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द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक लड़ा गया । यह युद्ध मानव सभ्यता के इतिहास में सबसे अधिक भयंकर और विनाशकारी था । इस युद्ध ने विश्व के सभी देशों को आर्थिक, मानवीय और भौतिक रूप से प्रभावित किया । यह युद्ध जल, थल और नभ सभी जगह लड़ा गया ।
इसमें टैंकों, पनडुब्बियों, जहाजों और हवाई जहाजों का प्रयोग हुआ । सभी प्रकार के हथियारों बदूकों से लेकर परमाणु बमों तक का प्रयोग इस युद्ध में किया गया । अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराए । द्वितीय विश्व युद्ध ने सभी कुछ तहस-नहस कर दिया ।
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विश्व युद्ध जब चल रहा था तभी विश्व के राजनेताओं ने यह अनुभव किया कि यदि इस युद्ध के बाद एक और युद्ध छिड़ गया तो पूरा विश्व ही विनाश के गर्त में चला जाएगा । अत: यह विचार किया गया कि ऐसे प्रयत्न किए जाएँ कि भविष्य में अब कोई युद्ध न हो । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को की गई ।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति की स्थापना के लिए प्रयास किए गए थे । इन प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि 1920 में लीग ऑफ नेशन्स नामक संगठन की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य विश्व शांति की स्थापना करना था, परन्तु लीग ऑफ नेशन्स द्वितीय विश्व युद्ध को रोकने में सफल नहीं हुआ ।
वह अपने आन्तरिक विरोधों के कारण प्रभावहीन रहा । द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति रुजवेल्ट और ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने विश्व शांति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन स्थापित करने का सुझाव दिया ।
इस सुझाव की दिशा में पहल करते हुए 1943 में संयुक्त राज्य अमेरिका सोवियत संघ गणराज्य (वर्तमान में रूस) और ग्रेट ब्रिटेन के प्रतिनिधि मास्को में एकत्र हुए और उन्होंने विश्व शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने के लिए एक विश्व संगठन की आवश्यकता पर जोर दिया ।
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अक्टूबर 1944 में डम्बर्टन ऑक्स में इन चारों राष्ट्रों ने इस प्रकार का संगठन स्थापित करने का प्रस्ताव तैयार किया । 1945 में (23 अप्रैल से 26 जून तक) संयुक्त राज्य अमेरिका के सेनफ्रांसिस्को में पचास राष्ट्रों का एक सम्मेलन हुआ ।
लम्बे विचार-विमर्श के बाद 50 राष्ट्रों ने 26 जून 1945 को संयुक्त राष्ट्र का घोषणा पत्र तैयार किया । इस घोषणा-पत्र पर 51 देशों ने हस्ताक्षर किए पौलेण्ड की ओर से भी सोवियत संघ ने हस्ताक्षर किए । इस घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में भारत भी सम्मिलित था ।
यह घोषणा पत्र 24 अक्टूबर 1945 को प्रभावी हुआ । इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई । तब से प्रत्येक वर्ष इसी तिथि को संयुक्त राष्ट्र दिवस मनाया जाता है । संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यूयार्क में स्थित है । वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्य संख्या 196 है । आज विश्व के लगभग सभी स्वतंत्र देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य:
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संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य उसकी प्रस्तावना व घोषणा-पत्र में उल्लेखित हैं ।
प्रमुख चार उद्देश्य निम्नानुसार हैं:
i. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना एवं इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सामूहिक कार्यवाही द्वारा शांति के अवरोधों को हटाना ।
ii. विभिन्न राष्ट्रों में समान मानव अधिकारों तथा आत्म निर्णय के सिद्धांतों पर आधारित मैत्रीपूर्ण समन्वय स्थापित करना ।
iii. अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं जैसे- आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा मानवीय समस्याओं को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाने में सहायता करना तथा सभी के लिए मानवीय अधिकारों एवं मूल स्वतंत्रता के प्रति सम्मान में अभिवृद्धि करना ।
iv. उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न राष्ट्रों के कार्यों में सामंजस्य करने के लिए इस संस्था को एक केन्द्र के रूप में प्रयोग करना । इन उद्देश्यों पर गंभीरता से विचार करने पर यह स्पष्ट होता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य मानव जाति को युद्ध की विभीषिका से बचाना है तथा विश्व शांति स्थापित करना है ।
