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Here is a list of top nine ancient Greek geographers and their contribution to geography in Hindi language.
1. महाकवि होमर (Homer):
इसने 900 बी.सी. के आसपास होमर स्कूल की स्थापना की, तथा दो साहित्यिक कृत्तियों- इलियड़ (Illiod) तथा ओडिसी (Odyssey) की रचना की तथा बताया-
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(क) कि पृथ्वी चपटी व वृत्ताकार है तथा यह चारों ओर महान सरिता से घिरी हुई है । बाद में इस सरिता को महासागर का नाम दिया ।
(ख) उसने चार प्रकार की हवायें बताई- इनको बोरियास (उत्तरी), नोइस (दक्षिणी), जीफायरस (पश्चिमी), पुरूस (पूर्वी) नाम दिया । उसने मिस्र की प्रगति, उत्तरी यूरोप की असभ्य जातियां, फोनेशियन नाविकों, अति लम्बे दिन व रात रखने वाले प्रदेश व पूर्वी भूमध्य सागर के बारे में भी बताया ।
2. थेल्स (Thales):
वह मिलेटस नामक बस्ती का निवासी था । यह व्यापारिक नगर एजियन सागर के पूर्वी तट पर मैनडर्म (Manderas) नदी के मुहाने पर स्थित था । वह महान यात्री व व्यापारी था । उसने मिस्र, यूनान व भूमध्यसागरीय तटीय प्रदेशों की यात्रा करके अनेक अनुभव प्राप्त किए ।
उसके कार्यों को इस प्रकार रखा जा सकता है:
(i) उसने आयोनिया में अंकगणित, रेखागणित, नक्षत्र विद्या का अध्ययन किया एवं यूनानी ज्यामिती की नींव रखी तथा गणितीय भूगोल की आधारशिला रखी ।
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(ii) उसने आयोनिया दर्शन संस्था (Ionic School of Philosophy) की स्थापना की ।
(iii) उसने पृथ्वी की गोल आकृति, गति, पूर्व पर जल-थल का वितरण, नील नदी उसकी बाढ़ व प्रभाव, सूर्य व चन्द्रमा, ग्रहण आदि महत्वपूर्ण प्रकरणों पर अपने विचार प्रस्तुत किए ।
(iv) पृथ्वी को गोल तथा आकाश में अपनी धुरी पर चक्कर लगाते हुए बताया ।
3. एनेक्सीमेण्डर (Anaximander):
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यह थेल्स का शिष्य तथा आयोनिया प्रदेश का प्रमुख विद्वान व दार्शनिक था उसने ब्रह्माण्ड विज्ञान (Cosmology) के विकास की नींव डाली । उसने भूगोल, नक्षत्र-शास्त्र (Astronomy) तथा ब्रह्माण्डोपत्ति पर लेख लिखे थे, जिनमें ब्रह्माण्डोत्पत्ति सिद्धान्त (Cosmogony) व नक्षत्रों का वर्णन है ।
उसके द्वारा किए गए कार्य इस प्रकार हैं:
(i) विश्व मानचित्र का बनाना:
वह विश्व के मानचित्र का सर्वप्रथम निर्माता माना जाता है । उसने इस मानचित्र में सम्पूर्ण पृथ्वी, उसके विभाग, ज्ञात सागर और सभी ज्ञात नदियों को दर्शाया । उसने भूमध्यसागर के तटीय देशों का मानचित्र भी बनाया ।
(ii) जीवोत्पत्ति का सिद्धांत:
उसके मतानुसार जल में ही जीवधारियों की उत्पत्ति हुई, बाद में उनकी विभिन्न नस्लों का विकास हुआ । मानव की उत्पत्ति भी जल में उत्पन्न हुए जीव के विकास के वाद थल पर हुई है ।
(iii) नोमोन का विकास एवं उपयोग:
उसने एक धूप घड़ी (Sun Watch) या नोमोन बनाने व उसकी कार्य प्रणाली सिखायी । इसके द्वारा स्थानों की स्थिति एवं प्रकाश ज्ञात करने में सहायता मिली । उसने सूर्य, चन्द्र, नक्षत्रों की गणनाओं से गणितीय भूगोल का विकास किया । उसने पृथ्वी की ऊंचाई को इसकी परिधि का एक तिहाई बताया । पृथ्वी की परिधि से 27 गुनी दूरी पर सूर्य तथा 18 गुनी दूरी पर चन्द्रमा की स्थिति बताई । यह दूरियां आज गलत साबित हो चुकी हैं ।
(iv) पृथ्वी की उत्पत्ति:
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उसके अनुसार सृष्टि के आरम्भ में अदृश्य पदार्थ था, जो द्रवावस्था में था । बाहय उष्णता से कुछ भाग सूखा, और भूमि दिखायी दी । वाष्पीकरण होने से बादल बने । शुष्कता बढ़ने के साथ-साथ भूमि का विस्तार बढ़ा । उसके अनुसार एक दिन सभी महासागर सूख जायेंगे । इस प्रकार आदि पदार्थ के ठण्डा होने से पृथ्वी बनी, और बाहरी उष्ण भाग ने पृथ्वी से अलग होकर वायुमण्डल का निर्माण किया । पृथ्वी ने ढोल (Drum) की आकृति ग्रहण की ।
