ADVERTISEMENTS:
Here is an essay on ‘Indian Geography’ in Hindi language!
मैगस्थनीज ने एशिया में भारत को सुविस्तृत देश बताया था । दक्षिणी एशिया में स्थिति की दृष्टि से इसका प्रथम स्थान था । इसकी आकृति एक विषम चतुर्भुज की भाँति मानी गई थी. जिसका पूर्व पश्चिम विस्तार 4722 कि.मी. उत्तर दक्षिण विस्तार 5395 कि.मी. बताया गया । यह उत्तर में हिमालय पर्वत से अलग होता है । इसके पूर्व व पश्चिम में समुंद्र हैं । इसका विस्तार 9000 योजन में था ।
इसके नौ प्राकृतिक खण्ड बताए गए जो इस प्रकार हैं:
ADVERTISEMENTS:
(1) इन्द्रद्वीप-यह ब्रह्मपुत्र नदी के पार का प्रदेश है ।
(2) कशेरूमान-गोदावरी एवं महानदी के मध्य का डेल्टा प्रदेश ।
(3) ताम्रपर्ण-कावेरी नदी के दक्षिण का प्रायद्वीपीय प्रदेश ।
(4) गभस्तिमान-नर्मदा एवं गोदावरी के मध्य का पठारी प्रदेश ।
(5) नागद्वीप-पश्चिम में सतपुड़ा से पूर्व में विंध्य प्रदेश का मध्यवर्ती भाग ।
ADVERTISEMENTS:
(6) सौम्यद्वीप सिंध नदी के पश्चिम में स्थित समुद्र तटीय प्रदेश ।
(7) गंधर्व-सिंध नदी के पार प्रदेश ।
(8) वारूण- भारत का पश्चिमी समुद्र तटीय प्रदेश ।
ADVERTISEMENTS:
(9) कोई उल्लेख नहीं है वैसे सागर से घिरा है ।
भारत में सात प्रमुख पर्वत श्रेणियां बताई गई- पश्चिमी घाट, अरावली, विंध्याचल छोटा नागपुर की श्रेणियां, सहयाद्री, हिमालय । इनके अलावा अनेकों लघु पर्वत हैं इन पर्वतों से कौन-कौन सी नदियाँ निकलती है । इसके बारे में स्पष्ट ज्ञान था । सतलज चिनाव रावी, झेलम, व्यास, गंगा, यमुना, गोमती, सरयू, कोसी, लोहित (ब्रह्मापुत्र) हिमालय पर्वत से निकलती है ।
विध्याँचल पर्वत से निकलनेवाली नदियाँ पवित्र जल वाली हैं तथा पापों का हरण करती है । जैसे नर्मदा, ताप्ती, महानदी । पश्चिमी घाट से निकलने वाली नदियाँ शीतल जल लाती हैं । छोटा नागपुर से निकलने वाली नदियां शक्ति प्रदान करती हैं ।
कृषि उत्पादन:
भारत कृषि उत्पादन में अग्रणी देश था । यह देश कृषि के लिए सभी अनुकूल परिस्थितियां रखता था । यहां उपजाऊ व समतल भूमि, अनुकूल जलवायु सिंचाई के लिए जल की सुविधा आदि उपलब्ध थी । यहां पर अनेक प्रकार की फसलों का उत्पादन होता था । कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता था ।
नदी, तालाब, नहरें सिंचाई के प्रमुख साधन थे नदियों पर बांध बनाकर नहरें निकाली जाती थीं । यहाँ की प्रमुख खाद्यान्न फसलें गेहूं, धान, जी चना दालें थी । कपास व ईख का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता था आम, जामुन अनार, अंगूर, नीबू नारियल, करौंदा, बेर, अंजीर, खजूर भी बड़े पैमाने पर उगाए जाते थे । मसालों का भी यहां उत्पादन होता था ।
खनिज पदार्थ:
भारत नमक, सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा के उत्पादन के लिए पहचाना जाता था । चोल, चेर व पांडवा प्रदेश मणि, रत्नों की दृष्टि से सम्पन्न देश थे । भंडौच नमक के लिए पहचाना जाता था ।
उद्योग धंधे एवं व्यवसाय:
ADVERTISEMENTS:
यद्यपि भारत के लोगों का प्रधान व्यवसाय कृषि व पशुपालन था लेकिन यह देश अनेक कुटीर उद्योगों के लिए विश्व में अपनी पहचान रखता था । गुप्तकाल में असंख्य वस्तुओं का उत्पादन होता था । भवन निर्माण कला की दृष्टि से यह अधिक विकसित था । सांची के स्तूप, अजन्ता व एलौरा की गुफायें इसके प्रमाण हैं । सोने-चाँदी के सुन्दर आभूषण बनाये जाते थे ।
वस्त्र उद्योग के लिए मदुरई, काशी, ढाका उन्नत नगर थे । लकड़ी जलाकर कोयला बनाया जाता था । लौहा इस्पात उद्योग भी शिखर पर था । गुप्तकाल में निर्मित महरौली का लौह स्तम्भ इसका प्रमाण है । मिट्टी के बर्तन, काष्ठ कला, चर्म शोधन व मदिरा व्यवसाय भी विकसित थे यहाँ के लोग धातु व मिट्टी से मूर्तियाँ बनाने में बड़े दक्ष थे ।
परिवहन, व्यापार एवं वाणिज्य:
स्थलीय व समुद्री मार्गों से व्यापार किया जाता था । नदियों द्वारा समुद्री बंदरगाहों पर सामान ले जाया जाता था । भंडौच, सुप्पारक ताम्रलिपि प्रमुख बंदरगाह थे । भूमध्यसागरीय व दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ भारत के घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे । भारतीय व्यापारियों को हिन्द महासागर की मौसमी हवाओं का पर्याप्त ज्ञान था ।
जिससे मिस्र जाने में एक वर्ष के स्थान पर तीन माह का समय लगता था । स्थल मार्गों का उपयोग व्यापारिक काफिलों के रूप में किया जाता था । ईरान, इराक, टर्की, चीन, रोम साम्राज्य के देशों से स्थलीय व्यापार किया जाता था । यहाँ से वस्त्र, आभूषण, मसालों व विविध उत्पादों का निर्यात किया जाता था ।
प्रमुख नगर:
पाटलिपुत्र, कौशाम्बी, हस्तिनापुर, वैशाली, वाराणसी, तक्षशिला, मदुरई प्रमुख नगर थे । पाटलिपुत्र च व सोन नदियों के संगम पर स्थित था । यह भारत का सबसे बड़ा नगर था । इसका विस्तार 15 स्टैडिया की चौड़ाई व 80 स्टैडिया की लम्बाई में था । यह नगर चारों ओर खाई से घिरा हुआ था ।