विश्व शांति स्थापित होने पर ही राष्ट्र अपनी प्रगति कर सकते हैं और प्राप्त संसाधनों का प्रयोग जनता के जीवन स्तर को उठाने के लिए कर सकते हैं । जहाँ तक भारत की बात है संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य हमारी संस्कृति और राजनीतिक लक्ष्यों के अनुकूल हैं । हमारा संविधान संयुक्त राष्ट्र संघ के इन आदर्शों को मान्यता देता है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता:
संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य दो प्रकार के होंगे:
1. प्रारंभिक सदस्य:
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जिन राष्ट्रों ने सेनफ्रांसिस्को सम्मेलन में भाग लिया और संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की तथा वे जिन्होंने राष्ट्र संघ घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए वे प्रारंभिक सदस्य हैं । भारत इनमें से एक है । ऐसे सदस्यों की संख्या 51 है ।
2. ऐसे राष्ट्र जो शांतिप्रिय हैं और जो अपने अन्तर्राष्ट्रीय उत्तरदायित्वों को पूरी करने की इच्छा रखते हैं, संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य बन सकते हैं । नए प्रत्याशी राष्ट्रों को सदस्यता सामान्य सभा सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर देती है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग:
संयुक्त राष्ट्र संघ के छ: अंग हैं, इनका उल्लेख संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर ने अपनी छटवीं धारा में किया है ।
ये छ: अंग हैं:
(1) सामान्य सभा/महासभा
(2) सुरक्षा परिषद्
(3) आर्थिक और सामाजिक परिषद्
(4) न्यास परिषद्
(5) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय
(6) सचिवालय ।
(1) महासभा:
महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य सम्मिलित रहते हैं । प्रत्येक सदस्य राष्ट्र को एक ही मत देने का अधिकार है । साधारणत: महासभा की बैठक वर्ष में एक बार होती है जो महत्वपूर्ण मामले इसके सामने प्रस्तुत किए जाते हैं उन पर यह विचार करती है और अपनी सिफारिशें करती हैं । महासभा विश्व संसद की तरह कार्य करती है । महासभा में सभी महत्वपूर्ण मामले दो तिहाई बहुमत से निर्णित किए जाते हैं ।
(2) सुरक्षा परिषद्:
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे महत्वपूर्ण अंग है । वह विश्व की सुरक्षा और शांति की देखभाल करती है । इसमें 15 सदस्य होते हैं । ये सदस्य दो प्रकार के होते हैं । पाँच सदस्य अर्थात फ्रांस जनवादी चीन रूस यूनाइटेड किंगडम (इंग्लैण्ड) तथा संयुक्त राज्य अमेरिका इसके स्थाई सदस्य हैं । शेष दस सदस्य महासभा द्वारा दो वर्ष की अवधि के लिए निर्वाचित किए जाते हैं ।
(3) आर्थिक एवं सामाजिक परिषद:
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् संयुक्त राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक कार्यों का संयोजन करती है । यह बाल कल्याण और नारी अधिकारों से संबंधित कार्य करती है । यह उच्च जीवन स्तर तथा आर्थिक एवं सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रोत्साहन देती है ।
इसका उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सामाजिक एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान करना है । इसका यह भी उद्देश्य है कि ये जाति भाषा या धर्म पर आधारित किसी प्रकार के भेदभाव के बिना मानव अधिकारों के प्रति व्यापक सम्मान और उनके अनुपालन की दिशा में कार्य करें । इसमें 54 सदस्य होते हैं । प्रत्येक वर्ष 18 सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिए महासभा द्वारा निर्वाचित होते हैं ।
(4) न्यास परिषद्:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ग्यारह प्रदेशों/राज्यों को जो विदेशी शासन के अधीन थे संयुक्त राष्ट्र न्यास परिषद् की व्यवस्था में सम्मिलित किए गए । न्यास परिषद् का उद्देश्य इन राज्यों को विदेशी शासन से मुक्त कराने में उनकी सहायता करना है । इनमें से अधिकांश प्रदेश अब स्वतंत्र हो गए हैं । हाल ही में नामीबिया ने स्वतंत्रता प्राप्त की है ।
(5) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय:
यह संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंगों में से एक है । इसमें 15 न्यायाधीश होते हैं । इसके न्यायाधीश सुरक्षा परिषद् और महासभा द्वारा 9 वर्ष के लिए निर्वाचित किए जाते हैं । यह न्यायालय अपने सदस्य राष्ट्रों के मध्य हुए विवादों का निर्णय करता है । यह संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संगठनों को परामर्श भी देता है । इसे विश्व अदालत भी कहा जाता है ।
(6) सचिवालय:
