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भोजन, वस्त्र के समान आवास भी मानव की मूलभूत आवश्यकता है । मानवीय इतिहास के प्रारंभ से ही मानव में समूह बनाकर रहने की प्रवृत्ति दिखाई देती है ।
इसी प्रवृत्ति के फलस्वरूप मानवीय बस्ती का निर्माण होता है । मानवीय बस्ती प्रमुखत: जल की उपलब्धता, उचित जलवायु, उपजाऊ भूमि आदि अनुकूल भौगोलिक घटकोंवाले परिवेश में ही विकसित होती है ।
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ग्रामीण बस्ती:
जिस बस्ती के अधिकांश लोगों के व्यवसाय वहाँ के स्थानीय प्राकृतिक संसाधन से जुड़े हुए होते हैं, उस बस्ती को ग्रामीण बस्ती कहते हैं ।
उदाहरण:
(१) सागरीय तट प्रदेश में मछुआरों की बस्ती
(२) वन प्रदेश में आदिवासियों की बस्ती
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(३) नदी के तटीय प्रदेश में किसानों की बस्ती ।
नगरों का निर्माण:
ग्रामीण बस्ती में मूल व्यवसाय के साथ-साथ अन्य पूरक व्यवसायों में वृद्धि होती है । इस वृद्धि से रोजगार उपलब्ध होता है । रोजगार में वृद्धि होने पर वहाँ आसपास के प्रदेश से लोगों का आना प्रारंभ होता है । अत: मूल ग्रामीण बस्ती की जनसंख्या में वृद्धि होती जाती है ।
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बढ़ती जनसंख्या को रहने के लिए आवास, साथ ही विविध सुविधाओं की आपूर्ति करने के लिए सड़कें, अस्पताल, प्रशासकीय कार्यालय, बैंक, वाजार, भोजनालय, दूकानें, संचार माध्यम, यातायात आदि सेवाएँ प्रारंभ होती हैं । परिणामत: द्वितीयक ओर तृतीयक व्यवसायों का महत्व बढ़ जाता है ।
इन व्यवसायों की तुलना में मूल प्राथमिक व्यवसायों की मात्रा कम हो जाती है । फलत: ग्रामीण बस्ती का रूपांतरण नगरीय बस्ती में होता है । धार्मिक, ऐतिहासिक, व्यापारिक, शेक्षिक, पर्यटन आदि कारणों से भी मूल बस्ती का नगरों में रूपांतरण हो जाता है ।
नगरीकरण के कारण:
(i) प्राथमिक व्यवसाय के लिए पूरक द्वितीयक और तृतीयक व्यवसायों का निर्माण
(ii) रोजगार के अवसरों में वृद्धि होना
(iii) आसपास के प्रदेशों से लोगों का वहाँ स्थानांतरण होना ओर जनसंख्या का बढ़ना ।
नगरीकरण के परिणाम:
(i) जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है ।
(ii) बढ़ती जनसंख्या को सुख-सुविधाओं की आपूर्ति करने के लिए संवा व्यवसायों का निर्माण होता है । उदा., मनोरंजन केंद्र, शैक्षिक संस्थाएँ आदि ।
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(iii) यातायात तथा संचार माध्यम की आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं । परिणामत: जीवनशैली गतिमान बनती है ।
नगरीकरण की समस्याएँ:
(i) सार्वजनिक सुख-सुविधाओं पर दबाव बढ़ता है । उदा., कानून और सुव्यवस्था, बिजली, स्वास्थ्य, जलापूर्ति आदि ।
(ii) वाहनों की संख्या बढ़ने से यातायात की समस्याएँ बढ़ती हैं और वायु तथा ध्वनि प्रदूषण की समस्याएँ बढ़ती हैं ।
(iii) स्थान की कमी होने के कारण आवासों की समस्याएँ निर्माण होकर भूमि का मूल्य बढ़ जाता है ।
(iv) नगरों में स्थलांतरित होनेवाली जनसंख्या का एक बड़ा समूह कम और अल्प आयवाले वर्ग का होता है । फलस्वरूप नगरों के विविध भागों में झुग्गियाँ बन जाती हैं ।
(v) बढ़ती जनसंख्या के लिए पर्याप्त व्यवसाय उपलब्ध न होने से बेरोजगारी की समस्या बढ़ती है । परिणामत: अपराधों में वृद्धि होती है । उपर्युक्त परिणाम तथा समस्याएँ भारत के विविध महानगरों में विशेष रूप से पाई जाती हैं ।