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Read this article to learn about the fast ground movements that occurs below the earth’s surface in Hindi language.
इस प्रकरण में हम आंतरिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होने वाली द्रुत भू हलचलों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे ।
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द्रुत हलचलें:
पृथ्वी के आंतरिक भाग में कई बार अचानक बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उत्सर्जन होता है । इन हलचलों की गति तीव्र होने के कारण उन हलचलों को द्रुत भू हलचलें कहते हैं । ये हलचलें विनाशकरी होती हैं । ये हलचलें उर्ध्व अर्थात पृथ्वी की त्रिज्या दिशा में होती हैं । हम इनका प्रभाव सीमित प्रदेश पर भूकंप और ज्वालामुखी के रूप में देखते हैं ।
(1) भूकंप:
भूपृष्ठ के नीचे होने वाली हलचलों के कारण भूपटल पर भारी दबाव निर्माण होता रहता है । यह दबाव विशिष्ट सीमा से अधिक उत्पन्न होने पर वहाँ की ऊर्जा का उत्सर्जन होता है । इन ऊर्जा तरंगों के कारण भूपृष्ठ पर कंपन उत्पन्न होता है । उसे हम भूकंप कहते हैं ।
भूपट्टिकाओं में हलचल होने, उनके खिसकने, उनका एक-दूसरे से टकराने अथवा एक-दूसरे के नीचे चले जाने से, ज्वालामुखी का उद्गार होने, भूपृष्ठ की आंतरिक चट्टानों का भ्रंश होने जैसे कारणों से भूकंप होता है ।
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भूकंप की तीव्रता रिश्टर इकाई में भूकंप लेखी यंत्र द्वारा मापी जाती है । आकृति ६.१ देखो ।
भूकंप आने पर भूपृष्ठ के नीचे जिस स्थान से ऊर्जा मुक्त होती है, उस स्थान को भूकंप का केंद्र (नाभि) कहते हैं । भूकंप केंद्र से ऊर्जा का उत्सर्जन विभिन्न तरंगों के रूप में भूपृष्ठ की ओर सभी दिशाओं में होता है । भूकंप केंद्र से सभी दिशाओं से विविध तरंगों के स्वरूप में ऊर्जा का उत्सर्जन भूपृष्ठ की ओर होता है । भूकंप का अधिकेंद्र भूकंप केंद्र से भूपृष्ठ के सबसे निकट के भाग में होता है ।
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भूकंप तरंगों के तीन प्रकार:
i. प्राथामिक तरंगें,
ii. द्वितीयक तरंगें और
iii. भूपृष्ठीय तरंगें हैं ।
(i) प्राथमिक तरंगें:
भूगर्भ में ऊर्जा का उत्सर्जन होने पर ये तरंगें सबसे पहले भूपृष्ठ पर पहुँचती हैं । भूकंप के केंद्र से पृथ्वी की त्रिज्या पर सभी दिशाओं से भूपृष्ठ की ओर द्रुत से अनेवाली इन तरंगों को प्राथमिक तरंगें कहते हैं । इन तरंगों के कारण चट्टानों के कणों की हलचल तरंगों की दिशा में आगे-पीछे होती है ।
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(ii) द्वितीयक तरंगें:
ये तरंगें भूपृष्ठ पर प्राथमिक तरंगों के बाद पहुँचती हैं । इन तरंगों को द्वितीयक तरंगें कहते हैं । ये तरंगें केंद्र से निकलकर चारों ओर फैलती हैं । इन तरंगों के कारण चट्टानों के कणों की हलचल ऊपर-निचे अर्थात तरंगों की दिशा में लंबवत होती है । फलस्वरूप ये तरंगें अधिक विनाशकारी होती हैं ।
(iii) भूपृष्ठीय तरंगें:
