ADVERTISEMENTS:
Read this article in Hindi to learn about the gases present in the atmosphere.
1. ऑक्सीजन (Oxygen):
ऑक्सीजन जो सभी जीवों के लिए अत्यन्त आवश्यक है, उसको प्रयोगशाला में बनाने की विधि जाने- ऑक्सीजन का संकेत O तथा अणुसूत्र O2 है । हरे पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में ऑक्सीजन गैस वायुमण्डल में छोड़ी जाती है ।
ऑक्सीजन बनाने की प्रयोगशाला विधि:
ADVERTISEMENTS:
प्रयोगशाला में ऑक्सीजन गैस पोटेशियम क्लोरेट (KClO3) तथा मैंग्नीज डाइऑक्साइड (MnO2) (चार भाग : एक भाग) के मिश्रण को गर्म करके प्राप्त की जाती है ।
रासायनिक समीकरण:
ADVERTISEMENTS:
विधि:
ADVERTISEMENTS:
i. उपकरण को चित्रानुसार व्यवस्थित कर लेते हैं ।
ii. पोटेशियम क्लोरेट तथा मैग्नीज डाइऑक्साइड (थोड़ी मात्रा में) का मिश्रण कड़े काँच की परखनली में लेते हैं ।
iii. परखनली को बर्नर की सहायता से गर्म करते हैं ।
iv. परखनली में उत्पन हुई गैस को पानी के निचले हटाव द्वारा गैसजार में एकत्रित कर लेते हैं ।
v. इस विधि में प्रयोग किया गया मैग्नीज डाइऑक्साइड केवल क्रिया की गति बढ़ाता है स्वयं क्रिया में भाग नहीं लेता है तथा क्रिया के अंत में उतनी ही मात्रा में शेष मिल जाता है जितना क्रिया के प्रारंभ में लिया गया था अर्थात् इस अभिक्रया में मैंगनीज डाइऑक्साइड उत्प्रेरक (Catalyst) का कार्य करता है ।
ऑक्सीजन के मुख्य गुण:
1. यह रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन गैस है ।
2. में आंशिक रूप से (कुछ मात्रा में) घुलनशील है, इसी कारण पानी में जीव एवं पेड़-पौधे जीवित रह पाते हैं ।
3. यह स्वयं नहीं जलती किन्तु जलने में सहायता करती है । बहुत से पदार्थ इसमें जलकर अपने ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाते हैं । जैसे:
ADVERTISEMENTS:
(i) कार्बन अथवा कोयले को वायु में जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनती हैं जो कार्बन का ऑक्साइड है ।
(ii) सल्फर (गंधक) ऑक्सीजन में जलकर सल्फर डाइऑक्साइड गैस बनाती है । पटाखों के चलाने पर जिस विशेष गंध का आपने अनुभव किया होगा वह सल्फर डाइऑक्साइड की होती है ।
(iii) दीपावली के अवसर पर आपने रोशनी की पेंसिल अवश्य जलाई होगी जो बहुत तेज रोशनी के साथ जलती है । यह वास्तव में मैग्नीशियम धातु की बनी होती है, जो वायु में उपस्थित ऑक्सीजन में जलकर मैग्नीशियम ऑक्साइड बनाती है जो सफेद पाउडर के रूप में हमें दिखाई देता है ।
(iv) लोहा (आयरन) नमी की उपस्थिति में ऑक्सीजन से क्रिया करके आयरन ऑक्साइड बनाता है । यह क्रिया आपने बरसात के दिनों में अवश्य देखी होगी । जिसे हम साधारण भाषा में जंग लगना कहते हैं । जंग वास्तव में आयरन ऑक्साइड है ।
दैनिक जीवन में हम ऑक्सीजन के महत्व से भलीभांति परिचित हैं आइए ऑक्सीजन के कुछ अन्य उपयोगों को भी जानें:
ऑक्सीजन के उपयोग:
1. पेड़-पौधों एवं जन्तुओं के श्वसन के लिए आवश्यक होने के कारण इसे प्राणवायु कहा जाता है ।
2. हृदय एवं सांस के रोगियों को कृत्रिम श्वसन देने हेतु ऑक्सीजन का उपयोग किया जाता है ।
3. पर्वतारोही अपने साथ ऑक्सीजन से भरे सिलैण्डर ले जाते हैं, क्योंकि ऊँचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है ।
4. गोताखोर हीलियम मिली, शुद्ध ऑक्सीजन के सिलेण्डर श्वसन हेतु अपने साथ गहरे समुद्र में ले जाते हैं ।
5. द्रव ऑक्सीजन का उपयोग रॉकेट ईधन के प्रमुख अवयव के रूप में किया जाता है जिसे LOX (लॉक्स) भी कहते हैं ।
6. ऑक्सीजन को हाइड्रोजन अथवा एसीटिलीन गैस के साथ मिलाकर जलाने पर बहुत अधिक ताप उत्पन्न होता है । इस ज्वाला का उपयोग धातुओं को काटने तथा बेल्टिंग में किया जाता है ।
2. नाइट्रोजन (Nitrogen):
ऑक्सीजन की उपयोगिता को जानने के पश्चात् आइए वायु में सबसे अधिक मात्रा में (78 प्रतिशत लगभग) पाए जाने वाले अवयव नाइट्रोजन के बारे में जाने जो सभी जीवों की वृद्धि एवं स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है । यह जीवों के शरीर में यौगिकों के रूप में पाई जाती है ।
