बडौदरा विश्वविद्यालय (Vadodara University):
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गुजरात राज्य में भूगोल की स्नातकोत्तर शिक्षा का श्रेय महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बडौदरा को जाता है, जहाँ 1957 में श्रीमति बेनी लाल अच्युता मेनन जानकी के नेतृत्व में भूगोल विभाग की स्थापना की गई । उन्होंने 1978 तक इस विभाग का पद भार सम्हाला, इसके बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने उन्हें, ‘सेवा-निवृत्त शिक्षक योजना’ के तहत उनके शोध कार्यों से प्रभावित होकर एमेरिटस प्रोफेसर पद पर नियुक्त कर दिया ।
उनके शोध कार्य विशेष महत्व वाले हैं । वह गुजरात में भूगोल विषय के अध्ययन के प्रसार की जनक मानी जाती है । 1968 में नई दिल्ली में आयोजित 21वीं अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल कांग्रेस के अवसर पर बड़ोदरा विश्वविद्यालय में ग्रामीण अधिवास (Rural Settlements) पर एक गोष्ठी का आयोजन किया ।
यह गोष्ठी विकासशील देशों में ग्रामीण अधिवास के अध्ययनों के लिए प्रेरणाप्रद सिद्ध हुई । उन्होंने अपने सेवाकाल में 50 से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन कराया है, व लगभग बारह पुस्तकों की रचना की है । उनके निर्देशन में शोधार्थियों ने भूगोल के लगभग सभी आयामों पर उत्कृष्ट शोध कार्य किया है ।
बडौदरा विश्वविद्यालय के बाद 1977 में गुजरात विश्वविद्यालय अहमदाबाद में भूगोल विभाग की स्थापना स्नातकोत्तर स्तर पर की गई । श्रीमति अंजना देसाई इसकी प्रथम अध्यक्ष बनीं । उन्होंने अमेरिका के मेरीलैण्ड विश्वविद्यालय से शोध उपाधि प्राप्त की है ।
उन्होंने गुजरात भौगोलिक परिषद की स्थापना की । उन्होंने नगरीय भूगोल जनसंख्या भूगोल अधिवास भूगोल व प्रादेशिक नियोजन पर शोध कार्यों को वरीयता दी है । गुजरात की भौगोलिक संस्था शोध पत्रिका का नियमित प्रकाशन करती है ।
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2. ओस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद (Osmania University, Hyderabad):
यहाँ स्नातकोत्तर विभाग की स्थापना 1955 में सैयद अहमद की अध्यक्षता में हुई बाद में बी॰एल॰एस॰ प्रकाश राव इसके अध्यक्ष बने, जिन्होंने इस विभाग को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सार पर ख्याति दिलाई । इनके पांच वर्ष अध्यक्ष रहने के बाद शाह मंजूर आलम ने इस विभाग के अध्यक्ष का पद सम्हाला । इन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि आज उस्मानिया विश्वविद्यालय आंध्र प्रदेश राज्य के साथ देश में सर्वश्रेष्ठ स्थान रखता है ।
बी॰एल एस॰ प्रकाशा राव को भारतीय भूगोल का प्रकाश स्तम्भ माना जाता है । उन्होंने भूगोल में नूतन शोध तकनीकों विधि तन्त्रों, शोध संकल्पनाओं व्यवहारिक भूगोल नगरीय भूगोल भौगोलिक चिन्तन, प्रादेशिक आयोजन प्रादेशिक भूगोल, कृषि भूगोल औद्योगिक भूगोल पर अपने विशिष्ट कार्यों से प्रभावित किया ।
उन्होंने अपने अध्ययनों में सांख्यकीय विधियों के प्रयोग पर शोधकर्तओं का ध्यान खींचा । भूगोल में शोध के लिए प्राथमिक कडी के प्रयोग पर जोर दिया व नमूना सर्वेक्षण को अपनाने पर जोर दिया तथा मानचित्रों एवं चित्रों के प्रयोग पर भी ध्यान दिया । उनका प्रमुख शोध कार्य विशाखापटनम के नगरीय अध्ययन पर है ।