संयुक्त राष्ट्र संघ केप्रतिदिन के कार्य संपादित करता है । इसके सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारी को महासचिव कहते हैं । उसकी नियुक्ति सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा द्वारा की जाती है । विश्व शांति भंग करने वाले मामलों अथवा अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के किसी भी मामले की ओर महासचिव सुरक्षा परिषद् का ध्यान आकर्षित करता है । वर्तमान में दक्षिण कोरिया के श्री बान कीमून महासचिव के पद पर कार्य कर रहे हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेष संस्थाएं:
आर्थिक व सामाजिक विकास के क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का संयुक्त राष्ट्र संघ के लिए महत्व है । संयुक्त राष्ट्र संघ का यह कर्तव्य है कि वह उच्च जीवनस्तर, पूर्ण रोजगार तथा सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए समुचित परिस्थितियों के सृजन में सहयोग प्रदान करे । इस उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने अनेक विशेष संस्थाओं की स्थापना की है, जो अपने विशिष्ट क्षेत्र में कार्य करती है ।
उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
1. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO):
इसकी स्थापना 1946 में हुई । इसका मुख्यालय पेरिस में है । इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में राष्ट्रों के मध्य आपसी सहयोग को प्रोत्साहित करना है ।
2. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO):
इसकी स्थापना 1948 में हुई । इसका उद्देश्य सभी लोगों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करना है ।
3. संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय बाल आपात कोष (UNICEF):
इसकी स्थापना 1946 में की गई । यूनीसेफ सभी बच्चों को बिना किसी जाति या धर्म का भेदभाव किए सहायता दिए जाने का प्रावधान करता है । यह संगठन स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करता
है ।
4. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO):
संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेष संस्था के रूप में 1946 में स्थापित हुआ । इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय के लिए प्रयास करना और श्रमिकों की दशा में सुधार लाना है ।
5. खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO):
यह संयुक्त राष्ट्र संघ की विशेष संस्था है, जिसकी स्थापना 1945 में हुई । इस संगठन का उद्देश्य विश्व में व्यास निर्धनता, कुपोषण और भूखमरी के विरुद्ध संघर्ष करना है ।
इनके अतिरिक्त कुछ अन्य संस्थाएं भी हैं, जिनके नाम तुम जानना चाहोगे, वे हैं:
i. अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF)
ii. विश्व बैंक (WB)
iii. विश्व डाक शक्ति संगठन (WPU)
iv. अन्तर्राष्ट्रीय अणु शक्ति संगठन (IAEA) ये संस्थाएं विभिल क्षेत्रों में कार्य कर रही हैं ।
उपलब्धियाँ:
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति स्थापित करना है । अपनी स्थापना से अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ को अनेक विवादों में कार्यवाही करनी पड़ी । संयुक्त राष्ट्र अनेक बार युद्ध टालने में सहायक हुआ । इसने अनेक संकटपूर्ण स्थितियों में तनाव कम किए हैं ।
जिन उपायों को साधारणतया काम में लाया गया वे शांति के लिए सैन्य कार्यवाही मिशन इत्यादि । इसने कश्मीर, काँगों, पश्चिम एशिया, साइप्रस और यमन में बडे स्तर पर युद्ध होने से पूर्व रोकथाम की । ग्रीस, इंडोनेशिया, लेबनान, मिश्र, गाजापट्टी, काँगों, कोरिया, गल्फ युद्ध (ईरान-ईराक) में शांति के लिए किए गए प्रयास उसकी कुछ महान उपलब्धियाँ हैं ।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुछ राष्ट्रों को स्वतंत्र कराने में सफलतापूर्वक सहायता की है । इसने मानव अधिकारों के संवर्धन और उनकी रक्षा, पर्यावरण और समुद्र तल के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा में विशिष्ट योगदान दिया है । संयुक्त राष्ट्र संघ अणु शस्त्रों की होड़ को रोकने का निष्ठापूर्वक प्रयास कर रहा है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी विशेष संस्थाओं के माध्यम से अपने सदस्य देशों विशेषकर भारत सहित सभी विकासशील देशों के सामाजिक व आर्थिक विकास हेतु निरंतर कार्य कर रहा है । विकासशील देशों का आर्थिक विकास करना संयुक्त राष्ट्र का एक मुख्य कार्य हो गया है ।
विशेष संस्थाओं के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र सम्पूर्ण विश्व के बच्चों को सहायता दे रहा है । मुख्यत: विकासशील देशों के लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है । संयुक्त राष्ट्र के सामाजिक आर्थिक कार्यकलापों से अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में अभिवृद्धि हुई है । संयुक्त राष्ट्र मानव सर्वोम्मुखी विकास के लिए कार्यरत है ।
भारत और संयुक्त राष्ट्र:
