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Read this article in Hindi to learn about the geographical nature of Antarctica.
पृथ्वी पर अन्टार्कटिका महाद्वीप की स्थिति जानने के लिए हमें ग्लोब के दक्षिण ध्रुव पर ध्यान केन्द्रित करना होगा । ग्लोब के निचले सिरे पर ठीक बीचों बीच दक्षिण घुव्र के समीप अन्टार्कटिका महाद्वीप है । इसी प्रकार विश्व मानचित्र में सबसे नीचे की ओर अन्टार्कटिका महाद्वीप बना हुआ देख सकते हैं ।
अंटार्कटिका पूरी तरह से दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है । दक्षिणी घुव्र इसके लगभग केन्द्र में है । 661/2 % दक्षिणी अक्षांश से 90॰ दक्षिणी घुव्र तक इसका अक्षांशीय विस्तार वृत्त के आकार में है । क्षेत्रफल की दृष्टि से यह विश्व का पाँचवा बड़ा महाद्वीप है । इसका क्षेत्रफल 1 करोड़ 30 लाख कि॰मी॰ है और दक्षिणी महासागर से घिरा है ।
इस महाद्वीप की खोज 1820 में हुई थी; परन्तु वास्तविक खोज का कार्य बीसवीं शताब्दी में शुरू हुआ । दक्षिणी घुव्र की खोज के प्रति रूचि रखने वाले कप्तान कुक ने दुनिया को सूचित किया कि दक्षिणी सागरों में सील और ह्वेल मछलियाँ बहुतायत से मिलती हैं । इसलिए कई देशों के मछुआरे इस क्षेत्र की ओर आकर्षित हुए ।
इसके बाद, एक के बाद एक यात्री दल इस बर्फीले प्रदेश की खोज में गए और उनमें से कई दल बर्फ की चादर के नीचे सदा के लिए समा गए । सफल प्रयासों में ब्रिटिश नौसेना के कप्तान राबर्ट फैल्कन स्कॉट का प्रयास रहा ।
सन् 1910 में स्कॉट ने अंटार्कटिका की ओर दक्षिण घुव्र की खोज में प्रस्थान किया और सन् 1912 में वे अपने दल के साथ दक्षिणी घुव्र पहुंच गए, लेकिन वहाँ उन्हें नार्वे का झंडा लगा मिला जिसे 20 अक्टूबर सन् 1911 को दक्षिण घुव्र पर पहुंचने वाले पहले यात्री रोआल्द आमन्सेन नामक नार्वेजियन ने लगाया था ।
स्कॉट को पहले न पहुंच पाने के कारण निराशा हुई, लौटते वक्त वे व उनके साथी शीत आघात का शिकार हो गए । लेकिन पिछले दशकों में विभिन्न देशों के सैकड़ों अन्वेषक तथा वैज्ञानिक अंटार्कटिका हो आए हैं । भारतीय वैज्ञानिकों का अभियान दल भी अंटार्कटिका हो आया है । इस दल ने, रास्ते के एक समुद्री पर्वत की खोज भी की है ।
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भौतिक संरचना एवं जलवायु:
विश्व में अन्टार्कटिका ही एकमात्र ऐसा महाद्वीप है, जो लगभग पूरी तरह से बर्फ से वर्षभर ढँका रहता है । पूरे महाद्वीप पर श्वेत रंग के बर्फ की चादर बिछी होने के कारण इस महाद्वीप को ‘श्वेत महाद्वीप’ भी कहते हैं ।
अंटार्कटिका का लगभग 98 प्रतिशत भाग हमेशा बर्फ से ढका रहता है । यहाँ बर्फ की औसत मोटाई अनुमानत: 2 से 5 किलोमीटर तक है । इस कारण यह सबसे ठंडा और वीरान महाद्वीप है । अंटार्कटिका का अधिकतम भाग उबड-खाबड तथा पर्वतीय है ।
क्वीन मॉड पर्वत श्रेणी इस महाद्वीप को लगभग दो बराबर भागों में बाँटती है । पश्चिमी भाग वेडेला एवं पूर्वी भाग रॉस आइलैण्ड कहलाता है । विनसन मासिफ की एल्सवर्थ पर्वत (4897 मीटर) यहाँ की सबसे ऊची चोटी है ।
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यहाँ कई ज्वालामुखी पर्वत है लेकिन एबुर्स शिखर यहाँ का अकेला सक्रिय ज्वालमुखी है । अंटार्कटिका में 70 से भी अधिक झीलें हैं जो बर्फ की चादर के नीचे फैली हैं । वसको झील यहाँ की सबसे बड़ी (Subglacial) झील है । महाद्वीप पर बर्फ, छत्रकों तथा बर्फ की चादरों के रूप में संचित है ।
महाद्वीप पर बर्फ की मोटी परत सदैव जमी रहती है इसलिए यहाँ अत्यन्त ठंड पड़ती है और तेज हवा चलती रहती है । यहाँ की जलवायु बहुत ही कठोर है । यह संसार का सबसे ठंडा क्षेत्र है । यहाँ शीत ऋतु में न्यूनतम तापमान -85० से.ग्रे. से -90॰ से.ग्रे. तक पहुंच जाता है एवं अधिकतम तापमान -60॰ से॰ग्रे॰ तक ग्रीष्म ऋतु में होता है ।
