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This article provides a paragraph on the atmosphere especially written in Hindi language.
हम जानते हैं कि वायु अनेक गैसों का मिश्रण है । इसमें पाए जाने वाले अवयव मुख्यत: नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, निष्क्रिय गैसें और जलवाष्प हैं । इसके अलावा कार्बन तथा धूल आदि के कण भी वायु में उपस्थित रहते हैं ।
जिनका लगभग प्रतिशत निम्नानुसार है:
उपरोक्त सभी अवयव मिलकर वायुमंडल की रचना करते हैं, जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए हैं ।
पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायु का आवरण ही वायुमंडल कहलाता है:
यह कहना अत्यन्त कठिन है कि वायुमंडल कितनी ऊँचाई तक फैला हुआ है । पृथ्वी की सतह के समीप यह घना है जो ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ विरल होता जाता है । गैसों की सघनता एवं उपस्थिति के आधार पर वायुमंडल को मुख्यत: चार स्तरों (भागों) में बांटा गया है ।
स्तर का नाम लगभग ऊंचाई:
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ट्रोपो स्फीयर या क्षोभमंडल – 0 से 10 कि॰मी॰
स्ट्रेटो स्फीयर या समतापमंडल – 10 से 50 कि॰मी॰
मीजो स्फीयर या मध्यमंडल – 50 से 80 कि॰मी॰
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थर्मो स्फीयर या आयनमंडल या बाह्यमंडल – 80 कि॰मी॰ से आधिक
पृथ्वी सतह के सबसे निकट का स्तर क्षोभमंडल या ट्रोपो स्फीयर कहलाता है यह लगभग दस किलोमीटर की ऊंचाई तक फैला है । इस स्तर में ऊँचाई बढ़ने पर तापक्रम कम होता जाता है । वायुमंडल का दूसरा स्तर समतापमंडल या स्ट्रेटो स्फीयर है । यह पृथ्वी सतह से 10 कि॰मी॰ से लगभग 50 कि॰मी॰ की ऊँचाई तक फैला हुआ है । इसी स्तर में 23 कि॰मी॰ की ऊँचाई पर ओजोन परत पाई जाती हैं जो कि ऑक्सीजन का ही एक रूप (अपररूप) है ।
ओजोन पर्त सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैगनी किरणों का अवशोषण कर हमारे लिए सुरक्षा कवच की भांति कार्य करती है । वायुमंडल का तीसरा स्तर मध्यमंडल या मीजो स्फीयर है जो पृथ्वी सतह से 50 कि॰मी॰ से 80 कि॰मी॰ की ऊँचाई तक फैला हुआ है ।
80 कि॰मी॰ से ऊपर का भाग बाह्य मंडल या थर्मोस्फीयर कहलाता है । इस स्तर में सूर्य विकिरणों के अवशोषण के कारण ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापक्रम बढ़ता जाता है ।
वायुमंडल के विभिन्न स्तरों एवं उनमें होने वाले परिवर्तनों की जानकारी हमारे लिए अत्यन्त उपयोगी है । वायुमंडल में होने वाले परिवर्तनों के अध्ययन से मौसम संबंधी भविष्यवाणी की जाती है, जिससे आपदाओं के प्रबंधन में सहायता मिलती है । मुख्यत: मौसम में होने वाले परिवर्तन वायुमंडलीय दाब के कारण होते हैं ।