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Read this article in Hindi to learn about atmospheric pressure with the help of experiments.
किसी स्थिर पिंड को गतिशील करने अथवा किसी गतिशील पिंड को स्थिर करने के लिए या उसकी दिशा परिवर्तित करने के लिए बल की आवश्यकता होती है । तुम्हें यह भी ज्ञात है कि किसी पिंड की चाल बढ़ाने तथा उसका आकार पीरवर्तित करने के लिए भी बल प्रयुक्त करना पड़ता है ।
करो और देखो:
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इमारत तथा दीवार आदि के निर्माण में उपयोगी एक ईंट लो । उसकी लंबाई, चौड़ाई तथा मोटाई (या ऊँचाइ) की ओर विशेष ध्यान दो । किसी ईट की चौड़ाई उसकी मोटाई की दुगुनी और उसकी लंबाई, चौड़ाई की दुगनी होती है । लड़की के किसी डिब्बे में लगभग एक फुट ऊँचाई तक मिट्टी भरो । इसमें पानी डालकर मिट्टी की कीचड़ की एक परत तैयार करो ।
इस कीचड़युक्त मिट्टी की परत पर ईंट को इस प्रकार रखो कि वह क्षैतिज बनी रहे । अब ईंट को बाहर निकाल लो । ईंट द्वारा कीचड़ पर बने निशान की ऊँचाई पर ध्यान दो । अब उसी मिट्टी में थोड़ी दूरी पर वहीं ईंट खड़ी करो । इस बार वह ईंट कितनी गहराई तक धँसती है, इसका अनुमान करो ।
जब ईट को आड़ा (क्षैतिज) रखा गया था, तब धँसे हुए भाग का क्षेत्रफल अधिक था परंतु वह कीचड़ में कम गहराई तक अंदर गई थी । जब वही ईट खड़ी (ऊर्ध्वाधर) अवस्था में रखी गई थी तब धँसे हुए भाग का क्षेत्रफल कम था परंतु वह कीचड़ में अधिक गहराई तक धँसी ।
जब किसी पिंड पर बल प्रयुक्त किया जाता है, तब उस पिंड पर बल का होनेवाला प्रभाव, बल लगाए गए पृष्ठभाग के क्षेत्रफल पर निर्भर होता है । क्षेत्रफल जितना अधिक होता है, प्रयुक्त बल का प्रभाव उतना ही कम होता है ।
दाब:
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किसी पृष्ठभाग के इकाई क्षेत्रफल पर प्रयुक्त बल को ‘दाब’ कहते हैं ।
बर्फ पर फिसलते समय लोग प्राय: लंबी-चौड़ी पट्टियों का उपयोग करते हैं । बर्फीले पृष्ठभाग पर फिसलते समय ऐसी पट्टयों के कारण इनके द्वारा प्रयुक्त बल का प्रभाव कम हो जाता है । इससे बर्फ पर फिसलने में आसानी होती है ।
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बल की इकाई न्यूटन तथा क्षेत्रफल की इकाई वर्ग मीटर या मी२ है । इस आधार पर दाब की इकाई न्यूटन प्रति वर्ग मीटर है । ध्यान दो कि क्षेत्रफल बढ़ने पर दाब कम हो जाता है और क्षेत्रफल कम होने पर दाब अधिक हो जाता है ।
करो और देखो:
एक ऐसी कील लो, जो एक सिरे की ओर नुकीली हो तथा दूसरे सिरे पर सपाट हो । यदि इसके सपाट सिरे को लकड़ी की दिवार पर लगाकर हथौड़ी से ठोकें, तो क्या यह अंदर जाएगी ? नहीं । ऐसा क्यों होता है कि कोई कील अपने नुकीले सिरे की ओर से दीवार के अंदर जाती है ?
कील के सपाट भाग का क्षेत्रफल अधिक तथा नुकीले भाग का क्षेत्रफल उसकी अपेक्षा बहुत ही कम होता है । नुकीले भाग का क्षेत्रफल कम होने के कारण वही बल कम क्षेत्रफल पर प्रयुक्त होता है, जिससे दाब बढ़ता है और कलि आसानी से दीवार में धँस जाती है ।
सिलाई के लिए उपयोगी सूई, चाकू आदि के सिरे नोकदार तथा धारदार होते है । इसलिए इनका उपयोग करते समय किसी वस्तु के अत्यंत कम क्षेत्रफल पर अधिक दाब पड़ता है । फलत: सिलाई करने तथा काटने में आसानी होती है ।
क्या ठोस अवस्थावाले पदार्थों की भांति द्रव तथा गैसीय अवस्थावाले पदार्थों पर भी दाब का प्रभाव पड़ता है ?
