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Read this article to learn about the slow ground movements that occurs below the earth’s surface in Hindi language.
पृथ्वी के भूपृष्ठ पर निरंतर परिवर्तन होता रहता है । ये परिवर्तन पृथ्वी की आंतरिक हलचलों तथा बाह्य प्रक्रियाओं के कारण होते हैं । इस पाठ में आंतरिक हलचलों में से मंद हलचलें और उनके प्रभावों की जानकारी प्राप्त करेंगे ।
भूपृष्ठ को प्रभावित करनेवाली आंतरिक हलचलें मुख्य रूप से प्रावार की ऊपरी परत में होती हैं । प्रावार में रेडियो एक्टिव पदार्थों में से बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा निर्मित होती रहती है । ये ऊर्जा तरंगें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती रहती है । ऊर्जा की इन तरंगों के कारण पृथ्वी के आंतरिक भाग में हलचलें निर्मित होती हैं ।
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मंद भू हलचलें:
पृथ्वी के आंतरिक भाग में ऊर्जा का उत्सर्जन निरंतर एवं मंद गति से होता रहता है । इससे जो हलचलें उत्पन्न होती हैं, उन्हें मंद हलचलें कहते हैं । ये हलचलें बहुत बड़े क्षेत्र पर अपना प्रभाव छोड़ती हैं । ये हलचलें क्षैतिज समांतर तथा ऊर्ध्व दिशा में होती हैं ।
इन हलचलों से कठोर तथा मृदु चट्टानें किस प्रकार प्रभावित होती हैं; इसे आकृति ५.१ के आधार पर समझो । इन हलचलों के फलस्वरूप महाद्वीपों तथा पर्वतों की निर्मिति होती हैं । मंद हलचलों के कारण वलीकरण तथा भ्रंश की प्रक्रियाएँ घटित होती हैं ।
भू हलचलों के प्रभाव:
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भू हलचलों का प्रभाव भूपृष्ठ पर भूकंप, ज्वालामुखी के उद्गार, पर्वतों, महाद्वीपों की निर्मिति, जैसे रूपों में दिखाई देता है ।
(1) भू हलचलों से निर्मित पर्वत:
आंतरिक हलचलों के कारण दो प्रकार के पर्वतों की निर्मिति होती है :
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(i) वलित पर्वत
(ii) भ्रंशोत्थ पर्वत
(i) वलित पर्वत (मोड़दार पर्वत):
पृथ्वी के आंतरिक भागों में ऊर्जा का वहन होता है । इस ऊर्जा के कारण मृदु चट्टानों की परतों पर क्षैतिज समांतर दिशा में दबाव पड़ता है । फलस्वरूप उनमें वलय निर्मित होते हैं । इन वलयों की निर्मिति प्रक्रिया को वलीकरण कहते हैं । आकृति ५.१ में दर्शाए अनुसार वलय लहरों जैसे दिखाई देते हैं दबाव तीव्र होने पर वलय बड़ी मात्रा में निर्मित होते हैं ।
फलस्वरूप चट्टानों की परतों की ऊँचाई बढ़ती है और वलित पर्वतों की निर्मिति होती है । आकृति ५.२ देखो, उदा., अरावली, हिमालय, आल्प्स्, राकी, एंडीज आदि ।
आंतरिक हलचलों के कारण जब एक-दूसरे से दूर जानेवाली ऊर्जा तरंगों का निर्माण होता है तब चट्टानों में तनाव उत्पन्न होता है । चट्टानों में दरारें पड़ती हैं और चट्टानों में हलचलें उत्पन्न हाती हैं । इन दरारों को भ्रंश कहते हैं । आकृति ५.३ देखो । कठोर चट्टानों में ऊर्जा तरंगें एक-दूसरे की ओर आने से भी दबाव पड़ता है ओर इस प्रकार के भ्रंश निर्माण होते हैं ।
दो समांतर भ्रंशों के बीचवाला भूपटल का भाग जब ऊपर उठता है तब ठीहे के समाण दिखाई देनेवाले भूपटल को भ्रंशोत्थ पर्वत कहते हैं । आकृति ५.४ देखो । भ्रंशोत्थ पर्वत का माथा समतल होता है । इसपर शिखर नहीं होते हैं और इनकी ढाल भी तीव्र होती है । उदा., भारत में मेघालय का पठार और यूरोप का ब्लैक फारेस्ट पर्वत ।
भ्रंश घाटी:
एक-दूसरे की विपरीत दिशाओं में जानेवाली हलचलों के कारण भूपटल पर तनाव निर्माण होना है । फलस्वरूप दो समीपवाले भ्रंशों के बीचवाला भूपटल का भाग धँस जाता है । ऐसे धँसे हुए भाग को भ्रंश घाटी कहते हैं । आकृति ५.५ देखो । भ्रंश घाटी की दोनों ढलानें तीव्र होती हैं । उदा., अफ्रीका महाद्वीप की ग्रेट रिफ्ट वैली ।
(2) हलचलों से निर्मित महाद्वीप:
पृथ्वी के केंद्र की ओर अथवा केंद्र की ओर से भूपटल की ओर मंद गति से हलचलें होती रहती हैं । इन हलचलों के कारण भूपटल का विस्तृत भाग ऊपर उठ जाता है अथवा धँस जाता है । भूपटल का भाग समुद्री सतह से ऊपर उठ जाने से महाद्वीपों की निर्मिति होती है । अत: इन हलचलों को महाद्वीपों को निर्माण करनेवाली हलचलें कहते हैं । इन हलचलों के कारण विस्तृत पठारों की निर्मिति होती है ।