(v) ब्रह्माण्डोत्पत्ति ग्रह एवं नक्षत्र:
जिस प्रकार पृथ्वी का निर्माण उष्ण गोलाकार पिण्डों से हुआ, उसी प्रकार अन्य पिण्डों से सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रों का निर्माण हुआ । इन पिण्डों के बाहर भी धुंध का मण्डल था । ये अन्य पिण्ड अपना प्रकाश और उष्मा बाहर को फेंकते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते रहते हैं ।
4. पाइथागोरस (Pythagoras):
इस आयोनियन विद्वान ने पाइथागोरियन संस्था (Pythagorean School) का विकास किया । वह अपने समय का महान दार्शनिक, गणित, नक्षत्र विज्ञान और भूगोल विद्याओं का विद्वान था । उसकी गणित की कुछ धारणायें व प्रमेय (Theorems) आज भी महत्वपूर्ण हैं । उसने पृथ्वी को गोलाकार (Sphere) अस्थिर बताया । यह अन्य आकाशीय पिण्डों की परिक्रमा करती है ।
उसने पृथ्वी को जलवायु की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा:
(क) मध्य भाग उष्ण,
(ख) सिरे के भाग शीत तथा
(ग) इन दोनों के मध्यवर्ती भाग शीतोष्ण- जिसको मानव के बसाव के लिए उपयुक्त बताया ।
5. हैकेटियस (Hecataeus):
इसका जीवनकाल 500 B.C. के आसपास माना जाता है । वह दूरदर्शी, कूटनीतिज्ञ एवं इतिहासवेत्ता माना जाता है । उसने फारस साम्राज्य, मिस्र व भूमध्यसागरीय देशों की यात्रा की तथा अपने अनुभवों का विवरण एक पुस्तक पीरिओड्स (Periodus) में दिया । इसके दो खण्ड (Volumes) प्रकाशित कराये । इसमें संसार का वर्णन किया गया, प्रथम खण्ड में यूरोप और दूसरे खण्ड में एशिया (जिसमें मिस्र व लीबिया शामिल है) का वर्णन है ।
उसने इन भूभागों के लोगों के रीति-रिवाज, रहन-सहन, सामाजिक और धार्मिक तत्व, जातियों आदि का वर्णन प्रस्तुत किया । इसके आतिरिक्त उसने यूनान का इतिहास, देवी-देवताओं की गाथायें और उनकी यात्राओं के वर्णन भी लिखे थे ।
उसने दो मानचित्र भी बनाये । एक तो, अपने नगर मिलेटस (Miletus) का, तथा दूसरे विश्व (World) का । विश्व के मानचित्र में पृथ्वी को तश्तरी की भांति (Disk Shaped) वृत्ताकार मानते हुए महाद्वीपों का वितरण दिखाया । महाद्वीपों के चारों ओर महासागरों को दिखाया । उसने यूरोप को सबसे बड़ा महाद्वीप माना । वास्तव में उसके मानचित्र की कल्पना दोषपूर्ण थी ।
यद्यपि उसके विचार काफी समय तक ग्रीक इतिहासकारों व वहाँ की जनता की प्रधान रुचि के विषय रहे, लेकिन फिर भी यह उक्ति अन्य ग्रीक विद्वानों की भांति उस पर भी लागू होती थी कि ग्रीक लोगों द्वारा कही गई अनेक कहानियाँ गढी हुई व हास्यास्पद थी ।
6. थियोफ्रेस्टम (Theophrastus):
यह अरस्तु का शिष्य था । उसने वनस्पति और जलवायु के सम्बन्धों को परखा, फिर मेसीडोनिया के मैदान की वनस्पति, समीपवर्ती पर्वतीय क्षेत्र व क्रेटी (Crete) द्वीप की वनस्पति का तुलनात्मक वर्णन प्रस्तुत किया । उसने वनस्पति भूगोल की नींव रखी । इसके अलावा ऐतिहासिक भूगोल पर भी अपने विचार प्रकट किए ।
7. पोलीबियस (Polybius):
वह भौतिक भूगोल का विद्वान माना जाता है । उसने नदियों के द्वारा घाटियों का अपरदन, को वाड़ों का प्रभाव, निक्षेप द्वारा डेल्टाओं के निर्माण के बारे में विस्तार से बताया ।
8. हिप्पारकस (Hipparchus):
ग्रीक काल में इरेटास्थनीज के बाद भूगोल को विकसित करने का श्रेय हिप्पारकस को जाता है । वह आयोनिया (Lonia) प्रदेश का निवासी था । उसने भी सिकन्दरिया में पुस्तकालाध्यक्ष के रूप में कार्य किया । वह एक खगोलशास्त्री था । उसने मानचित्र विज्ञान के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया । उसकी भूगोल को सबसे बड़ी देन अक्षांश देशांतर रेखाओं के आधार पर किसी स्थान की स्थिति का निर्धारण करना था ।
