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Read this article in Hindi to learn about the geographical nature of Australia.
आस्ट्रेलिया, दक्षिणी गोलार्द्ध में हिन्द महासागर व प्रशांत महासागर में स्थित क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का सबसे छोटा महाद्वीप है । आस्ट्रेलिया, तस्मानिया, न्यूजीलैंड तथा आसपास के द्वीपों को मिलाकर आस्ट्रेलिया का भौगोलिक स्वरूप ओसेनिया महाद्वीप के नाम से जाना जाता है ।
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इस महाद्वीप के प्रधान स्थल खण्ड आस्ट्रेलिया का आक्षांशीय विस्तार 10 डिग्री दक्षिण अक्षांश से 39 डिग्री दक्षिण अक्षांश तथा देशान्तरीय विस्तार 113 डिग्री पूर्वी देशान्तर से 153 डिग्री पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है । मकर रेखा इसके मध्य से होकर गुजरती है । यह महाद्वीप चारों ओर से महासागरों से घिरा हुआ है । उत्तर से दक्षिण इसका विस्तार 3200 कि॰मी॰ और पश्चिम से पूर्व 3900 कि॰मी॰ है ।
आस्ट्रेलिया के पूर्व में कोरल सागर, प्रशांत महासागर तथा तस्मान सागर है । उत्तर में न्यूगिनी द्वीप, कारपेन्ट्रिया की खाड़ी, तिमोर सागर तथा अराफरा सागर, दक्षिण पश्चिम में हिन्द महासागर तथा दक्षिण-पूर्व में तस्मानिया द्वीप, न्यूजीलैण्ड तथा पूर्व में फिजी द्वीप है । आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, पापुआन्यूगिनी व फिजी इस महाद्वीप के मुख्य देश हैं ।
विश्व में आस्ट्रेलिया ही एकमात्र ऐसा देश है जो पूरे महाद्वीप पर फैला है, इसलिए इसे द्वीपीय महाद्वीप भी कहते हैं । आस्ट्रेलिया का क्षेत्रफल 7,686,850 वर्ग किलोमीटर है ।
धरातलीय स्वरूप:
आस्ट्रेलिया महाद्वीप के भू भाग को धरातल की बनावट के आधार पर चार भागों में बाँटा जा सकता है:
1. पश्चिमी पठार:
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आस्ट्रेलिया का पश्चिमी भाग एक विस्तृत पठारी क्षेत्र है, जो महाद्वीप के लगभग दो तिहाई भाग पर उत्तर से दक्षिण तक फैला हुआ है । यह वर्षा की कमी के कारण मरूस्थल या अर्धमरूस्थल है । उत्तरी भाग में ग्रेट सेंडी मरूस्थल तथा दक्षिणी भाग में ग्रेट विक्टोरिया मरूस्थल फैले हैं । यह क्षेत्र पुरानी चट्टानों का बना है । यहाँ अनेक खनिजों के भंडार है, जिसमें कालगूर्ली तथा कूलगार्डी सोने की खानें विश्व प्रसिद्ध
हैं ।
2. मध्यवर्ती निम्न भूमि:
पश्चिमी पठार और पूर्वी पर्वत श्रेणियों के मध्य एक बड़ा मैदान है । यह मैदान उत्तर में कारपेन्ट्रिया की खाड़ी से लेकर दक्षिण में आस्ट्रेलिया के दक्षिण तटीय क्षेत्र तक फैला है । इस निम्न भूमि क्षेत्र में कई नदियाँ प्रवाहित होती हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश नदियाँ समुद्र तक न पहुंचकर यहाँ स्थित छोटी-छोटी अन्त स्थलीय झीलों में गिरती हैं ।
