ADVERTISEMENTS:
Read this essay to learn about the continent of Antarctica and its geographical conditions in Hindi language.
दक्षिणी ध्रुव के आसपास फैला हुआ हिमाच्छादित भूभाग अंटार्क्टिका महाद्वीप है । यह महाद्वीप उत्तरी ध्रुव के इर्द-गिर्द फैले हुए आर्क्टिक महासागर की विपरीत दिशा में होने से इसे एंटी आर्क्टिक भी कहते हैं ।
इसी से इस महाद्वीप का नाम अंटार्क्टिका पड़ा । इस महाद्वीप की खोज वर्तमान समय में अर्थात पिछले २०० वर्षों में हुई । यह एक मात्र ऐसा महाद्वीप है जहाँ इससे पहले मानवीय बस्ती नहीं थी परंतु आजकल अनुसंधान करने हेतु वैज्ञानिक कुछ समय तक यहाँ रहते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
यह महाद्वीप प्रशांत, अटलांटिक तथा हिंद महासागरों से घिरा हुआ है । ६० दक्षिणी अक्षांश के दक्षिण में स्थित इन महासागरों के भाग को संयुक्त रूप से दक्षिण महासागर भी कहते हैं । क्षेत्रफल की दृष्टि से अंटार्क्टिका महाद्वीप संसार में पाँचवें स्थान पर है ।
स्थान, विस्तार और सीमा:
इस महाद्वीप का अक्षांशीय वीस्तार ६०० दक्षिण से ९०० दक्षिण तक अर्थात दक्षिणी ध्रुव तक है । इस महाद्वीप का विस्तार सभी देशांतरों में पाया जाता है ।
प्राकृतिक संरचना:
आकृति १५.१ देखो । अंटार्क्टिका महाद्वीप का अधिकांश भाग हिमाच्छादित है । यहाँ बर्फ की औसत मोटाई २२०० मी तथा अधिकतम मोटाई ४५०० मी तक होती है । इस महाद्वीप का मध्यभाग पठारी प्रदेश है तथा उसके चारों ओर कुछ पर्वत श्रेणियाँ हैं ।
ADVERTISEMENTS:
इस महाद्वीप के अंटार्क्टिका प्रायद्वीप पर डायर पठार है । इसके दक्षिण में एल्सवर्थ पर्वत है । इसमें विन्सन मैसिफ (४८९७ मी) नामक शिखर इस महाद्वीप का सबसे ऊँचा शिखर है । दक्षिण ध्रुव के पास पेंसाकोला से मुचींसन तक ट्रांस अंटार्क्टिका पर्वत श्रेणी फैली हुई है । इस महाद्वीप के पूर्व भाग में भी एक पर्वत श्रेणी है । उसमें सर रोंडम, प्रिंस चार्लस नाम के शिखर और अमेरिकन उच्च भूमि जैसे भूरूप पाए जाते हैं ।
ADVERTISEMENTS:
जलवायु:
इस महाद्वीप का अक्षांशीय विस्तार अन्य महाद्वीपों की अपेक्षा कम है । यह महाद्वीप उच्च अक्षवृत्तीय भाग में है । अत: यह महाद्वीप संपूर्ण वर्ष हिमाच्छादित रहता है । फलस्वरूप इस महाद्वीप का उल्लेख न्यूनतम तापमान के महाद्वीप के रूप में किया जाता है । दक्षिण ध्रुव के समीप के भाग में लगभग छह महीने दिन तथा छह महीने रातें होती हैं ।
यहाँ का औसत बार्षिक तापमान लगभग -६०० सेल्सियस होता है । इसकी तुलना में अंटार्क्टिक प्रायद्वीप के भूप्रदेशों में जलवायु गर्म होती है । ग्रीष्मकाल में तटीय प्रदेशों का तापमान हिमांक बिंदु से ऊपर होता है । इस महाद्वीप पर वर्षभर तूफानी हवाएँ बहती हैं । यहाँ निरंतर हिमपात होता है फिर भी वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण आजकल इस महाद्वीप की कुछ हिमानियाँ सिकुड़ने लगी हैं ।
प्राकृतिक संसाधन:
i. वनस्पति:
ग्रीष्मकाल में तटीय भाग के पथरीले प्रदेश में तथा तीव्र ढलानवाले भूप्रदेश की बर्फ पिघलने लगती है । ऐसी जगहों पर ग्रीष्मकाल में कुछ प्रकार के शैवाल, घास आदि वनस्पतियाँ तथा भूछत्र पाए जाते हैं । ग्रीष्मकाल की अवधि बहुत कम होने से यहाँ की वनस्पतियों का जीवनकाल कुछ सप्ताहों तक ही सीमित होता है । यहाँ शीतकाल के मंद प्रकाश में भी भोजन निर्माण करनेवाली जलीय सूक्ष्म वनस्पतियाँ पाई जाती हैं ।
ii. प्राणी जीवन:
अंटार्क्टिका महाद्वीप के आंतरिक भाग में विंगलेस (पंखहीन) मीड्ज नामक कीट पाए जाते हैं । पेंग्विन, वालरस, विविध प्रकार की सील मछलियाँ, ह्वेल (तिमिंगल) जैसे विशिष्ट प्राणी तथा स्कुआ पक्षी विशेष रूप से सागर तटीय प्रदेश में दिखाई देते हैं । यहाँ सागरीय जल में तैरनेवाले अनेक सूक्ष्मजीवों को खानेवाली छोटी मछलियाँ, क्रील, स्क्वीड जैसे जलचर प्राणी पाए जाते हैं ।