वृद्धि एवं स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होने के कारण सभी जीव इसका निरन्तर उपयोग करते हैं । जीवों द्वारा नाइट्रोजन के निरन्तर उपयोग के बाद भी इसकी समुचित मात्रा प्रकृति में विद्यमान रहती हैं ।
नाइट्रोजन चक्र:
प्रकृति में नाइट्रोजन का यह संतुलन एक चक्रीय पथ द्वारा बना रहता है जिसे नाइट्रोजन चक्र कहते हैं । इस चक्र द्वारा नाइट्रोजन विभिन्न रूपों में, रासायनिक परिवर्तनों के फलस्वरूप मृदा एवं वायुमंडल के बीच चक्रण करती रहती है ।
1. वायुमंडलीय नाइट्रोजन का नाइट्रेटों में परिवर्तन:
यह परिवर्तन दो विधियों द्वारा होता है:
(i) वायवीय परिवर्तन
(ii) जैविक परिवर्तन
(i) वायवीय परिवर्तन:
वर्षा के दिनों में बिजली चमकने से उच्च ताप उत्पन्न होता है । जिससे वायु में उपस्थित नाइट्रोजन तथा ऑक्सीजन आपस में क्रिया करके नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनाती हैं, जो वर्षा के जल में घुलकर पृथ्वी पर आ जाते हैं और नाइट्रेटों में परिवर्तित हो जाते हैं ।
(ii) जैविक परिवर्तन:
दाल वाले फलीदार (लेग्युमिनस) पौधों (जैसे चना, मूंगफली आदि) की जड़ों का अवलोकन कीजिए । उनमें छोटी-छोटी गाँठें दिखाई देंगी । इन गांठों में उपस्थित राइजोबियम जीवापु वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन गैस को पौधों के लिए उपयोगी नाइट्रेटों में बदल देते हैं ।
अन्य बिना दाल वाले पौधे जिनकी जड़ों में राइजोबियम जीवाणु नहीं होते वे वायुमंडल की नाइट्रोजन का सीधे उपयोग नहीं कर पाते ।
2. जन्तु एवं पौधों द्वारा नाइट्रोजन का प्रोटीन के रूप में संचय:
उपरोक्त विधियों से प्राप्त नाइट्रेट जल में घुलनशील होते हैं, जिन्हें पौधे अपनी जड़ों द्वारा ग्रहण करके प्रोटीन के रूप में संचित कर लेते हैं । यह संचित प्रोटीन पेड़-पौधों से जन्तुओं में भोजन के रूप में पहुँच जाते हैं ।
3. अमोनीकरण:
इस क्रिया में जीवों के मृत शरीर तथा जंतुओं के मलमूत्र आदि अपशिष्ट पदार्थों को जीवापुओं (नाइट्रोसोमोनास) द्वारा अमोनिया में बदल दिया जाता है ।
4. नाइट्रीकरण:
अमोनीकरण से प्राप्त अमोनिया एक अन्य जीवापु (नाइट्रोबेक्टर) द्वारा नाइट्रेट में बदल दी जाती है । जिसे पौधे खाद के रूप में ग्रहण कर लेते हैं ।
5. विनाइट्रीकरण:
पौधों के उपयोग के पश्चात् बचे हुए शेष नाइट्रेट, जीवाणुओं (स्युडोमोनास जीवाणु) द्वारा वायुमंडल में नाइट्रोजन गैस के रूप में मुक्त कर दिए जाते हैं ।
प्रकृति में नाइट्रोजन चक्र एक महत्वपूर्ण चक्र है जिसमें सूक्ष्म जीवाणुओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । ये सूक्ष्मजीव प्रकृति में नाइट्रोजन की मात्रा को स्थिर बनाए रखने में सहायक है ।
नाइट्रोजन के उपयोग:
i. वायु में नाइट्रोजन की उपस्थिति ज्वलन की प्रक्रिया को मंद कर देती है । यदि वायु में केवल ऑक्सीजन होती तो छोटी सी आग भी आसानी से भड़क जाती ।
ii. नाइट्रोजन का उपयोग उर्वरक बनाने में किया जाता है ।
iii. द्रव नाइट्रोजन का उपयोग भोज्य पदार्थों के लिए प्रशीतक के रूप में किया जाता है ।
iv. जले हुए रोगियों की त्वचा की ग्राफिटिंग (रोपण) के दौरान नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है ।
v. विभिन प्रकार की जीव कोशिकाएँ द्रव नाइट्रोजन में संरक्षित की जाती हैं ।
vi. पैकेट बंद भोजन सामग्री जैसे आलू के चिप्स आदि को सुरक्षित रखने तथा खराब होने से बचाने के लिए पैकेटों में नाइट्रोजन गैस भरी जाती है ।
vii. विभिन उद्योगों में निष्क्रिय वातावरण बनाने के लिए नाइट्रोजन का उपयोग किया जाता है ।
ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के अतिरिक्त वायु का एक और प्रमुख अवयव कार्बन डाइऑक्साइड भी है जिसके द्वारा हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन बनाते हैं । यह कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल को गर्म रखने का कार्य भी ठहरती है जिसे पौधाघर प्रभाव या ग्रीनहाउस प्रभाव भी कहते हैं ।