भूपृष्ठ पर प्राथमिक और द्वितीयक तरंगें पहुँचने के बाद उसका प्रभाव भूपृष्ठ पर पड़ता है और नई तरंगें निर्मित होती हैं । ये लहरें परिधि की दिशा में फैलती हैं । इन तरंगों के कारण चट्टानों के कणों की हलचलें ऊपर-नीचे और टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं । फलस्वरूप ये तरंगें अधिक विनाशकारी होती हैं ।
(2) ज्वालामुखी:
पृथ्वी के प्रावार से तप्त द्रव, ठोस और गैसीय पदार्थ भूपृष्ठ पर फेंके जाते हैं । इस क्रिया को ज्वालामुखीय क्रिया कहते हैं । ज्वालामुखी के उद्गार से राख, जलवाष्प, अनेक प्रकार की गैसें, तप्त और पिघली हुई चट्टानों के रूप में लावा आदि पदार्थ बाहर फेंके जाते हैं ।
ज्वालामुखी के उद्गार के अनुसार प्रकार:
(i) केंद्रीय व्यालामुखी:
इस ज्वालामुखी उद्गार के बाद लावा एक नली जैसे मार्ग से बाहर निकलता है । अत: उसे केंद्रीय ज्वालामुखी कहते हैं । इस क्रिया में ज्वालामुखी से बाहर आए पदार्थ नली के मुख के पास संचित होते हैं । इससे शंक्वाकार ज्वालामुखीय पर्वतों का निर्माण होता है । उद., वेसुविएस (इटली) और किलीमंजारो (तंजानिया) ।
(ii) भ्रंशीय (विदरी) ज्वालामुखी:
ज्वालामुखी का उद्गार होते समय लावा कई दरारों में से बाहर निकलता है । उसे भ्रंश ज्वालामुखी कहते हैं । इस प्रक्रिया में बाहर फेंके गए पदार्थ दरारों के दोनों ओर फैले जाते हैं । ऐसे उद्गार से ज्वालामुखीय पठारों की निर्मिति होती है । उदा., महाराष्ट्र का पठार ।
भूकंप और ज्वालामुखी क्षेत्र:
ये क्षेत्र प्रमुख रूप से भूपट्ठिकाओं के सीमा क्षेत्र में पाए जाते हैं । ज्वालामुखी का वितरण मुख्य रूप से प्रशांत महासागर के तट पर पाया जाता है । अतः इस क्षेत्र को अग्निकंकण कहते हैं । आकृति ६.५ देखो । उसमें भूकंप और ज्वालामुखी का वैश्विक वितरण दिखाया गया है । उसमें कुछ प्रमुख ज्वालामुखियों के नाम दिए गए हैं ।
भूपट्टिका:
भूपटल प्रावार की ऊपरी सतह पर तैरती हुई अवस्था में होता है । पृथ्वी के अंतरंग में होने वाली हलचलों के फलस्वरूप भूपटल पर दबाव पड़कर उसके कुछ हिस्से बन गए हैं । उन्हें भूपट्टिकाएँ कहते हैं । पृथ्वी पर सात प्रमुख भूपट्टिकाएँ और अन्य छोटी भूपट्टिकाएँ हैं । भूपट्टिकाओं की कुछ सीमाओं पर भूपट्टिकाओं का नवनिर्माण होता है तो कुछ सीमाओं पर वे नष्ट हो जाती हैं ।
भूपट्टिकाओं के पृष्ठभाग पर हमें महासागर अथवा महाद्वीप दिखाई देते हैं । महाद्वीप और महासागर भूपट्टिकाओं पर स्थित हुए हैं । इसमें से महाद्वीप भूपटल के सियाल के हिस्से हैं और सागरतल सिमा के हिस्से हैं ।
महाद्वीप:
समुद्री सतह से अधिक ऊँचाईवाली भूमि के विस्तीर्ण और खंडित भाग को महाद्वीप कहते हैं । पृथ्वी पर कुल सात महाद्वीप माने जाते हैं । आयतन के अनुसार वे इस प्राकार हैं : उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अंटार्क्टिका । महाद्वीप के आंतरिक भागों में ढलानक्षेत्र होते हैं । ढलानक्षेत्र से तात्पर्य भूमि का वह प्रदेश जो सर्वाधिक प्राचीन और कभी सागर में न डूबा हुआ हो । भारत का दक्खिनी पठार स्वतंत्र ढलानक्षेत्र है । अतः हिमालय पर्वत के दक्षिणी भाग को भारतीय उपमहाद्वीप कहते हैं ।