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उनके अन्य प्रमुख शोध अर्थों में उल्लेखनीय है, जो उन्होंने The Indian Institute of Statistics विभाग में काम करते हुए प्रकाशित कराया । उनके अन्य कार्य विशाखापटनम जलयान उद्योग का भौगोलिक विश्लेषण, निम्न गोदावरी घाटी का प्रादेशिक भूगोल मद्रास प्रदेश में प्रवासीय अध्ययन जनपद मुजफ्फरनगर का ग्राम स्तरीय सामाजिक आर्थिक अध्ययन बंगलौर का भौगोलिक सर्वेक्षण महत्वपूर्ण है ।
उन्होंने अपना शोध कार्य कोलकात्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं अध्यक्ष एस॰पी॰ चटर्जी के निर्देशन में पूरा किया । उन्होंने एस॰पी॰ चटर्जी के साथ नाटमो (National Atlas Thematic Mapping Organisation) में कुछ समय कार्य किया ।
1950 के बाद राव ने मद्रास विश्वविद्यालय में भूगोल का अध्यापन किया । यहाँ रहकर उन्होंने मद्रास से प्रकाशित भूगोल पत्रिका ‘The Indian Geographical Journal’ का सम्पादन किया । कुछ समय यहाँ रहने के बाद कलकत्ता चले गए, फिर बाद में हैदराबाद आ गए । पाँच वर्ष यहाँ रहने के पश्चात आप दिल्ली आ गए, जहाँ उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष का पद सम्हाला ।
यहाँ पर अपने सात वर्षों के प्रवास में भूगोल विभाग को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शोध केन्द्र के रूप में मान्यता दिलवाई । बाद में फिर बंगलौर आ गए । यहाँ उन्होंने दो संस्थाओं Institute of Social and Economic Change तथा The Indian Institute of Management के साथ भौगोलिक शोध कार्यों पर कार्य किया ।
ओस्मानिया विश्वविद्यालय शाह मंजूर आलम का ऋणी है । उन्होंने एक लम्बे काल तक उसकी अध्यक्षता की । उनके उत्कृष्ट प्रयासों से यह विश्वविद्यालय भौगोलिक अध्ययन का महत्वपूर्ण शोध केन्द्र बना । आलम ने नगरीय भूगोल के विकास पर अधिक ध्यान दिया, और अपने शोध ग्रंथ ‘Hyderabad-Secundrabad: A Twin Towns – A Study in Urban Geography’ का प्रकाशन 1972 में कराया ।
इसके अलावा व्यवहारिक भूगोल, भूमि उपयोग अध्ययन, नियोजन भूगोल, अधिवास भूगोल पर भी कार्य किया 1974 में आंध्रप्रदेश की नियोजन मानचित्रावली की रचना की । 1982 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सहायता से Centre of Area Studies की स्थापना की, जिसका उद्देश्य हिन्द महासागर के तटीय देशों का भौगोलिक अध्ययन करना था ।
1984 में उन्होंने श्रीनगर में काश्मीर विश्वविद्यालय के कुलपति पद का कार्यभार सम्हाला, व इस विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग की स्थापना करवाई । वह विश्व बैंक की शोध परियोजनाओं विशेष रूप से नगरीय ऊर्जा (Urban Energy) से भी जुड़े रहे । आपके प्रयास से 1978 में अखिल भारतीय मानचित्रीय संगठन (Indian National Cartographic Association) का गठन किया गया ।
1987 में श्रीनगर में नागी का अधिवेशन सम्पन्न कराया व भूगोल को गत्यात्मक विषय के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया । वर्तमान में ओस्मानिया विश्वविद्यालय का भूगोल विषय नियमित रूप में त्रैमासिक स्तर पर ‘Deccan Geographer’ भौगोलिक शोध पत्रिका का प्रकाशन कर रहा है, जो उत्कृष्ठ लेखों का संग्रह होता है ।
3. मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई (Madras University, Chennai):