इसी क्षेत्र में इस महाद्वीप की सबसे बड़ी आयर झील भी स्थित है । इस प्रकार मध्यवर्ती निम्नभूमि में आयर झील के चारों ओर का बहुत बड़ा भाग अंत स्थलीय अपवाह क्षेत्र के रूप में जाना जाता है । अंत:स्थलीय अपवाह तंत्र से तात्पर्य उस जल प्रवाह से है जिसमें बहने वाली नदियों का पानी समुद्र तक नहीं पहुंच कर उसी क्षेत्र के किसी जलीय क्षेत्र में मिल जाता है ।
मर्रे एवं डार्लिंग आस्ट्रेलिया की प्रमुख नदियाँ हैं । ये दोनों नदियाँ समुद्र में गिरती हैं । मैदान के दक्षिण-पूर्वी भाग में आटिजियन बेसिन है । इस क्षेत्र में पाताल तोड़ कुओं से जल प्राप्त होता है, जिसके कारण यहाँ पशुपालन का विकास अधिक हुआ है ।
3. पूर्वी पर्वत श्रेणियाँ:
महाद्वीप के पूर्वी तट पर उत्तर में केपयार्क प्रायद्वीप से दक्षिण में तस्मानिया द्वीप तक तट के समानान्तर इन पर्वत श्रेणियों का विस्तार है । यह ऊंचे-ऊंचे पठारों की लंबी पट्टी है जिसे ग्रेट डिवाइडिंग रेंज कहते हैं । यह पर्वत श्रेणियों दक्षिण में ज्यादा संकरी व ऊंची हैं । कोशियुस्को (2230) आस्ट्रेलिया का सबसे ऊंचा पर्वत शिखर है ।
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4. तटीय मैदान:
महाद्वीप के चारों ओर महासागरीय जल है, इसीलिए महाद्वीप के चारों ओर संकरे समुद्र तटीय मैदान पाये जाते हैं । यहाँ समुद्री रेत और नदियों के मुहाने पर जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है । आस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी तट के साथ-साथ समुद्र में एक विशाल प्रवालभित्ति (मूंगे की चट्टान) पाई जाती है ।
इसे यहाँ ग्रेट बैरियर रीफ कहा जाता है । विश्व प्रसिद्ध इस प्रवालभित्ति की लंबाई 1920 कि॰मी॰ है जो तट से 11 किलोमीटर से लगभग 100 किलोमीटर दूर तक फैली है । इस प्रवालभित्ति का निर्माण प्रवाल नाम के अत्यंत छोटे-छोटे जीवों के अस्थि पंजरों के जमाव से हुआ है ।
प्रवाल एक प्रकार के छोटे समुद्री जीव होते हैं जो समुद्र की तली के चट्टानों से चिपके रहते हैं । प्रवाल उष्ण कटिबंधी समुद्रों के स्वच्छ और उथले जल में ही अच्छी तरह पनपते हैं । प्रवाल जीवों के मरने पर उनके अस्थि-पंजर अपने स्थान पर ही जमे रह जाते हैं और नये प्रवाल उनके ऊपर जन्म ले लेते हैं ।
प्रवाल के अस्थि-पंजरों के इस विशाल जमाव को प्रवालभिति कहते हैं । प्रवालभित्ति रीफ पर रंगबिरंगे जीव व वनस्पतियाँ पाई जाती हैं । इन्हें देखने के लिए संसार के विभिन्न क्षेत्रों से लोग यहाँ आते हैं । कोरल चट्टानों अर्थात् प्रवालभित्ति को देखने के लिए पर्यटक शीशा युक्त पनडुब्बी जहाज का उपयोग करते हैं ।
आस्ट्रेलिया के दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र में न्यूजीलैण्ड है । न्यूजीलैण्ड एक पहाड़ी द्वीप समूह है । उत्तर तथा दक्षिण दोनों द्वीपों में एक पर्वत श्रेणी उत्तर से दक्षिण तक फैली हुई है । दक्षिणी द्वीप में इस पर्वत श्रेणी को ‘दक्षिणी आल्पस’ कहते हैं । न्यूजीलैण्ड के उत्तरी तथा दक्षिणी द्वीपों को संकरी कुक जलसंधि एक-दूसरे से अलग करती है ।
