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Read this article to learn about how glacier contributes as a factor of soil erosion in Hindi language.
हिमानी:
उच्च अक्षवृत्तीय और अति ऊँचाई के प्रदेश में हिमपात के रूप में वर्षा होती है । हिम के संचित होते रहने से कालांतर में उसका रूपान्तर बर्फ में होता है । जमी हुई बर्फ की परतों के दबाव के कारण यह संचित बर्फ ढलान की दिशा में धीरे-धीरे सरकने लगती है । इस तरह ढलान की दिशा में आगे बढ़नेवाली बर्फ के प्रवाह को हिमानी कहते हैं । आकृति ९.८ देखो । हिमानी ठोस रूप में होने के कारण उसकी गति बहुत धीमी होती है ।
हिमानी में संचित बर्फ की मोटाई, प्रदेश का तापमान, भूमि की ढलान जैसी बातों पर हिमानी की गति निर्भर होती है । हिमानी भी अन्य नदियों की तरह अपक्षरण, वहन और निक्षेपण का कार्य करती है ।
अपक्षरण:
यद्यपि हिमानी की गति धीमी होती है फिर भी ठोस जल का द्रव्यमान बहुत अधिक होने से हिमानी द्वारा आरक्षण का कार्य बड़ी मात्रा में होता है । आकृति ९.९ के आधार पर हिमानी के अपक्षरण कार्य के फलस्वरूप निर्मित होनेवाले भूरूप समझो ।
(i) हिमगह्वर:
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पर्वत की तलहटी के निचले क्षेत्र में किसी गड्ढे में संचित बर्फ बहने लगती है । इस बर्फ की अपक्षरण प्रक्रिया के फलस्वरूप पहाड़ी ढलान की, गड्ढों के तल की और दोनों कगारों की छिजन होती है । कालांतर में इसे आरामकुर्सी की तरह आकार प्राप्त होता है । उसे हिमगह्वर कहते हैं ।
(ii) शुककूट और गिरिशृंग:
निकट के दो हिमगह्वरों के बीच कगारों की छिजन बड़ी मात्रा में होती है और ये कगारें धारदार बनती हैं । आरी के समान दिखाई देनेवाली इन कगारों को शुककूट कहते हैं । पर्वत ढलान के तीन या चारों ओर हिमगह्वर निर्मित होने पर उस क्षेत्र की ढलान अति तीव्र बनती है और उनके शिखर के बीच का हिस्सा किसी सींग की तरह दिखाई देता है । उसे गिरिशृंग कहते हैं ।
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(iii) ‘यू‘ आकार की घाटी:
हिमानी के अपक्षरण से घाटी का तलवाला भाग समतल बनता है और उसके कगार तीव्र ढलान के बनते हैं । तलवाला भाग अधिकाधिक गहरा होता जाता है । फलस्वरूप इस घाटी को अंग्रेजी U अक्षर का आकार प्राप्त होता है । अत: इस घाटी को U आकार की घाटी कहते हैं ।
(iv) लंबित (लटकती) घाटी:
मुख्य हिमानी की तुलना में उसमें आ मिलनेवाली सहायक हिमनियों में बर्फ की मात्रा कम होती है । इस कारण मुख्य हिमानी की अपेक्षा सहायक हिमनियों का अपक्षरण कम मात्रा में होता है । मुख्य हिमानी की घाटी की तुलना में इन सहायक हिमनियों की घाटियों का खनन कम होता है । परिणामस्वरूप उनके तलवाले क्षेत्र मुख्य घाटी के तल की अपेक्षा अधिक ऊँचाई पर रहते हैं । बर्फ के पिघलने पर इन सहायक हिमनियों की घाटियाँ लंबित (लटकती) दिखाई देती हैं । अत: उन्हें लंबित घाटियाँ कहते हैं ।
वहन और निक्षेपण:
हिमानी द्वारा बहाकर लाई काँप की मिट्टी को हिमोढ़ कहते हैं । हिमोढ़ की मात्रा तल और तटों की ओर अधिक होती है । कालांतर में बर्फ का रूपांतरण जल में हो जाने से बड़े आकारवाले और भारी हिमोढ़ उसी स्थान पर संचित होते जाते हैं तथा छोटे अकारवाले हिमोढ़ दूर तक बहते जाते हैं और वहीं पर संचित हो जाते हैं । हिमानी की निक्षेपण कार्य द्वारा नीचे दिए गए भूरूप निर्मित होते हैं । आकृति ९.१० देखो ।
(i) हिमोढ़:
हिमोढ़ के उनके स्थान के अनुसार नीचे दिए गए प्रकार होते हैं :
(a) तल में निक्षेपित किए गए हिमोढ़ को भू हिमोढ़ कहते हैं ।
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(b) हिमानी के तट पर निक्षेपित हिमोढ़ को पार्श्व हिमोढ़ कहते हैं ।
(c) जब दो हिमनियाँ इकट्ठी आती हैं तो वहाँ उनके भीतर की दोनों कगारों के भाग में पार्श्व हिमोढ़ से मुख्य हिमानी के मध्य में हिमोढ़ निर्मित होता है ।
(d) हिमानी का अग्रभाग में अर्थात जहाँ हिमप्रवाह का जलप्रवाह में रूपांतर होता है । वहाँ से आगेवाला यह जलप्रवाह हिमानी द्वारा लाया गया संपूर्ण हिमोढ़ यहाँ से आगे बहाकर नहीं ले जा सकता । इसलिए इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में हिमोढ़ संचित होता है । यह हिमोढ़ हिमानी के अंतिम हिस्से में होने के कारण उसे अंत्य हिमोढ़ कहते हैं ।
(ii) हिमोढ़गिरि:
भू हिमोढ़ का बहुत बड़े ढेर के रूप में निक्षेपण होने से निर्मित होनेवाले लंबगोलाकार टीलों को हिमोढ़गिरि कहते हैं । यह भूरूप उत्तरी आइलैंड और उत्तरी यूरोप के मैदान आदि भागों में दिखने को मिलते हैं ।
(iii) हिमोढ़कटक:
कभी-कभी हिमोढ़ के निक्षेपण कार्य द्वारा सर्पाकार मोड़वाले और तीव्र ढलान के अति लंब टीले बन जाते हैं । उन टीलों को हिमोढ़कटक कहते हैं ।