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Read this article in Hindi to learn about the geographical nature of North America.
स्थिति एवं विस्तार:
क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तर अमेरिका संसार का तीसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है । विश्व का मानचित्र देखने से ज्ञात होता है कि यह पूरा महाद्वीप उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है । इसका अक्षांशीय विस्तार 10 डिग्री उत्तरी अक्षांश से 80 डिग्री उत्तर अक्षांश तक तथा देशान्तरीय विस्तार 20 डिग्री पश्चिम देशान्तर से 170 डिग्री पश्चिम देशान्तर तक है ।
इसकी उत्तर से दक्षिण तक लम्बाई लगभग 7200 किलोमीटर तथा पूर्व से पश्चिम चौडाई लगभग 6400 किलोमीटर है । उत्तर अमेरिका का कुल क्षेत्रफल लगभग 2 करोड़ 49 लाख वर्ग किलोमीटर है । पूरा महाद्वीप त्रिभुज के आकार का दिखाई देता है ।
कोलम्बस नामक यूरोपीय नाविक अपने साथियों के साथ भारत की खोज पश्चिमी समुद्री मार्ग से करना चाहता था । कई दिनों की समुद्री यात्रा के पश्चात वह जिस भू-भाग पर पहुँचा, वह भारत भूमि नहीं थी । वे समुद्री द्वीप थे ।
वह और आगे चलकर जिस विशाल भू-भाग पर सन् 1492 में पहुंचा, वह भू-भाग बिल्कुल नया और एकदम अपरिचित था । कोलम्बस ने इसे ‘नईदुनिया’ कहा । बाद में इसी विशाल भू-भाग को उत्तर अमेरिका के नाम से जाना जाने लगा ।
महाद्वीप के उत्तर में आर्कटिक महासागर, पूर्व में अटलांटिक महासागर, पश्चिम में प्रशान्त महासागर और दक्षिण में दक्षिण अमेरिका महाद्वीप स्थित है । दक्षिण में यह महाद्वीप पनामा नहर द्वारा दक्षिण अमेरिका से पृथक किया गया है ।
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धरातलीय स्वरूप:
धरातलीय उच्चावच के आधार पर उत्तर अमेरिका को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है:
1. पश्चिम का पर्वतीय प्रदेश या कार्डिलेरा,
2. पूर्वी उच्च भूमि,
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3. मध्यवर्ती निम्न भूमि ।
1. पश्चिमी पर्वतीय प्रदेश या कार्डिलेरा:
पश्चिमी पर्वतीय प्रदेश को ही कार्डिलेरा कहा जाता है । कार्डिलेरा का विस्तार महाद्वीप के पश्चिमी भाग में उत्तर में अलास्का से लेकर दक्षिण में मैक्सिको तक है । कार्डिलेरा के पश्चिमी भाग में अनेक पर्वत श्रेणियों समानान्तर उत्तर-दक्षिण फैली हुई हैं ।
पूर्व में रॉकी पर्वतमाला, मध्य में सियेरानिवेदा तथा पश्चिम में तटीय श्रेणी हैं । इन पर्वत श्रेणियों के बीच में अन्तर पर्वतीय पठार ‘ग्रेट बेसिन’ का विस्तार है । ग्रेट बेसिन के दक्षिण में कोलोरेडो का पठार है । इस पठार पर कोलोरेडो और उसकी सहायक नदियों ने धरातल को काट-काटकर गहरी घाटियाँ बना डाली हैं, जिनमें अनेक महाखड्ड तो 1800 मीटर से अधिक गहरे हैं । अधिक गहरे महाखड्ड ‘केनियन’ कहलाते हैं । कोलोरेडो का ‘ग्रेट केनियन’ विश्व विख्यात है ।