इस विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर स्तर पर भूगोल विभाग की स्थापना जार्ज कुरियन की अध्यक्षता में 1948 में हुई थी । उन्होंने इस विभाग को वैज्ञानिक रूप दिया । उनके प्रयास से Indian Geographical Society नामक परिषद की स्थापना की गई, जो नियमित रूप से भौगोलिक शोध पत्रिका The Indian Geographical Journal का प्रकाशन कर रही है ।
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उनका योगदान जनसंख्या, कृषि, सांस्कृतिक, आर्थिक, औद्योगिक, प्रादेशिक एंव मानचित्रकला भूगोल में उल्लेखनीय है । वह आर्थिक व संसाधन भूगोल के विशेषज्ञ थे । ‘केरल का भूगोल’ की रचना उनकी उत्कृष्ट देन है । फसल संयोजन प्रदेश, फसल उत्पादन क्षेत्रों के मानचित्र बनाने में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है ।
वह 1946 से 1956 तक अन्तर्राष्ट्रीय भूगोल संघ के (IGU) के उपाध्यक्ष भी रहे । 1959 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में भूगोल के स्नातकोत्तर विभाग की स्थापना पर उसका अध्यक्ष पद सम्हाला, और उसे विकसित किया । इस विश्वविद्यालय में जार्ज कुरियन के बाद ए॰आर॰ इरावती ने पद भार सम्हाला व शोध कार्यों को विकसित किया ।
जार्ज कुरियन की तरह उनका शोध कार्य लन्दन में पूरा हुआ । इनके साथ-साथ ए॰रमेश, पी॰एस॰तिवारी, शिवनागम, बी॰एम॰ थीसनाराजन ने इस भूगोल विभाग के उत्कृष्ट शोध कार्यों को बढ़ावा दिया है । इस विश्वविद्यालय ने चेन्नर्ड व केरल राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों व अधिवासों के गहन अध्ययन को बढ़ावा दिया है ।
4. मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर (Mysore University, Mysore):
इस विश्वविद्यालय में भूगोल की स्नातकोत्तर शिक्षा का प्रारम्भ 1959 में मैसूर के महाराजा कालेज से माना जाता है । एस॰एन॰ अहमद इसके अध्यक्ष थे । बाद में जी॰के॰ गोरी इसके अध्यक्ष बने । वह कृषि भूगोल विशेषज्ञ माने जाते है । उन्होंने कर्नाटक राज्य के मैसूर का नगरीय भूगोल, कावेरी बेसिन का जल सर्वेक्षण, मैसूर के फसल प्रदेश पर अनेक शोध पत्र प्रकाशित कराए ।
दक्षिण भारत के इस राजा में मैसूर विश्वविद्यालय में आर॰पी॰ मिश्रा की अध्यक्षता में भूगोल विभाग की स्थापना 1965 में हो गई । उन्होंने इस विभाग का विकास नगरीय एवं प्रादेशिक अध्ययन केन्द्र (Centre for Urban and Regional Studies) के रूप में किया । 1968 में वह इसके अध्यक्ष बन गए । इस केन्द्र ने बहु-विषयक (Multi-Disciplinary) संस्थान के रूप में कार्य किया, और विकास नियोजन बहुस्तरीय नियोजन में डिप्लोमा स्तर पाठ्यक्रम प्रारम्भ किए ।
इस संस्था को विभिन्न विषय के विद्वानों को जोडने में यह अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ । उन्होंने प्रादेशिक विकास एंव नियोजन विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया, और प्रादेशिक नियोजन (Regional Planning) के अन्तर्गत लेखों का प्रकाशन कराया ।
इसी के परिणामस्वरूप उन्हें जापान के नागोया में संयुक्त राष्ट्र के प्रादेशिक विकास केन्द्र (United Nations Centre for Regional Development) के उपाध्यक्ष का पदभार मिला । 1979-1984 के बीच उनके द्वारा प्रादेशिक नियोजन पर कार्यों का सफल प्रकाशन कराया गया ।