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करो और देखो:
प्लास्टिक की एक बोतल लो । आकृति में दिखाए अनुसार उसके नीचेवाले भाग में एक छिद्र बनाकर उसमें काँच की एक संकरी नली लगाओ जिसकी लंबाई एक से.मी हो । छिद्र बनाने के लिए तुम किसी गर्म कील का उपयोग कर सकते हो । इस नली के बाहरी सिरे पर रबड़ के एक गुब्बारे का पतला टुकड़ा लगाओ ।
अब बोतल में पानी भरना शुरू करो । जैसे-जैसे बोतल में पानी एकत्र होता है, वैसे-वैसे रबड़ का टुकड़ा फूलता जाता है और उसका आकार बढ़ता जाता है । इससे यह ज्ञात होता है कि पानी का दाब बोतल की दीवार पर पड़ता है ।
नली का क्षेत्रफल स्थिर रहने पर भी दाब में वृद्धि क्यों होती है ? क्षेत्रफल स्थिर है, तो भी पानी की ऊँचाई बढ़ती है । इससे बल बढ़ता है, जिससे दाब भी बढ़ता है । यदि हम किसी गुब्बारे में हवा भरें, तो वह फूलता जाता है । ज्यादा फुलाने पर वह फूट जाता है । अत: द्रवों की भाँति गैसें भी जिस पात्र में होती हैं, उस पात्र की दीवार पर वे दाब डालती हैं ।
बाजार में विभिन्न आकारवाले गुब्बारे मिलते हैं । लंबे, गोलाकार या विशिष्ट आकारवाले गुब्बारों में हवा भरने पर वे वही आकार ग्रहण कर लेते हैं । साइकिल के ट्यूब में हवा भरने पर वह सर्वत्र गोलाकार रहती है अथवा नली का आकार ग्रहण कर लेती है ।
हवा अथवा पानी, ये प्रवाही पदार्थ हैं । जब कोई प्रवाही पदार्थ बहता है तब वह सभी ओर समान दाब डालता है । इसलिए उसका आकार सर्वत्र समान ही बना रहता है । अपने सभी ओर समान दाब डालना, यह प्रवाही पदार्थो का महत्वपूर्ण गुणधर्म है ।
करो और देखो:
प्लास्टिक की दो बोतलें लो । आकृति में दिखाए अनुसार इन बोतलों को नीचे की ओर से एक पतली नली द्वारा जोड़ी । इस नली पर एक रोधनी (पिंच काक) लगाओ । अब दोनों बोतलों में पानी भरो । एक बोतल में ऊपर तक तथा दूसरी बोतल में उसकी अपेक्षा पर्याप्त नीचे तक पानी भरो । दोनों बोतलों के पानी की सतह की ओर ध्यान दो । अब रोधनी निकाल लो ।
जिस बोतल में पानी अधिक ऊँचाई तक भरा गया था, उसमें से कुछ पानी कम ऊँचाई तक पानी भरी बोतल में जाता है । जब दोनों बोतलों के पानी का स्तर समान हो जाता है, तब पानी का प्रवाह रुक जाता है । प्रवाही पदार्थ सदैव उच्च दाब से निम्न दाब की ओर प्रवाहित होते हैं ।
वायुमंडलीय दाब:
तुम जानते हो कि हमारे आसपास चारों ओर वायुमंडल है । इसमें नाइट्रोजन, आक्सीजन, पानी की वाष्प (भाप) आदि गैसें होती है । इससे यह ज्ञात होता है कि वायुमंडल में भी द्रव्यमान होता है । यह वायुमंडल पृथ्वी के चारों ओर सैकड़ों किलोमीटर तक फैला हुआ है । इसके द्वारा पड़नेवाले दाब को ‘वायुमंडलीय दाब’ कहते है ।
यदि यह वायुमंडल सैकड़ों किमी ऊँचाईवाला है, तो इकाई क्षेत्रफल पर एक ऊँचे से ऊँचे बेलन के दाब की कल्पना करो । ‘१० सेमी x १० सेमी’ के बराबर क्षेत्रफल पर खड़े वातावरण का द्रव्यमान लगभग १००० किग्रा के बराबर होता है । हमारे न दबने या पिसने का कारण यह है कि हमारे शरीर का आंतरिक दाब भी उतना ही होता है । इसलिए हमें वायुमंडलीय दाब का आभास नहीं होता । सजीवों के लिए वायुमंडल अत्यंत महत्वपूर्ण है ।
करो और देखो:
बाजार में ऐसी चकतियाँ मिलती है जो काँच से चिपक जाती हैं । इनका ध्यान से निरीक्षण करो । काँच पर रखकर इन्हें दबाने पर ये काँच से चिपक जाती हैं । इन्हें खींचकर निकालना आसान नहीं होता ।
