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Read this article to learn about how river contributes as a factor of soil erosion in Hindi language.
नदी:
वर्षा का जल भूमि पर गिरने के बाद उसमें से कुछ जल भूमि में रिसता है तो कुछ जल का वाष्प बनता है । शेष जल भूमि की ढलान के अनुसार अर्थात अधिक ऊँचाईवाले क्षेत्र से कम ऊँचाईवाले क्षेत्र की ओर बहता जाता है । बहनेवाले जल की मात्रा के अनुसार इन प्रवाहों को हम झरना, नहर, नाला, नदी आदि कहते हैं ।
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नदी का कार्य:
भूपृष्ठ की ढलान, नदी की गति, चट्टानों के प्रकार, नदी में प्रवाहित पानी की मात्रा, उसमें पाई जाने वाली काँप की मात्रा आदि पर नदी का कार्य निर्भर होता है ।
अपक्षरण:
भूमि की ढलान की दिशा में बहते हुए नदी के तेज बहने से और साथ लाई हुई मिट्टी से नदी के तल और तट का कटाव होता जाता है । इसी भाँति बहाव के रेत, कंकड़-पत्थर आदि पदार्थ एक- दूसरे से टकराते हैं और टूट जाते हैं । इन सभी अपक्षरण की क्रियाओं से नीचे दिए गए भूरूप तैयार होते हैं ।
(i) गभीर खड्ड:
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पर्वतीय प्रदेश में नदी का बहाव तेज होता है । यहाँ तट की अपेक्षा तल का खनन अधिक होता है । इससे तीव्र ढलान के तट और संकरे तल के गभीर खड्ड निर्मित होते हैं । आकृति ९.१ देखो । उदा., ठाणे जिले की वैतरणा नदी का गभीर खड्ड, रायगढ़ जिले की उल्हास नदी का गभीर खड्ड ।
(ii) V आकार की घाटी:
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नदी के प्रवाह में कुछ समय बाद जल के साथ काँप (जलोढ़) की मात्रा बढ़ती जाती है । उसे वहन करने में नदी को अधिक बल लगाना पड़ता है । इससे तल का खनन कार्य कम होता है परंतु तट और घाटी की ढलान का कटाव अधिक होता है । इस प्रकार कटाव होने से ढलान का हिस्सा पीछे हटता जाता है । इससे घाटी का खड़ा तट चौड़ा होकर घाटी को V आकार प्राप्त होता है । आकृति ९.२ देखो । पश्चिमी घाट में ऐसी कई घाटियाँ पाई जाती हैं ।
(iii) जलजगर्तिका:
कभी-कभी नदी के पाट की चट्टानों में जोड़ होते हैं । इन जोड़ों में कंकड़-पत्थर अटकते हैं । जल के प्रवाह से ये कंकड़-पत्थर एक ही जगह गोलाकार दिशा में घूमते हैं और वहाँ गड्ढा तैयार होता है । इसे जलजगर्तिका अथवा कुंभगर्त कहते हैं । आकृति ९.३ देखो । अहमदनगर जिले में निघोज नामक स्थान पर कुकड़ी नदी के पाट में और पुणे जिले में भेगड़ेवाड़ी में इंद्रायणी नदी के पाट में ऐसी जलजगर्तिकाएँ बड़ी संख्या में पाई जाती हैं ।
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(iv) जलप्रपात:
पहाड़ से बहनेवाला जल जब पहाड़ के किनारे से नीचे गिरता है तब जलप्रपात की निर्मिति होती है । कुछ प्रदेशों में कठोर और मृदु चट्टानों की परतें पास-पास पाई जाती हैं । वहाँ कठोर चट्टानों की अपेक्षा मृदु चट्टानों की छीजन शीघ्र होती है और नदी पाट की ऊँचाई में अंतर आता है और जलप्रपात का निर्माण होता है । जलप्रपात के तल में कुंडल निर्मित होते हैं । आकृति ९.४ देखो । नर्मदा नदी का धुंआधार और शरावती नदी का गिरसप्पा जलप्रपात हमारे देश के प्रसिद्ध जलप्रपात हैं ।