प्रारम्भ से ही भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके कार्यक्रम का समर्थन किया है । भारत ने सदा से ही संयुक्त राष्ट्र संघ को एक ऐसी संस्था माना है जो अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से स्वतंत्रता शांति और समृद्धि में अभिवृद्धि करेगी । विश्व के विभिन्न भागों में उपनिवेशीय शासन के विरोध में भारत की सदैव प्रमुख भूमिका रही है ।
भारत ने इंडोनेशिया, लीबिया, टयूनीशिया, घाना, मोरक्को और अलजीरिया की स्वतंत्रता का समर्थन किया है । जातीयता पर आधारित दक्षिण अफ्रीका के शासन द्वारा अपनाई गई जातीय रंगभेद नीति का विरोध करने में भारत ने संयुक्त राष्ट्र का निरंतर समर्थन किया ।
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा शांति के लिए की गई सैन्य कार्यवाही में भी भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही । संयुक्त राष्ट्र की अपनी कोई निजी सेना नहीं है । अत: यह अपने सदस्य राष्ट्रों से सेना भेजने का अनुरोध करता है ।
कोरिया के युद्ध में घायलों की प्राथमिक चिकित्सा हेतु भारत ने एक चिकित्सक दल भेजा था । कोरिया युद्धबंदियों के आदान-प्रदान की देखरेख का उत्तरदायित्व भारत को दिया गया था । गाजा में संयुक्त राष्ट्र आपातकालीन सैन्य दल में शामिल करने हेतु सबसे बड़ी टुकड़ी भारत ने भेजी थी ।
साइप्रस राष्ट्र की सेना के प्रथम दो सेनापति भारतीय थे । काँगों में की गई सैन्य कार्यवाही में भारत ने सबसे बड़ा सैन्य दल भेजने का भार अपने ऊपर ले लिया जो इस संकट को समाप्त करने में सहायक हुआ था । भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ को शांतिपूर्ण एवं सद्भावना मानव समाज का एक साधन मानकर सदैव निष्ठा दिखाई है । विश्व को युद्ध के संकट से सुरक्षित करने के लिए भारत नि:शस्त्रीकरण को आवश्यक समझता है ।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में नि:शस्त्रीकरण पर होने वाले विचार-विमर्श में सक्रिय भाग लिया है । भारत की यह धारणा सदा से ही रही है कि आणविक शक्ति का प्रयोग शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए और आणविक शस्त्रों के पूर्ण उन्मूलन का भी भारत समर्थन करता है ।
अनेक अवसरों पर महासभा को संबोधित करते हुए हमारे प्रतिनिधियों ने नि:शस्त्रीकरण को समय की माँग बतलाया है । भारत ने इस बिन्दु पर भी अपना जोरदार पक्ष प्रस्तुत किया है शस्त्रों पर होने वाले व्यय को कम किया जाए और बची धनराशि को संसार के निवासियों के श्रेष्ठतर रहन-सहन के लिए खर्च किया जाए ।
अन्य विकासशील देशों के साथ भारत भी राष्ट्रों के बीच आर्थिक असमानता में कमी लाने के लिए संयुक्त राष्ट्र से सहयोग करता है । व्यापार और विकास के लिए हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारत ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।
भारत सुरक्षा परिषद् में सक्रिय भाग लेता रहा है जिसका वह पाँच बार सदस्य रह चुका है । उसने संयुक्त राष्ट्र के अनेक संगठनों में सक्रिय भाग लिया । उदाहरणस्वरूप वह न्यास परिषद् का 12 वर्ष और आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् का 20 वर्ष तक सदस्य रहा है । अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में भी अध्यक्ष के पद पर भारत का प्रतिनिधि रह चुका है ।
संयुक्त राष्ट्र ने भी हमारे राष्ट्रीय विकास में सहायता प्रदान की है । संयुक्त राष्ट्र की विशेष संस्थाओं ने हमें शिक्षा आर्थिक तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्रों में सहायता दी है । कुछ उदाहण दिए जा रहे हैं । खाद्य और कृषि संगठन ने उत्तरप्रदेश के तराई प्रदेश को कृषि योग्य बनाने में सहायता पहुंचाई है ।
यह संगठन राजस्थान में भूमि क्षर को रोकने के प्रयास कर रहा है । सार्वजनिक स्वास्थ्य को उदात करने में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने प्रशंसनीय कार्य किया है । एक दूसरी संस्था यूनेस्को शिक्षा के प्रसार में सहायता कर रही है । संयुक्त राष्ट्र ने अनेक प्रकार से हमारे आर्थिक विकास में सहायता पहुंचाई है ।
विश्व बैंक ने हमारी पंचवर्षीय योजनाओं के लिए ऋण दिए हैं और अनेक परियोजनाओं के संबंध में विशेषज्ञों का तकनीकी परामर्श भी हमें प्राप्त हुआ है । भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिल संस्थाओं में सदस्य के रूप में सदैव सक्रिय एवं रचनात्मक भूमिका का निर्वाह किया है ।
जब संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई उस समय और वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में काफी बदलाव आ गया है । भारत सहित कई देशों ने परिवर्तित परिस्थितियों में संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया है । आज भी संयुक्त राष्ट्र संघ का ढाँचा वही है जो स्थापना के समय था उसे व्यापक और विश्व आकांक्षाओं के अनुरूप बनाने की माँग भारत सहित कई देशों ने की है ।