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Read this essay to learn about the continent of Australia and its geographical distribution in Hindi language.
आस्ट्रेलिया कंगारुओं के महाद्वीप के रूप में जाना जाता है । यह संसार का सबसे बड़ा द्वीप है ।
स्थिति, विस्तार और सीमा:
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इस महाद्वीप का अक्षांशीय विस्तार लगभग १००, २०० दक्षिण से ४३०, ३९० दक्षिण तक है । देशांतरीय विस्तार ११३० पूर्व से १५३० ३०० पूर्व के बीच है । यह महाद्विप पूर्णत: दक्षिण भू-गोलार्ध में है । इस महाद्वीप के लगभग मध्य में मकर वृत्त जाता है । महाद्वीप के दक्षिण-पूर्व में तस्मानिया द्वीप है, जो इसी महाद्वीप का भाग है ।
प्राकृतिक संरचना:
महाद्वीप का पश्चिमी भाग पठारी है । यह प्रदेश विस्तृत है तथा इसमें अनेक पठार, मरुस्थल और पर्वत श्रेणियों का समावेश होता है । इनमें से ग्रेट सेंडी, गिब्सन तथा ग्रेट विक्टोरिया मरुस्थलों से इस प्रदेश का अधिकांश भाग व्याप्त है । यहाँ अनेक शुष्क (सूखी) झीलें भी हैं ।
मरुस्थलीय प्रदेश के पूर्व में अनेक नदियों के कछारों से बना निचला मैदानी प्रदेश है । इस मध्यवर्ती मैदानी प्रदेश के दक्षिणी भाग में अनेक झीलें हैं । उनमें आवर झील की गहराई समुद्री सतह से -२० मी है । मैदानी प्रदेश के पूर्व में दक्षिण-उत्तर में फैली हुई ग्रेट डिवाइडिंग रेंज नामक पर्वत श्रेणी है ।
इस प्रदेश में होनेवाली वर्षा का जल इस पर्वत श्रेणी के कारण पूर्व तथा पश्चिमी दिशाओं में विभाजित हो जाता है । अतः इसे ग्रेट डिवाइडिंग रेंज कहते हैं । इसमें आस्ट्रेलियन आल्प्स तथा न्यू इंग्लैंड पाहाड़ी का भी समावेश होता है । आस्ट्रेलिया का सबसे ऊँचा शिखर माउंट कोशिस्को (२२२८ मी) है ।
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इस महाद्वीप के चारों ओर सागरीय तट है । तटवर्ती प्रदेश सामान्यत: मैदानी है तथा महाद्वीप का मध्यवर्ती भाग पठारी एवं मरुस्थलीय होने के कारण इस महाद्वीप की आबादी बड़े पैमाने पर तटवर्ती मैदान प्रदेश में रहती है । इस महाद्वीप के पूर्व-उत्तर तटवर्ती प्रददेश के समानांतर प्रवाल चट्टानों की श्रेणी ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ है । इसकी लंबाई लगभग २००० किमी है ।
जलवायु:
इस महाद्वीप की जलवायु सामान्य: उष्ण तथा शुष्क है । इस महाद्वीप के मध्य में मकर वृत्त है । अत: मकर वृत्त के उत्तर की ओर की जलवायु उष्ण है तो दक्षिण में जलवायु समशीतोष्ण पाई जाती है । ग्रीष्मकाल और शीतकाल के तापमान में बहुत अंतर पाया जाता है ।
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यहाँ के ग्रीष्मकाल में अर्थात जनवरी में उत्तरी भाग में औसतन तापमान ३५० सेल्सियस तथा दक्षिण भाग में २०० सेल्सियस होता है । शीतकाल अर्थात जुलाई के महीने में उत्तरी भाग का तापमान २५० सेल्सियस तक नीचे आ जाता है तो दक्षिण भाग में ५० सेल्सियस तक नीचे उतरता है ।