जलवायु:
आस्ट्रेलिया दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित महाद्वीप है । इसलिए यहाँ उत्तरी गोलार्द्ध के विपरीत ऋतुएं होती हैं । जब भारत जो कि उत्तरी गोलार्द्ध में है, ग्रीष्म ऋतु होती है, उस समय आस्ट्रेलिया में शीत ऋतु होती
है ।
आस्ट्रेलिया में वर्षा मुख्यत: दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक हवाओं से होती है । आस्ट्रेलिया महाद्वीप की धरातलीय बनावट के कारण पूर्वी पर्वतीय तट पर अधिक वर्षा होती है । शेष मध्य व पश्चिमी भाग शुष्क रह जाते हैं ।
पूर्वी श्रेणियों के अलावा पश्चिमी व मध्य भाग में कोई ऊंचा पर्वतीय क्षेत्र भी नहीं है जो भाप भरी हवाओं को रोक सकें जिससे वर्षा हो । इसीलिए आस्ट्रेलिया के पश्चिमी भाग में विशाल मरूस्थल पाया जाता है । उत्तरी तटीय क्षेत्रों में मानसूनी हवाओं द्वारा तथा दक्षिणी तटीय क्षेत्रों में विशेषकर तस्मानिया द्वीप में पछुआ हवाओं द्वारा वर्षा होती है ।
वनस्पति एवं जीव-जन्तु:
किसी क्षेत्र की जलवायु व धरातलीय स्वरूप का उस क्षेत्र की वनस्पति पर प्रभाव पड़ता है । आस्ट्रेलिया में वर्षा के वितरण के अनुसार वनस्पति पायी जाती है । तटीय क्षेत्रों में जहाँ अधिक वर्षा होती है वहाँ बड़े-बड़े वृक्ष व वन पाए जाते हैं । पश्चिमी एवं मध्यवर्ती शुष्क भागों में कटीली झाडियाँ व घास पाई जाती हैं ।
आस्ट्रेलिया के उत्तरी व उत्तरी-पूर्वी क्षेत्रों में अधिक वर्षा व ताप के कारण उष्ण कटिबन्धी वन मिलते हैं । इनमें देवदार, ताड़, बाँस बाओबाब व बोतल वृक्ष मुख्य हैं । दक्षिण-पश्चिमी तथा दक्षिण-पूर्वी भागों में तथा तस्मानिया में शीतोष्ण वन पाए जाते हैं । आस्ट्रेलिया के इन जनों में मुख्य वृक्ष यूकेलिप्टस है ।
यहाँ लगभग 500 से अधिक प्रजाति के यूकेलिप्टस पाए जाते है । यहाँ का कोआला नामक जन्तु पेडों पर ही रहता है और यूकेलिप्टस के पेड़ों की पत्तियाँ खाता है । आस्ट्रेलिया के मध्यवर्ती भाग के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पेड़ व घास साथ-साथ होती है । यहाँ दो प्रकार की घास भूमि मिलती है ।
उत्तरी क्षेत्र में उष्ण कटिबंधी घास भूमि और दक्षिण के मरे-डार्लिंग बेसिन में शीतोष्ण घास भूमि हैं, जिसे ‘डाउन्स’ के नाम से भी जाना जाता है । इस क्षेत्र में कंगारू नामक जन्तु की बाहुल्यता है । कंगारू आस्ट्रेलिया का प्रतीक चिह्न है । ऐमू, कोकाबर्रा तथा लायर बर्ड आस्ट्रेलिया के विभिन्न पक्षी हैं ।
i. ऐमू:
बड़े आकार का पक्षी जो उड़ नहीं सकता, लेकिन तेज दौड़ता है ।
ii. कोकाबर्रा:
विचित्र बोली व हंसी के कारण उसे ‘लाफिंग जैकाल’ भी कहते हैं ।
iii. लायर बर्ड:
संसार के सबसे सुन्दर पक्षियों में से एक है । कीवी तथा पेग्विंन न्यूजीलैण्ड के प्रसिद्ध पक्षी हैं । कीवी न्यूजीलैण्ड का राष्ट्रीय पक्षी है, यह उड़ नहीं सकता, परंतु बहुत तेज दौड़ता है ।