कार्डिलेरा में अनेक ज्वालामुखी पाए जाते हैं । कार्डिलेरा का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर माउन्ट मैकिन्ले अलास्का में है । समुद्र सतह से इसकी ऊंचाई 6194 मीटर है । इन्हीं पर्वत श्रेणियों के मध्य भाग में महाद्वीप का सबसे निचला स्थान ‘डेथवेली’ है जो समुद्र सतह से 86 मीटर नीची है । महाद्वीप की अनेक नदियाँ ‘कार्डिलेरा’ से निकलती है ।
2. पूर्वी उच्च भूमि (पठार):
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महाद्वीप के पूर्वी भाग में प्राचीन संरचना वाले अपरदित पठार फैले हैं । पूर्वोत्तर में लेब्रेडोर का पठार तथा दक्षिण पूर्व में अपलेशियन का पठार सम्मिलित है । इनकी ऊंचाई 450 से 2000 मीटर तक है । ये प्राचीन पठार खनिजों के भण्डार हैं । इनमें अनेकों खनिज बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं ।
3. मध्यवर्ती निम्न भूमि (मैदान):
पश्चिमी कार्डिलेरा और पूर्वी उच्चभूमि के मध्य निम्न भूमि का विस्तार है । इसका आकार बडे त्रिभुज जैसा है । इसके उत्तरी भाग में केनेडियन शील्ड तथा मेकेन्जी नदी की द्रोणी है । मध्यवर्ती भाग में मिसीसिपी-मिसौरी नदियों द्वारा निर्मित समतल द्रोणी फैली हुई है ।
इस त्रिभुजाकार मैदान को ‘प्रेयरी का मैदान’ कहा जाता है । नदियों की द्रोणी में उपजाऊ मिट्टियों का फैलाव है । केनेडियन शील्ड विश्व के प्राचीनतम भू-खण्डों में से एक है । यह शील्ड हडसन की खाड़ी को चारों ओर से घेरे हुए है । इस भाग में अनेक झीलें हैं । केनेडियन शील्ड के दक्षिण में मीठे पानी की पाँच बड़ी झीलें ‘महान झीलों’ के नाम से प्रसिद्ध है ।
इनके नाम हैं:
(1) सुपीरियर झील
(2) मिशीगन झील
(3) ह्यूरन झील
(4) इरी झील और
(5) ओन्टेरियो झील ।
विश्व प्रसिद्ध न्याग्रा जल प्रपात इरी और ओन्टेरियो के बीच स्थित है । इस भाग में सेन्टलारेन्स नदी समुद्र को झीलों से जोड़ती है जो जल परिवहन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है । सम्पूर्ण निम्न भूमि का क्रमिक ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है ।
अपवाह तंत्र:
उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वत प्रमुख जल विभाजक है जहाँ से नदियों का प्रवाह अलग-अलग दिशाओं में विभाजित होता है ।
1. पश्चिम में प्रशान्त महासागरीय प्रवाह तन्त्र:
इस तंत्र की यूकोन, कोलम्बिया, फ्रेजर एवं कोलोरेडो नदियाँ, प्रशान्त महासागर में गिरती हैं ।
2. पूर्व में अटलान्टिक महासागरीय प्रवाह तन्त्र:
इसमें सेन्टलारेन्स, मिसीसिपी-मिसौरी और रियोग्रान्डे नदियाँ सम्मिलित हैं । मिसीसिपी नदी अपने मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हुई मैक्सिको की खाड़ी में गिरती है ।
3. उत्तर में आर्कटिक प्रवाह तन्त्र:
इसमें मैकन्जी, चर्चिल, नेलसन आदि नदियाँ सम्मिलित हैं जो आर्कटिक महासागर में मिलती हैं ।
जलवायु:
उत्तर अमेरिका की जलवायु को मुख्य रूप से चार कारक प्रभावित करते हैं:
1. महाद्वीप का अक्षांशीय विस्तार ।
2. महाद्वीप की धरातलीय विविधता ।
3. स्थाई हवाएं तथा
4. जलधाराएं ।
1. महाद्वीप का अक्षांशीय विस्तार:
उत्तर अमेरिका का दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में, मध्य भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में और उत्तरी भाग ध्रुवीय शीत कटिबन्ध में आता है । अत: दक्षिणी भाग अधिक गर्म, मध्य भाग समान रूप से गर्म और ठंडा तथा उत्तरी भाग अत्यधिक ठंडा रहता है । महाद्वीप का अधिकांश भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में पड़ता है ।
2. धरातलीय विविधता का प्रभाव:
पश्चिम में कार्डिलेरा पछुआ पवनों को रोककर अधिक वर्षा करता है जबकि पूर्वी ढाल पूर्णत: वृष्टि छाया में आने से बहुत कम वर्षा प्राप्त करता है । यही कारण है कि प्रेयरी के मैदान में न्यून वर्षा होती है, किंतु प्रेयरी के मैदान से जैसे हम पूर्व तथा दक्षिण-पूर्व की ओर के पठारों व पर्वतों की ओर बढ़ते हैं वर्षा की मात्रा भी बढ़ती जाती है । महाद्वीप के उत्तरी भाग में वर्षा हिमपात के रूप में और कम मात्रा में होती है, क्योंकि यह क्षेत्र निचला मैदान है ।
3. स्थाई पवनों का प्रभाव:
पश्चिम में कार्डिलेरा और पूर्व में उच्च भूमि, दोनों उत्तर से दक्षिण तक फैली हैं इन दोनों के बीच विशाल मैदान हैं । शीतकाल में उत्तर से आने वाली ठंडी ध्रुवीय पवनें तथा ग्रीष्म में दक्षिण से चलने वाली गर्म पवनें सम्पूर्ण मैदानी भाग को प्रभावित करती हैं । इसलिए यह शीतकाल में ठंडा व ग्रीष्म में गर्म रहता है ।
उत्तरी-पश्चिमी तट सुदूर पछुआ हवाओं के प्रभाव में वर्षभर रहता है इसलिए यहाँ वर्ष भर वर्षा होती है । वायुदाब की पेटियाँ दक्षिण की ओर खिसकने से शीतकाल में पश्चिम केलिफोर्निया का क्षेत्र पछुआ पवनों के क्षेत्र में आ जाता है, जिससे यहाँ शीत ऋतु में वर्षा होती है ।
मैक्सिको प्रदेश को मानसूनी पवनें प्रभावित करती हैं जिससे ग्रीष्मकाल में वर्षा होती है, जबकि मैक्सिकों की खाड़ी और दक्षिण-पूर्वी तट व्यापारिक हवाओं के प्रभाव में रहने से वर्ष भर वर्षा प्राप्त करते हैं ।
4. जलधाराओं का प्रभाव:
गर्म तथा ठंडी जलधाराएं जिन तटों के समीप बहती हैं वे वहाँ की जलवायु को अधिक प्रभावित करती है । महाद्वीप के दक्षिणी-पूर्वी तट पर गल्फस्ट्रीम और उत्तरी-पश्चिमी तट पर अलास्का की गर्म धाराएं बहती हैं । इनके प्रभाव से तटीय भागों का तापमान सदैव ऊंचा रहता है ।
हवाएं इनसे गर्म होकर नमी ग्रहण कर वर्षा करती है । लेब्रेडोर की ठंडी धारा उत्तर पूर्वी भाग तथा कैलिफोर्नियों की ठंडी धारा दक्षिणी-पश्चिमी भाग के निकट बहती हैं । इससे तटीय क्षेत्रों की जलवायु अधिक ठंडी हो जाती है ।
न्यू फाउन्डलैण्ड के निकट लेब्रेडोर की ठंडी और गल्फस्ट्रीम की गर्म धाराओं के मिलने से घना कुहरा छाया रहता है । तापमान में परिवर्तन मछलियों के उत्पादन में बहुत लाभदायक है । इसलिए यह क्षेत्र मल्थ व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध है ।
वर्षा वितरण:
महाद्वीप के अधिकांश भागों में वर्षा ग्रीष्म काल में होती है । इस महाद्वीप के तीन पश्चिमी क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ अधिक वर्षा होती है ।
(1) द्वीप समूह में व्यापारिक पवनों के प्रभाव से |