इसके आधार पर दोनों भागों के संपूर्ण वर्ष के तापमान में पाए जानेवाले अंतर को (तापमान कक्षा) समझे । शीतकाल में अर्थात आस्ट्रेलियन आल्प्स पर्वत के तथा तस्मानिया द्वीप के आंतरिक भागों में कभी-कभी तापमान हिमांक बिन्दु के नीचे चला जाता है । इस काल में यहाँ कुहरा छा जाता है तथा हिमपात होता है ।
प्रशांत महासागर के ऊपर से आनेवाली हवाओं के कारण महाद्वीप के पूर्व तटवर्ती पर्वतीय प्रदेशों में वर्षा होती है । वर्षा की मात्र लगभग १००० मि.मी होती है । इन पर्वतों को लाँघकर पश्चिम की ओर जाते समय हवाएँ शुष्क तथा उष्ण होकर बहती हैं ।
अत: महाद्वीप का मध्यभाग कर्म वर्षावाला है । वैसे भी महाद्वीप का मध्यभाग उष्ण कटिबंधीय अधिक वायुदाबवाले पत्ते में आता है । अत: यहाँ से हवाएँ बाहरी दिशा की ओर बहती हैं । फलस्वरूप यह प्रदेश शुष्क रहता है । यहाँ वर्षा २५० मि.मी से भी कम होती है । इससे यह प्रदेश मरुस्थलीय बन गया है ।
उत्तरी भाग में मनसूनी हवाओं से वर्षा प्राप्त होती है ।
अत: आस्ट्रेलिया में निम्नलिखित तीन प्रकार की जलवायु पाई जाती है:
(i) उत्तर में मानसूनी जलवायु,
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(ii) मध्यभा, में शुष्क जलवायु,
(iii) दक्षिण-पूर्व तथा दक्षिण-पश्चिम में भूमध्य सागरीय जलवायु ।
प्राकृतिक संसाधन:
जल संसाधन:
इस महाद्वीप के दक्षिण-पूर्व भाग में मरे मुख्य नदी है तथा डार्लिग उसकी सहायक नदी है । इन नदियों के कछार उपजाऊ है । नदियों के जल का उपयोग पीने के लिए, कृषि के लिए, जल विद्युत निर्मिति के लिए किया जाता है ।
इसके अलावा फ्लिंडर्स, थामसन, नमोई, कूपर क्रीक नदियाँ भी हैं । मध्यवर्ती निचले मैदानी प्रदेश में विशिष्ट प्रकार के आट्रीजियन कुएँ हैं । उनके जल का उपयोग मुख्यत: पशु पालन के लिए किया जाता है । महाद्वीप पश्चिम भाग के मरुस्थलीय प्रदेश में जल की कमी महत्वपूर्ण समस्या है ।
वन संसाधन:
उत्तर तथा पूर्व तटवर्ती प्रदेशों में अधिक वर्षा के कारण वर्षावन पाए जाते हैं । नीलगिरी तथा आस्ट्रेलियन बबूल वृक्षों की अनेक प्रजातियाँ बड़े पैमाने पर हैं । कम वर्षावाले मध्यभाग में घास, कंटीले झाड़-झंखाड़ तथा कैक्टस पाए जाते हैं । इस महाद्वीप के दक्षिण-पूर्व में तथा तस्मानिया में पाइन, स्प्रूस, रेडसीडार, मैपल, अखरोट आदि सूचीपर्णी वृक्ष हैं ।
प्राणी संसाधन:
आस्ट्रेलिया महाद्वीप करोडों वर्षों से अन्य मुख्य महाद्वीपों से अलग होकर बहुत दूर चला गया । अत: अन्य महाद्वीपों से बहुत ही अलग प्रकार के प्राणी यहाँ पाए जाते हैं । शावकों के लिए पेट के पास थैलेवाला कंगारू केवल इसी महाद्वीप में पाया जाता है ।
कंगारू घास तथा झाड़ियों को खाकर जीवित रहता है । प्लैटीपस और एकिडना प्राणी सस्तन हैं फिर भी वे अंडे देते हैं । प्लैटीपस के बतख जैसी चोंच होती है ।