इसके बाद वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति बने उन्होंने अमेरिका के मेरीलैण्ड विश्वविद्यालय से शोध उपाधि 1961 में प्राप्त कर ली थी । 1987 में दिल्ली स्कूल आफ इकोनोमिक्स में भूगोल के प्रोफेसर पद पर उनकी नियुक्ति हो गई, बचपन से ही गांधीवादी विचारधारा में प्रभावित रहने के कारण उनको Centre for the Gandhian Studies and Peace Research का निदेशक नियुक्त किया गया ।
उन्होंने नागी NAGI की भौगोलिक संस्था को गतिशील बनाए रखने में बहुत बड़ा योगदान दिया । IIG का 10वाँ सम्मेलन दिल्ली विश्वविद्यालय में उनकी अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ, जिसका विषय Human Response to Environment Challenges in India था ।
यद्यपि उनके द्वारा रचित अन्य व लेख की संख्या 50 से अधिक है, लेकिन उनमें से कुछ प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं- Gandhian Model of Development and World Peace, Fundamental of Cartography, Research Methodology : A Hand Book, Towns of Mysore State, Contributions to Indian Geography, Regional Development Planning in India, Development Issues of our Time, Habitat Asia (2 Volumes) ।
मैसूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर मिश्रा के बाद पी॰डी॰ महादेव का नाम आता है, जो नगरीय शोधों पर अपना विशेष प्रभुत्व रखते हैं । इसके अलावा, कृषि, अधिवास, औद्योगिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरण भूगोल पर भी अपने विचार प्रकट किए हैं । उन्होंने अमेरिका के पिटसवर्ग विश्वविद्यालय से डाक्टरेट की उपाधि ‘मैसूर नगर का भौगोलिक अध्ययन’ विषय पर प्राप्त की ।
उनके निर्देशन में अनेक शोध पत्रों का प्रकाशन स्वदेशी व विदेशी पत्रिकाओं में हुआ है । वह 1982 में Indian Council of Geographers, 1991 में NAGI तथा 1993 में INCA (Indian National Cartographic Association) के भी अध्यक्ष बने । उनके निर्देशन में दस शोध छात्रों ने अपना शोध कार्य पूरा किया है । चार बड़ी शोध परियोजनाओं का संचालन किया है । वह नगरीय भूगोल एवं प्रादेशिक नियोजन के विशेषज्ञ माने जाते हैं ।
5. कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़ (Karnataka University, Dhrawaad):
इस विश्वविद्यालय के कर्नाटक कालेज में स्नातकोत्तर स्तर पर भूगोल विभाग की स्थापना 1952 में सी॰डी॰ देशपाण्डे के निर्देशन में की गई । 1961 में यह विभाग विश्वविद्यालय में स्थापित हो गया था । यहाँ रहकर सी॰डी॰ देशपाण्डे ने शोध कार्यों को बढ़ावा दिया व Western India नामक पुस्तक का प्रकाशन कराया ।
इसके अलावा Statistical Atlas of Bombay State का प्रकाशन कराया । देशपाण्डे के मुम्बई जाने के पश्चात एस॰सी॰ बोस ने इस विभाग Department of Studies in Geography के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया । बोस के 1963 में गोरखपुर चले जाने के बाद बी॰एन॰ सिन्हा ने इस विभाग को नया आयाम दिया व शोध एवं भौगोलिक कार्यों को बढावा दिया ।
1970 में डा॰ सिन्हा भुवनेश्वर चले गए, जहां उन्होंने उत्कल विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग को स्थापित किया, लेकिन इसके बावजूद उनका धारवाड़ से निरन्तर शैक्षणिक सम्बन्ध बना रहा । वह शोध कार्यों का निर्देशन करते रहे । वर्तमान में एस॰आई॰ हुगर इस विभाग के अध्यक्ष हैं, जिनकी अध्यक्षता में 2000 में नागी की र्वी कांग्रेस का अधिवेशन सम्पन्न हुआ था । आज धारवाड उच्च स्तर के शोध कार्यों का केन्द्र बना हुआ है ।