ऐसा क्यों होता है ? जब काँच के समतल पृष्ठभाग पर दाब डालकर उसे चिपकाया जाता है, तब काँच के पृष्ठभाग और रबड़ की चकती के बीच की हवा बाहर निकल जाती है । इसलिए वहाँ का वायुमंडलीय दाब कम या समाप्त हो जाता है । इसके विपरीत बाहर का वायुमंडलीय दाब उस चकती को अंदर की ओर ढकेलता है । इसलिए वह चकती काँच से कसकर चिपक जाती है । इस चकती को काँच से अलग करना कठिन होता है ।
करो और देखो:
पतरे से बना एक ऐसा डिब्बा लो जिसमें एक थोड़ा ढीला ढक्कन लगा हो । उसमें थोड़ा पानी भरकर इसे गर्म करो । कुछ समय बाद पानी उबलने लगता है और भाप बनती है । ढीला ढक्कन डिब्बे में से बाहर निकल जाता है । पानी की भाप बाहर निकलने पर डिब्बे के अंदर की हवा भी बाहर निकल जाती है ।
कुछ समय बाद गरम करना बंद करो और ढक्कन कसकर लगा वे दो । डिब्बे को ठंडा होने दो । कुछ समय बाद वह डिब्बा पिचक जाता है । सोचो कि ऐसा क्यों हुआ । यह कृति किसी बड़े व्यक्ति की देखरेख में ही करो ।
वायुमंडलीय दाब का अनुभव करने के लिए तुम एक सरल-सा प्रयोग कर सकते हो । किसी गिलास में लबालब पानी भरी । उसके मुँह पर गत्ते का एक आयताकार टुकड़ा रखो । अब गत्ते की सतह पर हाथ रखकर उसे धीरे-से अंधा करो । गत्ते के नीचे से अपना हाथ धीरे-से हटा लो ।
गिलास का पानी बाहर नहीं गिरता । बाहर का वायुमंडलीय दाब गत्ते की सतह पर क्रियाशील होता है । उसकी अपेक्षा पानी का दाब कम होने के कारण पानी बाहर नहीं गिरता ।
पंप:
बाजार में मिलनेवाला स्याही-ड्रापर क्या तुमने देखा है ? उसके एक सिरे पर रबड़ का गुब्बारा होता है और दूसरा सिरा शुंडाकार होता है । स्याही की दवात में शुंडाकार सिरा डुबाते है । गुब्बारे को दबाते ही उसकी हवा नुकीले शुंडाकार सिरे से बाहर निकल जाती है । फलत: गुब्बारे के अंदर का हवा का दाब कम हो जाता है ।
स्याही की बाहरी सतह पर वायुमंडलीय दाब क्रियाशील होने के कारण ड्रापर की नली में से स्याही ऊपर चढ़ जाती है और एकत्र होती है । इसके बाद ड्रापर को दवात में से बाहर निकालकर कलम के खुले मुँह पर रखते हैं । गुब्बारे को दबाते ही नली की स्याही कलम में भरने लगती है ।
नली की स्याही का दाब और उसके दवात की स्याही पर क्रियाशील वायुमंडलीय दाब समान होने तक स्याही भरती है । दोनों दाब समान होने के कारण, गुब्बारे को दबाए बिना उसकी स्याही बाहर नहीं गिरती । इससे यह ज्ञात होता है कि ड्रापर भी एक प्रकार का पंप ही है ।
पिचकारी:
होली के अवसर पर रंग खेलने में उपयोगी पिचकारी वास्तव में एक पंप ही है । इसमें पतरे या प्लास्टिक के एक बेलन के साथ एक ओर शुंडाकार नली जुड़ी होती है । इस बेलन में एक ढक्कन लगा होता है और उसके अंदर जोर लगाने पर खिसकनेवाला
एक पिस्टन होता है । हत्थे की सहायता से इस पिस्टन को अंदर-बाहर खिसकाया जा सकता है । पिचकारी के शुंडाकार सिरे को पानी या किसी द्रव में डुबाकर पिस्टन को अंदर की ओर ढकेलते हैं । इस दशा में बेलन की पूरी हवा शुंडाकार सिरे से बाहर चली जाती है ।
फलत: अंदर का वायुदाब कम हो जाता है । अब पिस्टन को बाहर की ओर खींचते है । इसके कारण पिस्टन और बेलन के बीचवाले भाग में वह द्रव चढ़ जाता है ।
इस समय अंदरवाले द्रव का दाब वायुमंडलीय दाब के बराबर होने के कारण वह द्रव स्वयं बाहर नहीं गिरता । जब पिस्टन को अंदर की ओर दबाते हैं, तब द्रव पर दाब बढ़ने के कारण पिचकारी में भरा द्रव शुंडाकार सिरे से तेजी से कुछ दूरी पर बाहर गिरता है ।