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Read this article to learn about the structure of the earth in Hindi language.
विगत कई शताब्दियों से मानव के मन में यह जिज्ञासा है कि पृथ्वी की सतह के नीचे निश्चित रूप से क्या है । इसके लिए ज्वालामुखी के उद्गार के समय निकले हुए पदार्थों और भूकंप का अध्ययन किया
गया ।
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यह अध्ययन तापमान, घनत्व और गुरुत्वाकर्षन बल से संबंधित था । इस अध्ययन में उल्लिखित अनुमानों के आधार पर इस संबंध में जानकारी प्राप्त होने में सहायता प्राप्त हुई है । इस प्रकरण में हम पृथ्वी के अंतरंग की जानकरी प्राप्त करेंगे ।
पृथ्वी के पृष्ठभाग से पृथ्वी के केंद्र तक पाए जानेवाले पदार्थों के गुणधर्मों में अंतर दिखाई देता है । इसके आधार पर पृथ्वी के अंतरंग की तीन परतें – भूपटल, प्रावार और भूगर्भ मानी गई हैं । इसके लिए आकृति ४.१ देखो । इसमें सबसे ऊपर की परत ठोस चट्टानों से बनी हुई है ।
इसे भूपटल कहते हैं । भूपटल के नीचे के भाग को प्रावार कहते हैं । भूपटल और उसके समीप के प्रावार के भाग को स्थलमंडल कहते हैं । स्थलमंडल की मोटाई लगभग १०० किमी होती है । प्रावार के निचले भाग को भूगर्भ कहते हैं । आकृति ४.१ देखो ।
भूपटल:
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भूपटल की मोटाई सभी स्थानों पर एक समान पाई नहीं जाती । महाद्वीप के नीचे यह मोटाई ४० किमी तथा सागर तल के नीचे यह मोटाई लगभग ८ किमी पाई जाती है । हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्र में यह मोटाई लगभग ७० किमी तक पाई जाती है । भूपटल की औसत मोटाई ३० किमी है । भूपटल के दो भाग हैं ।
(1) सियाल:
भूपटल की ऊपरी परत को सियाल कहते हैं । इस परत में पाई जानेवाली चट्टानों में प्रमुख रूप से सिलिका और एल्यूमिनियम की मात्रा अधिक पाई जाती है । ये तत्व भार में हल्के होते हैं । इसलिए वे भूपटल के ऊपरी भाग में पाए जाते हैं । अधिकांश महाद्वीपों का निर्माण सियाल से हुआ है । सियाल परत की मोटाई महाद्वीपीय भाग में अधिक होती है और सागर तल में कम होती है ।
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(2) सिमा:
सियाल की निचली परत को सिमा कहते हैं । सागर तल की अधिकांश चट्टानें सिलिका और मैग्नोशियम के योग से बनी हुई हैं । यह परत सिलिका की तुलना में भारी होती है ।
प्रावार:
भूपटल की निचली परत को प्रावार कहते हैं । इस परत की मोटाई लगभग २८७० किमी है । प्रावार की निर्मिति लौह और मेग्नोशियम के योग से हुई है । प्रावार में १०० से २०० किमी के भाग में ऊष्मा होती है । इस ऊष्मा से चट्टानें पिघलती हैं और यहाँ शिलारस की निर्मिति होती है । अत: यहाँ शिलारस के निर्माण होने से इस भाग में शिलारस के भंडार तैयार होते हैं । ज्वालामुखी की प्रक्रिया में भूपृष्ठ पर आनेवाले लावा का यहाँ निर्माण होता है ।
भूगर्भ:
प्रावार के नीचे भूगर्भ है और उसकी मोटाई ३४७१ किमी है । इस परत के दो भाग – बाह्य भूगर्भ और आंतरिक भूगर्भ हैं । बाह्य भूगर्भ द्रव अवस्था तथा आंतरिक भूगर्भ घन अवस्था में हाता है । इस परत में भारी और कठोर खनिज पाए जाते हैं । आंतरिक भूगर्भ में मुख्य रूप से निकेल और लौह जैसे खनिज अधिक मात्रा में पाए जाते हैं । अत: इस भाग का उल्लेख नीफे (NIFE) इस रूप में भी किया जाता है ।
पृथ्वी के पृष्ठभाग से केंद्र तक होनेवाले परिवर्तन:
पृथ्वी का केंद्र पृथ्वी के पृष्ठभाग से ६३७१ किमी की दूरी पर है । पृथ्वी के पृष्ठभाग से केंद्र की ओर जाते समय आंतरिक भाग में कुछ परिवर्तन होते जाते हैं ।
ये परिवर्तन निम्नानुसार हैं:
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(i) पृथ्वी के ठंडे होने की प्रक्रिया पृष्ठभाग से प्रारंभ हुई । आंतरिक भाग में तापमान अधिक होता है । अत: भूगर्भ की ओर जाने समय तापमान में क्रमश: वृद्धि होती है । यह वृद्धि सामान्यत: प्रत्येक ३२ मीटर पर १ सेल्सियस होती है अर्थात पृथ्वी का पृष्ठभाग यद्यपि ठंडा है परंतु भूगर्भ अत्यंत तप्त है । पृथ्वी के केंद्र के पास तापमान लगभग ५००० सेल्सियस तक पाया जाता है ।
(ii) पृथ्वी के केंद्र की ओर जाते समय पदार्थों का घनत्व बढ़ता जाता है ।
(iii) भूकंप की प्राथमिक तरंगें पृथ्वी के आंतरिक सभी भागों की परतों में से होकर जाती हैं परंतु भूगर्भ में से जाते समय इन तरंगों की दिशा में परिवर्तन होता है । द्वितीयक तरंगें द्रवरूपी माध्यम से होकर नहीं जा सकतीं । भूगर्भ का बाह्यभाग द्रवरूप होने से यह तरंगे भूगर्भ से होकर नहीं जा सकतीं । इसका अध्ययन होने के पश्चात पृथ्वी की आंतरिक परतें और उनकी सीमाएँ निर्धारित की गई हैं । आकृति ४.२ देखो ।
पृथ्वी की आंतरिक परतों में पाए जानेवाले तापमान, घनत्व, पदार्थों के द्रव और ठोस रूप में अंतर पाया जाता है । फलस्वरूप वहाँ असंख्य प्रकार की हलचलें अत्पन्न होती रहती हैं । इससे यह ध्यान में आता है कि पृथ्वी के अंतरंग का स्वरूप अस्थिर है ।