क्रील यह झींगा जैसा दिखाई देनेवाला विशेष प्राणी और मृदुकाय प्राणी स्क्वीड ह्वेल का मुख्य खाद्य है अर्धात यहाँ का विशिष्टतापूर्ण प्राणी जीवन एक-दूसरे पर निर्भर है । इस तरह निर्मित भोजन जाल को आकृति १५.२ के आधार पर समझो । इस महाद्वीप पर पाई जानेवाली अतिशीत जलवायु के कारण यहाँ जैविक विविधता सीमित रूप में पाई जाती है । यहाँ जैविक विविधता मुख्य रूप से तटीय प्रदेशों में पाई जाती है ।
iii. खनिज:
ADVERTISEMENTS:
अंटार्क्टिका महाद्वीप पर लौह, मैंगनीज, ताँबा, सीसा, यूरेनियम, क्रोमाइट, एंटीभनी, जस्ता, सोना आदि खनिजों के भंडार हैं । यहाँ के खनिज अंटार्क्टिका अनुबंध के अनुसार वैश्विक संसाधन होने से यहाँ खनिज का उत्पादन नहीं किया जाता ।
अंटार्क्टिका में अनुसंधान:
ई.स. १९३९ से १९४१ के बीच सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका ने अंटार्क्टिका अनुसंधान अभियान के बारे में अधिक उत्साह दर्शाया । उसके बाद इस महाद्वीप पर रूस, जापान, स्वीडन, नार्वे, फ्रांस, न्यूजीलैंड, भारत आदि देशों ने अनुसंधान कार्य प्रारंभ किया ।
यहाँ वायुमंडल में ओजोन की परत, वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि तथा समुद्री सतह में होनेवाले परिवर्तन आदि के बारे में विशेष अनुसंधान किया जाता है । साथ-साथ यहाँ की चट्टानों, जलवायु, वनस्पतियों, प्राणियों आदि की अधिक जानकारी प्राप्त करने का प्रयास जारी है ।
अंटार्क्टिका अनुबंध:
अंटार्क्टिका महाद्वीप की रक्षा करना, यहाँ के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना, पर्यावरणीय संवर्धन तथा अनुसंधान अभियान एक साथ होकर चलाना; इस उद्देश्य से ई.स. १५५९ में १२ राष्ट्रों ने एकमत से अंटार्क्टिका अनुबंध पर हस्ताक्षर किए ।
इससे विनाशकरी कृतियों की रोकथाम की जा सकी तथा अनुबंधित राष्ट्रों को अंटार्क्टिका महाद्वीप पर अनुसंधान करने का अधिकार प्राप्त हुआ । इस अनुबंध द्वारा यह मान्य किया गया कि अंटार्क्टिका पर जनसंख्या में वृद्धि नहीं होनी चाहिए और इस महाद्वीप को जो मानवजाति की धरोहर है प्रदूषणमुक्त रखना चाहिए ।
अंटार्क्टिका और भारत:
भारतीय वैज्ञानिकों का पहला दल ९ जनवरी, १९८२ को अंटार्क्टिका पर पहुँचा । भारत की ओर से ई.स. १९८३ वहाँ पहला केंद्र स्थापित किया गया । उनका नाम ‘दक्षिण गंगोत्री’ है । यहाँ जलवायु का निरीक्षण करनेवाले स्वचलित यंत्र स्थापित किए गए । मैत्री इस स्थायी केंद्र की स्थापना १९८९ में की गई । इसके बाद १९९१ में दक्षिण गंगोत्री केंद्र को बंद कर दिया गया ।
इसके बाद १९९८ में सागर विकास विभाग द्वारा ध्रुवीय अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई । इस संस्थान में ओजोन वायु का ह्रास, सागरीय जल सतह में होनेवाले बदलाव, सौर ऊर्जा तथा सजीवों के लिए अनुकूल पर्यावरण आदि बातों का अध्ययन किया जाता है । गर्व की बात यह है कि हमारा देश कुछ गिने-चुने राष्ट्रों के साथ यहाँ अनुसंधान कर रहा है ।
पर्यावरणीय समस्याएँ:
इस उच्च अक्षांशीय तथा निर्जन महाद्वीप पर कुछ पर्यावरणीय समस्याएँ निर्मित हुई हैं:
(i) वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण इस महाद्वीप की बर्फ की परतें पिघलने से वैश्विक स्तर पर सागरीय सतह बढ़ने का खतरा निर्माण हुआ है ।
(ii) जलवायु में बदलाव आने से पेंग्विन, वालरस, सील आदि विशेष प्राणियों की संख्या कम होने लगी है ।
(iii) तेल तथा चरबी प्राप्त करने के लिए सील तथा ह्वेल (तिमिंगल) का शिकार किया जाता है । इससे उनकी संख्या कम होने लगी है । अत: सील और ह्वेल के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है ।