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Read this article to learn about secondary and tertiary occupation of people in Hindi language.
हमें प्राथमिक व्यवसायों से विविध प्रकार का कच्चा माल प्राप्त होता है । उनमें से अधिकतर माल का ज्यों का त्यों उपयोग नहीं किया जाता इसके लिए कच्चे माल पर प्रक्रिया करके उसमें आवश्यक परिवर्तन करना पड़ता है । कच्चे माल पर प्रक्रिया करके नए माल का उत्पादन करनेवाले व्यवसायों को द्वितीयक व्यवसाय कहते हैं । उदा., वस्त्र, लौह-इस्पात, चीनी (शक्कर) निर्मिति आदि उद्योग ।
कम समय में अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इन व्यवसायों में यंत्रों का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है । परिणामत: वस्तुओं का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है । लोगों को रोजगार उपलब्ध होता है । फलस्वरूप देश के आर्थिक विकास में सहायता प्राप्त होती है ।
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उद्योग के स्थानीयकीकरण के घटक:
उद्योग-धंधों का स्थान निश्चित करने को ही स्थानीयकीकरण कहते हैं । कच्चे माल की उपलब्धता, श्रमिकों की आपूर्ति, बाजार, पूँजी, ऊर्जा साधन के अलावा यातायात, संचार माध्यम, की सुविधाएँ, सरकारी नीति आदि घटकों का उद्योग-धंधों के स्थानीयकीकरण पर प्रभाव पड़ता है ।
लौह-इस्पात उद्योग:
विभिन्न उद्योगों के लिए आवश्यक यंत्र, यातायात के साधन, सुरक्षा सामग्री आदि के लिए लौह तथा इस्पात की आवशकता होती है । अत: लोहे और इस्पात उद्योगों का औद्योगिकीकरण में असाधारण महत्व है ।
लौह-इस्पात उद्योगों के लिए लौह, कोयला, चूने का पत्थर, मैंगनीज की आवश्यकता होती है । ये खनिज भारी होने से उनका यातायात करना खर्चीला होता है । अत: ये उद्योग कोयला अथवा लौह उत्पादक क्षेत्रों में ही होते हैं ।
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छोटा नागपुर के पठारी प्रदेशों में लौह खनिज तथा कोयला विपुल मात्रा में पाया जाता है । इसलिए वहाँ लौह-इस्पात निर्मिति उद्योग का विकास हुआ है । आकृति १४.१ के आधार पर समझो कि भारत के जमशेदपुर में इस लौह कारखाने का स्थानीयकीकरण किस प्रकार हुआ है ।
सूती वस्त्र उद्योग:
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आकृति १४.२ में पश्चिम भारत के कपास उत्पादन के क्षेत्र तथा वस्त्र उद्योगों के केंद्र दर्शाए गए हैं ।
इस उद्योग पर कच्चे माल की उपलब्ध्ता और अनुकूल जलवायु जैसे प्रमुख घटकों का प्रभाव पड़ता है । कपास नाशवान वस्तु नहीं है । बिनौले निकाले जाने पर कपास हल्की तथा भार में कम न होनेवाली होती है । इसलिए इसे दूर तक ढोकर ले जा सकते हैं ।
परिणामत: यह उद्योग कच्चे माल के क्षेत्र से दूरीवाले क्षेत्रों में भी शुरू किया जा सकता है । नम जलवायु में कपास के लंबे धागे (सूत) निकलते हैं तथा धागा टूटने की मात्रा भी कम रहती है । इसलिए इन उद्योगों का विकास प्रारंभ में मुंबई जैसे नम जलवायु प्रदेश में हुआ ।
अभियांत्रिकी उद्योग:
विविध उद्योगों में लगनेवाली यंत्र सामग्री और यंत्रों के पुर्जें तैयार करनेवाले कारखानों का अंतर्भाव अभियांत्रिकी उद्योगों में होता है । लौह इस्पात उद्योगों से प्राप्त होनेवाले इस्पात को पक्का माल कहते हैं परंतु पक्का माल अभियांत्रिकी उयोगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होता है । इससे यंत्र बनाए जाते हैं । अतः अभियांत्रिकी से सबंधित यंत्र सामग्री के उद्योग प्राय: कच्चे माल की आपूर्ति करनेवाले धातु क्षेत्रों में पाए जाते हैं ।