(2) मध्य अमेरिका तथा दक्षिणी पूर्वी भाग में गर्म जल धारा (गल्फस्ट्रीम) की निकटता के कारण ।
(3) ब्रिटिश कोलम्बिया के पश्चिमी तट पर पछुआ पवनों के कारण ।
पूर्वी तट से जैसे-जैसे पश्चिमी क्षेत्र की ओर आगे बढ़ते हैं वर्षा की मात्रा क्रमश: कम होती जाती है । संयुक्त राज्य के दक्षिणी-पश्चिमी भाग ऐरीजोना के मरूस्थल में अत्यन्त कम वर्षा होती है ।
वनस्पति एवं वन्य प्राणी:
किसी भी भू-भाग की वनस्पति एवं वन्य प्राणियों पर वहाँ पाई जाने वाली जलवायु दशाओं का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है । क्योंकि इनकी उत्पत्ति और विकास दोनों ही जलवायु पर निर्भर करते हैं । उत्तर अमेरिका एक ऐसा महाद्वीप है जहाँ भूमध्य रेखीय वनस्पति को छोड़, विश्व में पाई जाने वाली समस्त प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं ।
जलवायु की विविधता तथा वर्षा के असमान वितरण के कारण वनस्पति में भी विविधता दृष्टिगोचर होती हैं । उत्तर अमेरिका वनसम्पदा में बहुत धनी महाद्वीप है । सुदूर उत्तरी भाग के टुंड्रा प्रदेश में शीत ऋतु लम्बी तथा ग्रीष्म ऋतु अल्पकालीन होती है ।
यहाँ अधिकांश समय तक भूमि बर्फ से ढंकी रहती हैं अत: बडे पेड-पौधे यहाँ उत्पन्न नहीं होते । यहाँ वनस्पति के नाम पर केवल काई, लिचेन और अल्पकालिक छोटी-छोटी झाडियाँ होती हैं । सम्पूर्ण प्रदेश बर्फीला और उजाड़ दिखाई देता है ।
यहाँ का मुख्य पशु रेंडियर है जिसे एस्किमो की ‘कामधेनु’ कहा जाता है । टुंड्रा के दक्षिण में पूर्व से पश्चिम तक चौड़ी पट्टी में शीत ऋतु अत्यन्त ठंडी तथा ग्रीष्म ऋतु कोष्ण अर्थात् सामान्य उष्ण होती है । इस सम्पूर्ण चौड़ी पट्टी में नुकीली पत्ती वाले कोणधारी वन पाए जाते हैं ।
इन वनों में चीड़, लार्च, स्प्रूस तथा फर के वृक्ष अधिक मिलते हैं । इन वनों के वृक्षों की लकड़ी मुलायम होती हैं, जो कागज, लुग्दी और फर्नीचर बनाने के काम आती है । यही कारण है कि कनाडा में लकड़ी काटने का व्यवसाय बहुत उन्नत है । इन वनों में समूर (मुलायम बाल) वाले जीव जैसे: बीवर, सफेद भालू, लोमड़ी, भेड़िये, खरगोश तथा बारहसिंगे आदि पाए जाते हैं ।
महाद्वीप के मध्यवर्ती भाग में जहाँ वर्षा बहुत कम होती है । शीत अत्यन्त कठोर होती है, दूर-दूर तक वृक्ष विहीन घास के मैदान फैले हुए हैं, जिन्हें ‘प्रेयरी’ का मैदान कहा जाता है । ये मैदान उपजाऊ है तथा पशु चारण और कृषि के लिए आदर्श हैं । इन मैदानों में बाइसन नामक पशु झुण्ड में विचरण करते हैं ।
पूर्वी भाग में शीतोष्ण मिश्रित वन पाए जाते हैं । जबकि दक्षिणी भागों में कठोर लकड़ी वाले उष्ण-शीतोष्ण पर्णपाती वन मिलते हैं । पश्चिमी मध्य भागों में भूमध्य सागरीय वनस्पति पाई जाती है । यहाँ ओक, चीड़, जैतून, रेडवुड, कार्क तथा रसदार फलों के वृक्ष बहुतायात से विकसित होते हैं । कैलिफोर्निया की घाटी फलोत्पादन के लिए विख्यात है । वृक्षों की छाल, मोटी पत्तियाँ, चिकनी व मोटी होती है । वृक्ष काँटेदार होते हैं जो वृक्षों को सूखने से बचाए रखते हैं ।