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Read this article to learn about how sea waves contributes as a factor of soil erosion.
समुद्री किनारों पर उनकी लहरों से अपक्षरण का कार्य होता है । जहाँ समुद्री लहरों का आघात तीव्र होता है वहाँ अपक्षरण का कार्य बड़ी मात्रा में और निरंतर होता रहता है । जिस स्थान पर समुद्री लहरों का वेग कम होता है; वहाँ निक्षेपण का कार्य कम होता है । फलस्वरूप कुछ स्थानों पर समुद्री तटक्षेत्र का खनन होता है । तो कुछ अन्य जगहों के तटीय क्षेत्रों में निक्षेपण होता है ।
समुद्री लहरों के अपक्षरण कार्य से निर्मित भूरूप:
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समुद्र के भीतर तक घुस आए भूभाग को अंतरीप कहते हैं । अंतरीप के तलवाले भाग का समुद्री लहरों के फलस्वरूप बड़ी मात्रा में अपक्षरण होता है । ऐसे भाग में पथरीले तट निर्मित होते हैं । तटीय क्षेत्रों के अपक्षरण होने से निर्मित भूरूपों को आकृति १०.२ में देखो ।
समुद्री लहरों के निरंतर आघात से अंतरीप की तलहटी के समीप के भाग की छिजन होती है और खड़ा भाग शेष रह जाता है । इसे समुद्री कगार कहते हैं । उदा., हरिहरेश्वर, भगवती बंदरगाह ।
(ii) समुद्री कंदरा (गुहा):
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अंतरीप के नीचेवाले भाग में लहरें आघात करती हैं । उस समय चट्टानों की दरारों में वायु बंद हो जाती है और चट्टानों पर दबाव पड़ता है । बंद हवा विस्फोट की तरह बाहर निकल अति है । इस समय बड़ी मात्रा में ऊर्जा का निर्माण होता है । यह प्रक्रिया निरंतर घटित होने से चट्टानें नरम हो जाती हैं और उनका क्षरण होता है तथा कुछ स्थानों पर आले जैसा भाग निर्मित होता है । धीरे-धीरे यह भाग बड़ा और गहरा होता जाता है । इसे समुद्री कंदरा कहते हैं ।
(iii) तरंगघर्षित मंच:
पथरीले भागों में समुद्री लहरों के निरंतर होनेवाले आघात से समुद्री कगारों का क्षरण होता है और वे भाग घट जाते हैं । उनकी तलहटी के समीप समतल मंच की निर्मिति होती है । ऐसे मंचों को तरंगघर्षित मंच कहते हैं ।
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इसके अतिरिक्त समुद्री कमान और समुद्री स्तंभ जैसे अपक्षरण के भूरूप भी समुद्री लहरों के कारण निर्मित होते हैं । महाराष्ट्र में स्थित तटीय क्षेत्र का अधिकांश भाग पथरीला भाग है । अतः इस भाग में ये भूरूप देखे जा सकते हैं । जैसे – श्रविर्धन, रत्नागिरि, सिंधुदुर्ग आदि ।
समुद्री लहरों के निक्षेपण कार्य से निर्मित भूरूप:
दो समीपवाले अंतरीपों के बीच समुद्री तट थोड़ा-सा अंतर्वक्र होता है । अंतरीपों के भाग में क्षरण होने से अलग हुई चट्टान के कणों का निक्षेपण इस अंतर्वक्र तटीय क्षेत्र में होता रहता है । इसके अतिरिक्त भूमि के ऊपर से नदियों और अन्य कारकों द्वारा बहाकर लाए गए अवशिष्टों तथा समुद्र के भीतरी भाग से लहरों द्वारा लाए गए अवशिष्टों का भी इस क्षेत्र में निक्षेपण होता है ।
ऐसे निक्षेपण से नीचे दिए गए भूरूप निर्मित होते हैं :
(i) पुलिन:
दो निकटवाले अंतरीपों के बीच के क्षेत्र में भूमि के ऊपर से बड़ी मात्रा में अवशिष्ट आते हैं । इस क्षेत्र में जल की गहराई कम होती है । फलस्वरूप समुद्री लहरों की गति भी अपेक्षाकृत कम रहती है । अतः इस क्षेत्र में समुद्र और भूमि से अनेवाले अवशिष्टों का निक्षेपण होता है । यहाँ अधिकतर बारीक रेत भी आकर तट के समीप संचित होती है । इस भूरूप को पुलिन कहते हैं । महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र में दिवेआगर और गुहागर में पुलिनों की निर्मिति हुई है । भारत की सबसे लंबी पुलिन चेन्नई में मरिना नामक है ।
(ii) बालुकाभित्ति:
अंतरीप के समीप रेत का निक्षेपण एक अंतरीप से दूसरे अंतरीप की ओर तट से समांतर दिशा में होता जाता है । कालांतर में उसकी लंबाई बढ़ती जाती है और पुलिन से कुछ दूरी पर जल में प्रविष्ट होनेवाली दीवार के समान भूरूप निर्मित होते हैं । उन्हें बालुकाभित्ति कहते हैं । इसके अलावा पुलिन क्षेत्र में रेत उथले समुद्री क्षेत्र में संचित होती है । परिणामस्वरूप तट से समांतर द्वीपों की निर्मिति होती है । इनके द्वारा भी बालुकाभित्ति निर्माण होती है । आकृति १०.३ देखो । महाराष्ट्र के तटीयक्षेत्र के रेवदेडा ओर श्रीवर्धन स्थानों पर ये भूरूप दिखाई देते हैं ।
(iii) खार कच्छ (लेगुन):
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बालुकाभित्ति और समुद्री तट के बीचवाले और मुख्य समुद्री जल से अलग हुए खारे जल की झील को खार कच्छ कहते हैं । आकृति १०.३ देखो । खार कच्छ झील का जल खुले समुद्र से अलग हुआ होता है । परिणामस्वरूप इसमें बड़ी लहरें उत्पन्न नहीं होती हैं । केरल राज्य के तटीय क्षेत्र में बेंबनाड जैसी विशाल खार कच्छ झीलें निर्मित हुई है । उड़ीसा राज्य की चिल्का झील भी खार कच्छ का उत्तम उदाहरण है ।
अन्य सभी कारकों की तुलना में समुद्री लहरों का कार्य निरंतर चलता रहता है । फलस्वरूप इन कारकों का प्रभाव बहुत कम समय में ही दिखाई देता है । कुछ भागों में अपक्षरण और उसी के निकटवर्ती भाग में निरंतर निक्षेपण की क्रिया घटित हाती रहती है ।
निक्षेपण द्वारा निर्मित पुलिन और बालुकाभित्ति जैसे भूरूपों का भी अपक्षरण होता है । समुद्री सतह में वृद्धि होने से कई स्थानों पर तटीय भाग जल के नीचे समा जाने का खतरा निरंतर बना रहता है । समुद्री तट क्षेत्र में जनसंख्या घनी होने से तटीय क्षेत्र के प्रबंधन की ओर अधिक ध्यान देना आवश्यक है ।