आस्ट्रेलिया में कुत्ते जैसा डिंगो प्राणी पाया जाता है । वैसे ही कोआला, वालाही, कासकास जैसे प्राणी भी पाए जाते हैं । आकार में बहुत बड़ा एमू पक्षी आस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय पक्षी है ।
आस्ट्रेलिया महाद्वीप के पूर्व भाग में डाउंस के समशीतोष्ण घासवाले प्रदेश में पशु पालन का व्यवसाय बड़ी मात्रा में चलता है । इसमें मुख्य रूप से भेड़ पालन से उन का उत्पादन लिया जाता है ।
मृदा संसाधन:
मरे-डार्लिंग के कछारों में काँप की उपजाऊ मिट्टी है लेकिन महाद्वीप के शेष भाग में उपजाऊ मृदा के प्रदेश बहुत कम हैं । आस्ट्रेलिया का मध्यभाग मरुस्थलीय है । अतः वहाँ बालुकामिश्रित मृदा पाई जाती है । दक्षिणी भूमध्य सागरीय जलवायुवाले प्रदेश में कत्थई तथा उत्तर में मानसूनी जलवायुवाले प्रदेशों में लाल रंग की मृदा पाई जाती है ।
खनिज संसाधन:
आष्ट्रेलिया महाद्वीप खनिजों का भंडार है । आस्ट्रेलिया के दक्षिणी भाग में कुलगार्डी तथा कालगुर्ली में सोने की खदाने हैं । ब्रोकन हिल के खदान क्षेत्रों में लौह, कोयला, सोना, चाँदी का उत्पादन होता है । महाद्वीप के पश्चिमी भाग में फोर्टिस्क्यू तथा एशबर्टन नदियों के कछारों में लौह खनिज विपुल मात्रा में पाया जाता है । पूर्व तटवर्ती प्रदेश में कोयले की खदानें हैं । आस्ट्रेलिया में ओपल नाम के मूल्यवान नग मिलते हैं ।
दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर में बाक्साइट के भंडार हैं । पश्चिम में बैरो द्वीप के समीप, मध्यवर्ती निचले मैदानों में तथा दक्षिण में बास जलडमरूमध्य के समीप खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस के भंडार हैं । महाद्वीप के उत्तरी भाग में यूरेनियम के भंडार हैं ।
पर्यावरणीय समस्याएँ:
(i) आस्ट्रेलिया के पश्चिमी भाग में वर्षा की मात्रा कम होने से वहाँ की बहुत-सी नदियाँ सामयिक हैं । अतः इस भाग में बल के अभाव की समस्या उत्पन्न हुई है । परिणामतः वहाँ के लोगों को अकाल की स्थिति का सामना करना पड़ता है ।
(ii) आस्ट्रेलिया के पूर्व-उत्तर तटवर्ती प्रदेश के समीप प्रवाल चट्टानों की श्रेणी-ग्रेट बैरियर रीफ पर्यटकों के लिए अकर्षण का केंद्र है । वैश्विक तापमान में वृद्धि होने के कारण सागरीय जल का तापमान बढ़ गया है । फलतः इन प्रवाल चट्टानों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है ।
(iii) महाद्वीप के मध्यभाग में मरुस्थलीय प्रदेश है । हवाओं द्वारा यहाँ की रेत सीमावर्ती प्रदेश में बहाकर ले जाई जाती है । फलस्वरूप वहाँ रेत का निक्षेपण होता है । इससे मरुस्थल का क्षेत्र बढ़ रहा है ।
(iv) अत्यधिक चराई तथा निर्वनीकरण के कारण पूर्व पर्वतीय प्रदेश तथा डार्लिंग नदी के कछारी प्रदेश में मिट्टी का बड़ी मात्रा में क्षरण हो रहा है ।