तृतीयक व्यवसाय:
हमें अपने दैनिक जीवन में अनेक सेवाओं की आवश्यकता होती है । वित्त सेवा, स्वास्थ्य सेवा, मनोरंजन, यातायात जैसी सेवाओं से लेकर घड़ी की मरम्मत करना, छुरियों को धारदार बनाना जैसी सभी सेवाओं का अंतर्भाव तृतीयक व्यवसायों में होता है । इन सेवाओं को पाने के लिए पारिश्रमिक देना पड़ता है । तृतीयक व्यवसायों की कुछ सेवाओं के बारे में हम अधिक जानकारी प्राप्त करेंगे ।
यातायात:
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यात्री, माल अथवा डाक एक जगह से दूसरी जगह तक ले जाने के लिए यातायात सेवाओं का उपयोग किया जाता है । इसके लिए सड़कें, रेल मार्ग, जल मार्ग, विमान मार्ग जैसी सुविधाओं को उपयोग में लाना पड़ता है । इन सेवाओं के कारण विविध वस्तुओं की जहाँ माँग होती है; वहाँ वे समय पर पहुँचाई जाती हैं । द्रुतगति यातायात के साधनों से समय की बचत होती है । आपातकालीन स्थिति में यातायात सेवा को असाधारण महत्व प्राप्त है ।
पर्यटन:
प्रतिदिन की रेलपेल की जिंदगी में अनेक प्रकार से दबाव निर्माण होते हैं । अत: हमारे लिए मनोरंजन की आवश्यकताएँ होती हैं । मानसिक रूप से तरोताजा रहने के लिए हम प्राकृतिक अथवा ऐतिहासिक, सांस्कृतिक आदि सुंदर स्थलों का पर्यटन करते हैं ।
इसी को पर्यटन कहते हैं । पर्यटकों को यातायात एवं निवास की सेवाएँ देनी पड़ती हैं इन्हीं सेवाओं के कारण पर्यटन व्यवसाय का निर्माण हुआ है । इस प्रकार की सेवाओं की आपूर्ति करनेवाले व्यवसायों का समावेश पर्यटन व्यवसाय में होता है ।
उपरोक्त सेवाओं के अलावा समाज को अन्य सेवाओं की भी आवश्यकता होती है । हमें वकील, डाक्टर, अध्यापक, प्रबंधन विशेषज्ञ अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं । इन सबका समावेश तृतीयक सेवाओं में होता है । भारत की अर्थव्यवस्था में तृतीयक व्यवसायों का महत्व बढ़ने लगा है ।
व्यापार:
उत्पादकों द्वारा तैयार माल को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के व्यवसाय को व्यापार कहते हैं । व्यापार के कारण उत्पादकों को अपनी वस्तुओं का मूल्य प्राप्त होता है तथा उपभोक्ता आवश्यक वस्तुएँ मूल्य देकर खरीद सकता है । स्थानीय, देशांतर्गत, अंतर्राष्ट्रीय आदि स्तरों पर व्यापार किया जाता है । व्यापार के कारण देश के आर्थिक विकास में सहयोग प्राप्त होता है ।
द्वितीयक और तृतीयक व्यवसायों के पर्यावरणीय दुष्परिणाम:
उद्योग तथा यातायात के साधनों से वायु, ध्वनि तथा जल प्रदूषण की समस्याएँ निर्माण हुई हैं । वायु में कार्बन डाइआक्साइड, कार्बन मोनाक्साइड, क्लोरोफ्लूरो कार्बन आदि की मात्रा बढ़ रही है । मानवीय जीवन पर इसके दुष्परिणाम हो रहे हैं । कारखानों के यंत्रों तथा यातायात के साधनों की आवाजों से ध्वनि प्रदूषण होता है । फलस्वरूप बहरापन, मानसिक वीमारी जैसी समस्याएँ निर्माण होती हैं ।
कारखानों से, शहरों से निकला हुआ दूषित धावन जल तथा जलयानों से होने वाली तेल रिसाई के कारण जल प्रदूषण में वृद्धि हुई है । फलत: जलचरों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए बड़े शहरों तथा कारखानों के क्षेत्रों में विविध उपाय योजनाओं को करना अनिवार्य किया जा रहा है । प्रदूषण तथा उसके दुष्परिणामों के बारे में समाज में बोध निर्माण करना आवश्यक है ।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन अनुबंध:
बीसवीं शताब्दी में विविध राष्ट्रों के स्वतंत्र होने के बाद उन्होंने अपने देश का विकास करने की नीति अपनाई है । यह करते समय राष्ट्रों ने आयात पर प्रतिबंध लगाए । इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगा और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सिकुड़ने लगा । इसे रोकने के लिए राजनैतिक नेताओं, अर्थशास्त्रियों तथा उद्यमियों ने खुले व्यापार नीति को समर्थन दिया ।
इसी में से आगे चलकर विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष जैसी संस्थाओं का जन्म हुआ । विज्ञान-तकनीक का विकास, गैट अनुबंध के अनुसार व्यापार विषयक बातचीत, मुक्त व्यापार के लिए उपाययोजनाएँ जैसी बातों से व्यापार के वैश्वीकरण को गति प्राप्त हुई । बीसवीं शताब्दी के अंतिम दस वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के ढाँचे में परिवर्तन आने लगा है ।
गैट:
सीमा शुल्क तथा व्यापारसंबंधी साधारण अनुबंध नामक विश्व संगठन की स्थापना १९४८ में हुई । विश्व के कई देश इस संगठन के सदस्य हैं । गैट संगठन का मुख्य उद्देश्य विश्व में खुले व्यापार का वातावरण निर्माण करना था । इस संदर्भ में संगठन की आठ बैठक हुईं ।
गैट में चर्चा के माध्यम से ११८६ में विश्व व्यापार संगठन World Trade Organization (WTO) का निर्माण हुआ । विश्व स्तर पर इस संगठन का कार्य १ जनवरी १९९५ में प्रारंभ हुआ । यह स्थायी तथा वैधानिक संगठन है । भारत इस संगठन का संस्थापक सदस्य है । इस संगठन का कार्य गैट की तुलना में अधिक व्यापक है ।
सार्क:
दक्षिणी एशियाई प्रादेशिक सहयोग हेतु यह संगठन स्थापित किया गया है । सार्क अंतर्राष्ट्रीय स्तर का एक प्रादेशिक संगठन है । भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा मालदीव राष्ट्रों ने प्रादेशिक स्तर पर सहयोग देने और पाने के लिए इस संगठन का निर्माण किया है । इस संगठन के मंच पर दो राष्ट्रों के बीच चल रहे विवाद के मुद्दों पर चर्चा नहीं की जाती ।
इस संगठन के सभी राष्ट्रों की आर्थिक समस्याएँ सामान्यत: एक जैसी हैं । इन समस्याओं के निवारण के लिए और विश्व स्तर पर ठोस प्रतिनिधित्व निर्माण करने हेतु इन देशों के लिए यह बहुत उपयुक्त सिद्ध हुआ है । इस संगठन को स्थापित करने में भारत अग्रसर रहा है । इन दिनों इस संगठन में अफगानिस्तान का भी समावेश हुआ है ।
वैश्वीकरण:
व्यापार का वैश्वीकरण एक प्रक्रिया है । सरल भाषा में कहना हो तो स्थानीय अथवा प्रादेशिक स्तर की वस्तुओं को विश्व स्तर पर उपलब्ध कराने की प्रक्रिया को वैश्वीकरण कहते हैं । वैश्वीकरण प्रक्रिया से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अधिक विस्तार तथा खुलापन आने लगा है ।
इन दिनों वैश्वीकरण यह शब्द प्राय: आर्थिक वैश्वीकरण के अर्थ में प्रयुक्त होता है । अलग-अलग राष्ट्रों ने अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था का अन्य राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं से समन्वय बिठाने का प्रयत्न शुरू किया है । फलस्वरूप व्यापार, सीधे विदेशी निवेश, निवेश का बहाव लोगों का स्थलांतरण तथा प्रौद्योगिकी प्रसार आदि बातों में वृद्धि हुई है ।