पूर्वी अंटार्कटिका अधिक ऊंचा होने के कारण पश्चिमी भाग से भी अधिक ठंडा रहता है । यहाँ बहुत ही कम वर्षा होती है । इस कारण इस क्षेत्र को विश्व का ठंडा मरूस्थल भी कहते है । अंटार्कटिका की ग्रीष्म ऋतु नवम्बर से फरवरी तक होती है । इस अवधि में सूर्य अस्त नहीं होता ।
इस महाद्वीप में शीत ऋतु मई से अगस्त तक होती है इस अवधि में अंटार्कटिका में सूर्योदय नहीं होता है । दक्षिणी घुव्रीय क्षेत्र में अरोरा आस्ट्रेलिस (aurora Australis) या दक्षिणी रोशनी अक्सर दिखाई देती है । आरोरा आस्ट्रेलिस रंगीन और सफेद रंग की दमकती रोशनी है जो सौर और कास्मिक विकिरण में दिखाई देती है । इससे यहाँ शीत ऋतु या रात में हल्का प्रकाश दिखाई देता है ।
वनस्पति एवं जीवजन्तु:
अंटार्कटिका की अत्यन्त ठंडी जलवायु व न्यूनतम वर्षा, बंजर भूभाग, सूर्य प्रकाश की कमी पेड़ पौधों के विकास में बाधक है इसलिए यहाँ वनस्पति लगभग नहीं के बराबर है और जिन क्षेत्रों में उगती भी है वह गर्मी के कुछ सप्ताहों में ही पनप पाती है ।
लिचेन शैवाल एवं कवक फफूँद यहाँ की वनस्पति है । अन्टाकटिका में लिचेन (Lichens) की 200 से भी अधिक प्रजातियों पायी जाती है । भूभाग के जीव अत्यन्त सूक्ष्म अकशेरूकी (Invertebrate) है । लेकिन समुद्री जीव जन्तुओं में पेंग्विन, नीली व्हेल, फर सील, एल्वेस्ट्रास एवं क्रिल मछली प्रमुख हैं ।
अंटार्कटिका क्षेत्र में फर सील, व्हेल मछली, क्रिल मछली, व टूथफिश के शिकार पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अर्न्तगत प्रतिबंध लगाया गया है । पिछले कुछ वर्षों में अवैध शिकार व मछली पकड़ने के कारण इन जीव-जन्तुओं की प्रजातियों को विलुप्त होने का खतरा हो गया था ।
क्रिल मछली अंटार्कटिका समुद्री जीव जगत के विकास में एक महत्वपूर्ण साधन है । क्रिल झुण्डों में रहती है जो व्हेल, सील, पेंग्विन व पक्षियों का आहार है । क्रिल से कई उत्पाद बनते हैं जैसे: माँस, किल पेस्ट व किल प्रोटीन ।
संसाधन:
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ऐसा माना जा रहा है कि अंटार्कटिका में बर्फ की चादर के नीचे मूल्यवान खनिज भंडार छिपे हैं, इनकी खोज लगातार जारी है । अब तक कोयले, लौह अयस्क तथा ताँबे के थोड़े भंडारों का पता चला है । लेकिन अनेक कठिनाईयों के कारण व्यापारिक स्तर पर इन खनिजों का उपयोग अभी नहीं हो सका है ।
अंटार्कटिका महाद्वीप आकार में बड़ा है लेकिन अभी भी भौतिक दृष्टि से यह मानव जाति को लाभ नहीं दे सका है । यह वैज्ञानिकों को पृथ्वी के बारे में अधिक जानकारी देने के अनोखे अवसर प्रदान करता है इसीलिए इसे विज्ञान के लिए समर्पित महाद्वीप भी कहते है ।
वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के निरीक्षण केन्द्रों में रहने के लिए अच्छा वातावरण बना लिया है । यहाँ विशेष प्रकार के स्थायी आवास गृह बनाए गए है । ये आवास गृह यहाँ की कठोर जलवायु तथा भयंकर झंझावातों का मुकाबला करके टिके रह सकते हैं ।
विशेष प्रकार के वस्त्र, डिब्बे बंद खाद्य पदार्थ, स्टोव और विशेष प्रकार की मोटर गाडियाँ वायुयान द्वारा इस महाद्वीप के निरीक्षण केन्द्रों में लाई जाती है । जैविकीय अध्ययन, बर्फ की चट्टानों के नीचे जीवन के अस्तित्व तथा खनिज सम्पदा की उपस्थिति की सम्भावनाओं को खोजने का प्रयास विशेष अनुसंधानों द्वारा शुरू किया है ।
अंटार्कटिका अत्यन्त ठंडा व वीरान महाद्वीप है । यहाँ तेज तूफानी हवाएं, चलती हैं, चारों तरफ बर्फ ही बर्फ है । इस कठोर जलवायु में जीवन बहुत ही कठिन है इसलिए मनुष्य यहाँ स्थायी रूप से नहीं रह सकते । अंटार्कटिका ही एक ऐसा महाद्वीप है, जहाँ मनुष्यों का स्थायी निवास नहीं है । कई देशों ने अपने शोध केन्द्र बनाए हैं, जिसमें शोध के दौरान समय-समय पर लोग अस्थायी रूप से रहते हैं ।