वहन और निक्षेपण:
अपरक्षण प्रकिया से बनी हुई काँप की मिट्टी नदी प्रवाह के साथ बहती जाती है । भूमि की ढलान मंद होने पर नदी प्रवाह की गति धीमी हो जाती है । इससे नदी की मिट्टी बहाकर ले जाने की क्षमता कम हो जाती है । ऐसे स्थान पर काँप की मिट्टी के संचित होने की इस क्रिया को निक्षेपण कहते हैं । नदी के वहन और निक्षेपण कार्य के परिणामस्वरूप निम्न प्रमुख भूरूपों की निर्मिति होती है ।
(i) सर्पाकर मोड़ और नालाकार झीलें:
जिस समय नदी में काँप की मिट्टी की मात्रा बहुत अधिक बढ़ती है उस समय पूरी मिट्टी बह जाना संभव नहीं होता है । किसी छोटे-से टीले अथवा बाधा के कारण नदी के बहाव की दिशा बदल जाती है । इस स्थिति में नदी जिस दिशा में मुड़ती है, उस दिशा के तट का (बाहरी तट का) खनन होता है तथा उस तट के सामनेवाले तट पर (भीतरी तट पर) निक्षेपण होता है ।
इस प्रकार जिन स्थानों पर नदी के बहाव की दिशा बदल जाती है वहाँ-वहाँ बाहरी तट पर खनन और भीतरी तट पर निक्षेपण होता जाता है । इस प्रकार निरंतर होनेवाली इस प्रक्रिया के कारण नदी के प्रवाह को सर्पाकर मोड़ प्राप्त होते हैं । ये सर्पाकर मोड़ अति तीव्र होने पर इस प्रवाह के दो मोड़ बहुत समीप आते हैं ।
बाढ़ के समय नदी का जल जोरों से बहता है और यह जल इन मोड़ों में से न बहते हुए सीधी दिशा में बहता है । परिणामस्वरूप खंडित सर्पाकर भागों में नालाकृति झीलों का निर्माण होता है । आकृति ९.५ देखो । उत्तर भारत के मैदानी प्रदेश में गंगा और उसकी सहायक नदियों से असंख्य नालाकृति झीलें निर्मित हुई हैं । असम राज्य में ब्रह्मपुत्र नदी के कारण ऐसी अनेक झीलें निर्मित हुई हैं ।
(ii) बाढ़ के तट और बाढ़ के मैदान:
निक्षेपण प्रक्रिया से नदी के तट पर बाढ़ के मैदान और बाढ़ के तट निर्मित होते हैं । बाढ़ के समय काँप की मिट्टी तट से बहुत दूर तक बहाकर लाई जाती है तथा काँप की खुरदरी मिट्टी तट पर ही निक्षेपित हो जाती है । इससे नदी के दोनों तटों पर काँप की मिट्टी संचित होने से बाढ़ के मैदान बन जाते हैं ।
तट के पास संचित काँप की खुरदरी मिट्टी से उसकी ऊँचाई बढ़ती जाती है । अत: नदी के तट पर पाट के समांतर तट निर्मित होते हैं । उन्हें बाढ़ तट कहते हैं । गंगा नदी के बाढ़ क्षेत्र में ऐसे बाढ़ के तट और बाढ़ के मैदान निर्मित हुए हैं ।
(iii) डेल्टा प्रदेश:
नदी समुद्र से मिलते समय उसका प्रवाह सागरीय लहरों द्वारा अवरुद्ध होता है और नदी द्वारा बहाकर लाए गए पदार्थों का नदी के मुहाने के पास निक्षेपण होता है । इससे नदी के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होता है और प्रवाह की अनेक वितरिकाएँ निर्मित होती हैं तथा नदी अनेक धाराओं द्वारा सागर में जा मिलती है । इन धाराओं को ‘वितरिकाएँ’ कहते हैं । ऐसे निक्षेपण से वहाँ काँप की मिट्टी के त्रिकोणाकार प्रदेश निर्माण हो जाते हैं । इन्हें डेल्टा प्रदेश कहते हैं । गंगा, गोदावरी, कावेरी नदियों के मुहानों के पास ऐसे डेल्टा प्रदेश निर्मित हुए हैं ।