उसके विचारों को निम्न तरह से समझा जा सकता है:
I. उसने पूर्ण वृत्त को 360 अंशों में विभाजित किया ।
II. भूमध्य रेखा को महान वृत्त (Great Circle) बताया, जो पृथ्वी को दो बराबर भागों में विभाजित करता है ।
III. देशांतर रेखायें (Meridians) दोनों ध्रुवों पर परस्पर मिल जाती हैं, तथा सभी देशांतर रेखायें महान वृत्त के समान हैं ।
IV. देशांतर रेखाओं के बीच की दूरियां ध्रुवों की ओर घटती जाती हैं ।
V. पृथ्वी पूरे चौबीस घंटे में अपनी पुरी पर एक चक्कर लगाती है, इस प्रकार उसकी गति प्रति घंटा 150 देशांतर के बराबर होती है ।
VI. किसी स्थान की अक्षांशीय व देशांतरीय स्थिति का निर्धारण शंकु (Gnomon) के आधार पर न करके एक यंत्र ‘एस्त्रोलेव’ चक्र यंत्र (Astrolabe) के द्वारा किया । उसने इस यंत्र का आविष्कार किया । यह यंत्र बड़ा सरल था तथा इसका प्रयोग जलयानों पर भी किया जा सकता था । आगे चलकर यह Sextant यंत्र का आधार बना । जलयान पर समुद्र में स्थिति का निर्धारण ध्रुवीय तारे से कौणिक स्थिति के आधार पर किया जाता था ।
VII. उसने पृथ्वी की त्रि-विमितीय आकृति (Three Dimensional Sphere) को द्वि-विमितीय आकृति (Two Dimensional Sphere) अर्थात समतल कागज पर परिवर्तित किया । उसने गणितीय सिद्धांतों के आधार पर पृथ्वी की गोलाभीय आकृति को समतल, आकृति में परिवर्तित करते हुए दो प्रक्षेपों (Projections) का निर्माण किया । उसने लम्बकोणीय (Orthographic) और त्रिविम (Stereographic) प्रक्षेपों का जाल निर्धारित किया ।
VIII. अक्षांशों के आधार पर जलवायु क्षेत्रों में बाँटने का प्रयास किया, तथा पृथ्वी को ग्यारह जलवायु क्षेत्रों में बाँटा ।
IX. यूरेशिया के पर्वत क्षेत्रों व उनसे निकलने वाली नदियों और उनके प्रवाह क्षेत्र के बारे में भी बताया ।
9. पोसिडोनियस (Posidonius):
वह यूनान का महान विद्वान व यात्री था । उसे भौतिक भूगोल का पिता कहा जाता है उसके विचार व्यवहारिक व तथ्यों पर आधारित थे । उसने स्पेन के एक प्राचीन नगर तथा बन्दरगाह गेड़ेन (Garden) पर ज्वारभाटों के अन्वेषण किए थे, और सारड़ीनिया द्वीप से दूर समुद्र की गहराई को मापा था ।
भूगोल को दी गई देन को, इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:
I. पृथ्वी की परिधि को नापा, इसके लिए उसने रोडस से सिकंदरिया तक की दूरी को तथा केनोपस नामक नक्षत्र की ऊँचाई का प्रयोग किया । उसने पृथ्वी की परिधि की लम्बाई 180,000 स्टैडिया बताई, जो कि वास्तविक परिधि का 3/4 भाग था ।
II. उसने 1° की दूरी को 500 स्टैडिया के बराबर माना, जबकि इरेटास्थनीज ने इसे 700 स्टैडिया के बराबर माना था ।
III. उसने पहली बार यह बताया कि ज्वारभाटे का सीधा सम्बन्ध सूर्य एवं चन्द्रमा से है । अमावस्या और पूर्णिमा के दिन ज्वार की ऊँचाई सर्वाधिक (दीर्घ ज्वार) रहती है । इनके मध्यवर्ती भाग में यह ऊँचाई सबसे कम रहती है ।
IV. महासागरों की गहराई के बारे में विचार प्रकट करते हुए उसने कहा कि भूमध्य सागर सार्डीनिया के निकट अन्य भागों की अपेक्षा अधिक गहरा है ।
V. दक्षिण स्पेन में लाल चट्टानी नमक (Red Rock Salt) की उपस्थिति बतायी ।
VI. यूरोप की दक्षिणी तटवर्ती एवं आंतरिक भागों की जनसंख्या की विशेषताओं पर प्रकाश डाला ।
VII. उसने मैदानों के निर्माण तथा दक्षिणी फ्रांस के मैदान में मिलने वाले छोटे-छोटे कंकड़ों (Gravels) की उत्पत्ति पर अपने विचार प्रकट किए ।
भूगोल के मानवीय पक्ष मैं भी उसने रुचि ली और गेलिशिया के पर्वतीय लोगों तथा अरस्तूरियों के वर्णन वहां की यात्राओं व अनुभवों के आधार पर किए ।